गत वर्ष (अक्टूबर 9-15, 2018) में हुई आर्मी कमांडर्स कॉन्फरेंस में भारतीय थलसेना के पुनर्गठन संबंधी चार अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत की गईं जिन पर पर गहन विमर्श हुआ। थलसेना के पुनर्गठन और बदलते सामरिक परिवेश के अनुसार अत्याधुनिक ढाँचे में ढालने के लिए जनरल बिपिन रावत ने एक-एक लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में 25-25 सदस्यों वाली चार अध्ययन समितियाँ बनाई थीं जिन्हें अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी।
पहली रिपोर्ट भारतीय थलसेना को पुर्नसंगठित कर उसके आकार को छोटा किंतु अधिक मारक बनाने पर केंद्रित है। दूसरी अध्ययन रिपोर्ट सेना मुख्यालय के पुनर्गठन पर केंद्रित है। तीसरी रिपोर्ट अधिकारियों के कैडर रिव्यु और चौथी रिपोर्ट सेना को जवान और स्वस्थ रखने तथा मनोबल बढ़ाने के उपायों पर केंद्रित है। यह चारों रिपोर्ट जनरल रावत और रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गई हैं। यदि इनपर अमल किया जाता है तो विगत 35 वर्षों में किया गया यह सबसे महत्वपूर्ण सैन्य सुधार होगा।
थलसेना के पुनर्गठन की योजना में सबसे महत्वपूर्ण घटक है इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप जो कि पाकिस्तान के विरुद्ध भारत की ‘कोल्ड स्टार्ट’ कही जाने वाली युद्धनीति का एक अंग है। कोल्ड स्टार्ट की अवधारणा तब बलवती हुई थी जब सन 2001 में पाकिस्तानी आतंकियों ने संसद पर हमला किया था। तब भारत ने प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही में ऑपरेशन पराक्रम आरंभ किया था। ऑपरेशन पराक्रम के दौरान हमें अपनी स्ट्राइक कोर की कमियाँ दिखाई पड़ी थीं।
दरअसल 1971 के पश्चात भारत ने पाकिस्तान और चीन के विरुद्ध दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध छिड़ने पर ‘strike-hold-strike’ की रणनीति अपनाई थी। इस नीति के अंतर्गत हम पहले पाकिस्तान पर हमला करते किंतु उस दौरान चीन के प्रति रक्षात्मक रहते। पाकिस्तान पर तीव्रता से हमला करने के साथ ही हम उत्तर-पूर्वी मोर्चे पर चीन को रोककर रखते। पाकिस्तान को नियंत्रण में लेने के बाद हम चीन पर हमलावर होते।
इस रणनीति के लिए भारतीय सेना ने दो प्रकार की कोर बनाई थी: स्ट्राइक और होल्डिंग कोर। स्ट्राइक कोर तुरंत हमला करने के लिए और होल्डिंग कोर रक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए थी। एक कोर में लगभग 50-60,000 सैनिक होते हैं। एक कोर में प्रायः तीन डिवीज़न, एक डिवीज़न में तीन ब्रिगेड तथा प्रत्येक ब्रिगेड में 3 बटालियनें होती हैं। सैनिकों की संख्या न्यूनाधिक हो सकती है लेकिन भारतीय थलसेना में बल की संरचना मोटे तौर पर इसी प्रकार की होती है।
कारगिल की लड़ाई और सन 2001-02 के बीच हुए ऑपरेशन पराक्रम में जब हमने सेना को सीमा पर मोबिलाइज़ करना प्रारंभ किया तो उस प्रक्रिया में आवश्यकता से अधिक समय लगा। तब हमें अपनी मिलिट्री डॉक्ट्रिन में कमियाँ पता चलीं और सेना ने अपनी सभी होल्डिंग कोर को ‘पिवट’ (pivot) कोर बनाने का निर्णय लिया। पिवट कोर का अर्थ था कि स्ट्राइक कोर तो अपना काम करेंगी ही लेकिन आदेश मिलते ही होल्डिंग कोर भी हमला करने को तैयार रहे उन्हें इस लायक बनाया गया।
