Sunday, December 22, 2024
Homeदेश-समाज'मैं पूर्व रॉ एजेंट हूँ, रहने के लिए छत चाहिए': दर-दर की ठोकरें खा...

‘मैं पूर्व रॉ एजेंट हूँ, रहने के लिए छत चाहिए’: दर-दर की ठोकरें खा रहा है असली ‘टाइगर’

मनोज रंजन दीक्षित को जासूसी करने के लिए पकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था, 2005 के दौरान उन्हें बाघा बॉर्डर पर छोड़ा गया था।

फिल्मी पर्दे पर आपने कई खुफिया एजेंट की जिंदगी देखी होगी। महँगी गाड़ियाँ, दमदार हथियार और जीवन के हर मोड़ पर रोमांच। लेकिन रील लाइफ का रुतबा और एशोआराम, रियल लाइफ के खुफिया एजेंट को नसीब नहीं होता। एक फिल्म आई थी- एक था टाइगर। इसमें सलमान खान खुफ़िया एजेंसी रॉ के एजेंट बने थे। पर्दे के ‘टाइगर’ के उलट असली जिंदगी का ‘टाइगर’ दाने-दाने को मोहताज है।

असल ज़िंदगी के इस टाइगर का नाम है, मनोज रंजन दीक्षित। वे नजीबाबाद के रहने वाले हैं। दैनिक हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने डीएम कार्यालय में जाकर एक अधिकारी से कहा, “मैं पूर्व रॉ एजेंट हूँ और मुझे रहने के लिए छत चाहिए।” ये सुनते ही वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान रह गए। उनकी मुलाक़ात डीएम से नहीं हो पाई, जिसकी वजह से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।

मनोज रंजन दीक्षित को जासूसी करने के लिए पकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था, 2005 के दौरान उन्हें बाघा बॉर्डर पर छोड़ा गया था। पाकिस्तान से छूटने के बाद 2007 में उनकी शादी हुई। कुछ समय बाद उन्हें पता चला कि पत्नी को कैंसर है। वह अपनी पत्नी का इलाज कराने के लिए लखनऊ आए थे। 2013 में उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। इसके बाद से ही वह लखनऊ में रह रहे हैं। गोमतीनगर विस्तार में वे स्टोर कीपर का काम कर रहे थे। लॉकडाउन में काम छूट गया था और उनके जीवन की चुनौतियॉं बढ़ गईं।

अफग़ानिस्तान बॉर्डर पर जासूसी के लिए पकड़े जाने पर उन्हें तमाम तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ा था। फिर भी उन्होंने देश की सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया। पाकिस्तान में जासूसी के दौरान उनका नाम यूनुस, युसूफ और इमरान था। रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 80 के दशक में रॉ में प्रशासनिक सेवाओं की तरह आम नागरिकों को उनकी योग्यता के आधार पर भर्ती किया जा रहा था। 1985 में मनोज रंजन दीक्षित को नजीबाबाद से भर्ती किया गया। दो बार सैन्य प्रशिक्षण के बाद उन्हें पाकिस्तान भेजा गया। 

उन्होंने पाकिस्तान से बतौर जासूस कई अहम जानकारियाँ साझा की थीं। कश्मीरियों युवाओं को बहला-फुसलाकर अफ़गानिस्तान बॉर्डर पर ट्रेनिंग दिए जाने जैसी कई अहम जानकारियाँ। 1992 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें कराची जेल में रखा गया था।

मनोज रंजन दीक्षित की उम्र अभी 56 साल है और उनके सामने चुनौतियों का पहाड़ है। वह सरकारी मदद मिलने की उम्मीद लेकर कलेक्ट्रेट पहुँचे थे, लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। ख़ुफ़िया एजेंसी की सबसे पहली शर्त यही होती है कि एजेंट के गिरफ्तार होने पर उनकी पहचान करने से इनकार कर देते हैं। मनोज दीक्षित ने भी इसके अनुबंध पर सहमति जताई थी। भारत वापसी पर कई रॉ अधिकारियों ने उन्हें आर्थिक मदद की थी। उसके बाद किसी ने उनकी सुध नहीं ली।  

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

किसी का पूरा शरीर खाक, किसी की हड्डियों से हुई पहचान: जयपुर LPG टैंकर ब्लास्ट देख चश्मदीदों की रूह काँपी, जली चमड़ी के साथ...

संजेश यादव के अंतिम संस्कार के लिए उनके भाई को पोटली में बँधी कुछ हड्डियाँ मिल पाईं। उनके शरीर की चमड़ी पूरी तरह जलकर खाक हो गई थी।

PM मोदी को मिला कुवैत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर’ : जानें अब तक और कितने देश प्रधानमंत्री को...

'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' कुवैत का प्रतिष्ठित नाइटहुड पुरस्कार है, जो राष्ट्राध्यक्षों और विदेशी शाही परिवारों के सदस्यों को दिया जाता है।
- विज्ञापन -