राजस्थान पहुँचे ‘भारतीय किसान यूनियन (BKU)’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने एक बार फिर से ‘किसान आंदोलन’ शुरू करने की धमकी दी है। उन्होंने कहा, “ना ही किसान कहीं गए है, ना सरकार कहीं गई है। अब किसानों के आंदोलन के लिए 13 महीने की ट्रेनिंग होगी। ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ कोई चुनाव नहीं लड़ रहा है। 15 जनवरी को हमारी बैठक है। आंदोलन अभी सिर्फ स्थगित हुआ है, जो किसान गए हैं वो 4 महीने की छुट्टी पर गए हैं।”
ना ही किसान कहीं गए है, ना सरकार कहीं गई है। अब किसानों के आंदोलन के लिए 13 महीने की ट्रेनिंग होगी। संयुक्त किसान मोर्चा कोई चुनाव नहीं लड़ रहा है। 15 जनवरी को हमारी बैठक है।आंदोलन अभी सिर्फ स्थगित हुआ है, जो किसान गए हैं वो 4 महीने की छुट्टी पर गए हैं: किसान नेता राकेश टिकैत pic.twitter.com/fz14XU4kKF
— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) December 26, 2021
राकेश टिकैत ने केंद्र सरकार को धमकाया कि अभी केवल तीन कृषि कानून ही वापस लिए गए हैं और अन्य माँगें नहीं पूरी हुई है, इसीलिए आंदोलन कभी भी फिर से शुरू हो सकता है। वहीं उन्होंने AIMIM अध्यक्ष और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा से भी ज्यादा खतरनाक है। MSP पर कानून की बात करते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार धीमी गति से कमिटी बनाने के फैसले पर काम कर रही है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर उन्होंने कहा कि किसान हितैषी पार्टी को ही किसान वोट देगा।
फिर से आंदोलन खड़ा करने की धमकी देते हुए राकेश टिकैत ने कहा कि वो किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने नहीं जा रहे हैं। कॉन्ग्रेस के समर्थन पर ‘किसान आंदोलन’ चलने के आरोप पर उन्होंने कहा कि ये कोई एक दिन की वार्ता नहीं, बल्कि 300 दिनों तक चलने वाला आंदोलन था। उन्होंने दावा किया कि ये किसी राजनीतिक दल के समर्थन से नहीं चल रहा था। उन्होंने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा को कोई वोट नहीं देगा। उन्होंने कहा कि किसानों को फायदा देने वाले को ही वोट दिया जाएगा।
बता दें कि कुछ ही महीनों में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों में राज्य के 32 में से 25 किसान संगठन एक छत्री के नीचे आकर राजनीति का हिस्सा बनेंगे। चुनाव लड़ने के लिए किसानों ने संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) बनाया है और भारतीय किसान यूनियन- राजेवाल (BKU- Rajewal) गुट के नेता बलबीर सिंह राजेवाल को मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे। मोर्चे को लेकर किसान नेता हरमीत कादियां ने बताया कि कृषि बिलों की वापसी के बाद लोगों को उनसे उम्मीद बढ़ गई है। पंजाब लौटने पर स्वागत हुआ और उन पर दबाव बनने लगा कि अगर दिल्ली मोर्चा जीता जा सकता है तो पंजाब को भी सुधारा जा सकता है।