ऑपरेशन पराक्रम से पहले भारत होल्डिंग कोर और कम से कम तीन स्ट्राइक कोर (मथुरा स्थित 1 Corps, अम्बाला स्थित 2 Corps और भोपाल स्थित 21 Corps) के साथ पाकिस्तान के क्षेत्र में भीतर तक हमला करने की रणनीति में विश्वास करता था। यह डॉक्ट्रिन इस प्रकार बनाई गई थी कि तुरंत आदेश मिलते ही भारतीय सेना की तीनों स्ट्राइक कोर पाकिस्तान की उत्तरी 1 कोर और दक्षिणी 2 कोर पर हमला कर रणनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान के लिए अति महत्वपूर्ण संसाधनों पर कब्जा कर लेती। यह सिद्धांत 1981-82 में जनरल के वी के राव के समय अपनाया गया था और 1987 में ब्रासटैक्स सैन्य अभ्यास के समय इसका परीक्षण भी किया गया था।
लेकिन ऑपरेशन पराक्रम के दौरान कोर स्तर की सैन्य टुकड़ी को सीमा पर पहुँचाने में हुए विलंब ने आर्मी कमांडरों के कान खड़े कर दिए। तब ‘कोल्ड स्टार्ट’ डॉक्ट्रिन अपनाई गई जिसके दो महत्वपूर्ण घटक हैं: पहला तो यह कि पिवट कोर की क्षमता बढ़ाई जाए और उन्हें अधिक मारक (offensive) बनाया जाए।
दूसरा यह कि डिवीज़न से छोटी लेकिन ब्रिगेड से बड़ी तथा अत्याधुनिक युद्धक तकनीक से युक्त एक ऐसी मारक सैन्य टुकड़ी बनाई जाए जो आदेश मिलते ही अत्यंत तीव्र गति से पाकिस्तान के भीतर घुसकर उसे घुटने टेकने पर विवश कर दे। इसे ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप’ (IBG) का नाम दिया गया है।
युद्ध के दौरान IBG का प्रयोग पाकिस्तान को परमाणु अस्त्र के बारे में सोचने से पहले ही उसके सैन्य संसाधनों को नष्ट करने की योजना पर आधारित है। एक IBG में इन्फैंट्री, एयर डिफेन्स, आर्टिलरी, आर्मर, सिगनल, मैकेनाइज़्ड इन्फैंट्री सहित सेना के सभी अंगों को समाविष्ट किया जाएगा। यह अपने आप में पूर्ण, सर्व संसाधन युक्त, तीव्र और स्वतंत्र युद्धक इकाई होगी। चीन और पाकिस्तान दोनों ही विरोधियों को एक साथ परास्त करने की रणनीति के अंतर्गत IBG बनाई जाएँगी।
थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने कई साक्षात्कारों में यह स्वीकार किया है कि IBG का निर्माण युद्धस्थल की भौगोलिकता को ध्यान में रखकर किया जाएगा। ऐसी IBG बनाई जाएँगी जो राजस्थान के मरुस्थल से लेकर उत्तर भारत के मैदान और हिमालय के पहाड़ों पर भी उतनी ही दक्षता से लड़ सकें। एक IBG को मेजर जनरल रैंक का अधिकारी कमांड करेगा।
कुछ सामरिक चिंतकों का मानना है कि कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन के अंतर्गत करीब 8-10 IBG बनाई जा सकती हैं। कुछ विचारकों का यह मानना है कि 14,000 सैनिकों वाली प्रत्येक इन्फैंट्री डिवीज़न को समाप्त कर 140 IBG बनाई जानी चाहिए। बहरहाल, जनरल रावत के बयान के अनुसार विभिन्न युद्धक परिस्थितियों में पहले सभी IBG का परीक्षण किया जाएगा और सब कुछ ठीक रहा तो यह प्रक्रिया वर्ष 2019 के अंत तक पूर्ण कर ली जाएगी।