Monday, September 16, 2024
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बहराइच में कहाँ से आ गए आदमखोर भेड़िए, जिन्होंने 55 गाँवों में मचाया आतंक: जानिए – कैसे 28 साल पहले यूपी के 3 जिलों में गई थी 30 बच्चों की जान

अंग्रेजों के समय में भेड़ियों को मारने का बड़ा अभियान चला था, जिसमें 40 सालों में 1 लाख से अधिक भेड़ियों को शिकारियों ने मार डाला था और ब्रिटिश राज से ईनाम भी हासिल किया था। इस लेख में भेड़ियों से जुड़े ऐसे ही तथ्यों को शामिल किया गया है।

उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जिले बहराइच में भेड़ियों का आतंक है। मार्च 2024 से शुरू हुए भेड़ियों के खूनी हमलों में अब तक 9 बच्चों समेत 10 लोगों की मौत हो चुकी है, तो 34 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं, जिसमें अधिकाँश बच्चे हैं। इन घटनाओं के बाद प्रशासन की ओर से 32 राजस्व विभाग की टीम और 25 वन विभाग की टीम तैनात की गई है। ड्रोन समेत तमाम सर्विलांस उपकरणों की मदद से अब तक 4 भेड़ियों को पकड़ा जा चुका है। इसके बावजूद अभी तक 2 नरभक्षी पकड़े नहीं जा सके हैं। बहराइच में भेड़ियों के हमले की खबरें लगातार सुर्खियों में हैं। ऐसे में ये जानना जरूरी हो गया है कि ये समस्या आखिर आई क्यों? क्या ऐसे मामले पहले भी आ चुके हैं?

दरअसल, भेड़िये तेजी से विलुप्त होते वन्यजीवों की श्रेणी में हैं। पूरे देश में खासकर उत्तर भारत में इनकी संख्या महज 2000 से 3000 के बीच ही बची है। हालाँकि अतीत में भारत में भेड़ियों की संख्या बहुत ज्यादा हुआ करती थी। अंग्रेजों के समय में भेड़ियों को मारने का बड़ा अभियान चला था, जिसमें 40 सालों में 1 लाख से अधिक भेड़ियों को शिकारियों ने मार डाला था और ब्रिटिश राज से ईनाम भी हासिल किया था। इस लेख में भेड़ियों से जुड़े ऐसे ही तथ्यों को शामिल किया गया है।

लोककथाओं में भेड़ियों का अहम स्थान, महाभारत काल में भीम से जुड़ाव

भेड़ियों ने मानव संस्कृति में एक जटिल स्थान प्राप्त किया है, जहाँ वे कभी खतरनाक शिकारी के रूप में तो कभी ताकत के प्रतीक के रूप में उभरे हैं। भारतीय महाकाव्य महाभारत में, भीम को “वृकोदर” नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है “भेड़िये का पेट,” जो उनकी अतृप्त भूख को दर्शाता है। इसी तरह, अंग्रेजी में “hungry as a wolf” और “wolfing down food” जैसे मुहावरे भेड़िये की भूख की प्रतीकात्मकता को प्रकट करते हैं।

पश्चिमी लोककथाओं में भेड़िये अक्सर खलनायक की भूमिका में नजर आते हैं, जैसे कि “Big Bad Wolf” और “Werewolf” की कहानियों में। हालाँकि, उन्हें सम्मान के प्रतीक के रूप में भी देखा गया है, जैसे कि ग्रीक देवता अपोलो और रोमन देवता मार्स के साथ उनका संबंध। रोमन मिथक में, एक मादा भेड़िया ने रोम के संस्थापक रोमुलस और रेमुस को पाला था। वहीं, मशहूर लेखक रुडयार्ड किपलिंग की “द जंगल बुक” में, “सीओनी भेड़िया” दल, जिसका नेतृत्व नेकदिल अकैला करता है, एक हीरो के तौर पर है। वहीं, शेर खान नाम का बाघ विलैन के रूप में है।

भेड़ियों के हमलों का अतीत

भारत में भेड़ियों का इंसानों पर हमला करना कोई नई बात नहीं है। 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश राज के समय, भेड़ियों के हमलों से कई लोगों की जान गई थी। 1866 में, कैप्टन बी. रोजर्स ने निचले बंगाल में भेड़ियों द्वारा 4,287 लोगों की मौत दर्ज की, जो उस समय बाघों द्वारा की गई 4,218 मौतों से भी थोड़ी ज्यादा ही थी। इसी प्रकार, 1875 में सर्जन जनरल जोसेफ फायरर के अनुसार, उत्तर भारत में भेड़ियों ने 1,018 लोगों की जान ली थी, जो बाघों द्वारा मारे गए 828 लोगों से भी अधिक थी।

ध्यान देने वाली बात यह है कि पंजाब, राजस्थान, गुजरात और दक्कन पठार जैसे क्षेत्रों में भेड़िये के हमलों से इंसानी मौत के मामले बेहद कम थे, जबकि इन क्षेत्रों में भेड़ियों की संख्या अधिक थी। ब्रिटिश सरकार ने इस खतरे का मुकाबला करने और भेड़ियों के हमलों को नियंत्रित करने के लिए इनाम की घोषणा की गई, जिसके परिणामस्वरूप 1871 से 1916 के बीच उत्तर-पश्चिम प्रांतों और अवध में 1 लाख से अधिक भेड़ियों को मार दिया गया। इसके बावजूद, भारतीय भेड़िए अपने जीवित रहने के लिए संघर्ष करते रहे और आज उनकी आबादी महज 3,000 के करीब ही रह गई है।

बीते कुछ दशकों में भेड़ियों के हमलों में काफी मौतें

भारत में भेड़ियों के हमलों का एक लंबा और भयावह इतिहास है। 1985-86 में, मध्य प्रदेश के आष्ठा में चार भेड़ियों के एक समूह ने 17 बच्चों की हत्या कर दी, जिससे क्षेत्र में व्यापक दहशत फैल गई। इसी तरह, 1993 से 1995 के बीच, बिहार के हजारीबाग पश्चिम, कोडरमा और लेटेहर वन मंडलों में भेड़िया दलों द्वारा 60 बच्चों की मौत के मामले सामने आए। इन हमलों की वजह भी प्राकृतिक शिकार की कमी और भेड़िया-कुत्ता संकरों की वृद्धि को माना गया है।

वाई.वी. झाला और डी.के. शर्मा द्वारा साल 1996 में किए गए एक रिसर्च में, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 76 बच्चों पर हुए हमलों का विश्लेषण किया गया। उनके अध्ययन में बताया गया कि इन हमलों में एक ही अल्फा मेल भेड़िया या उसके ग्रुप की भूमिका थी, न कि कई ग्रुपों ने। पूर्वी यूपी के तीन जिलों प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर में साल 1996 के मार्च से अक्टूबर महीने तक भेड़िये का आतंक था। तीनों जिलों में 30 बच्चों की मौत हुई थी। हर तीसरे दिन भेड़िया हमला करता था। हर पाँचवें दिन एक बच्चे की मौत हो रही थी। हर हमले वाली जगह में कम से कम 13 किमी का अंतर होता था।

उस समय इन तीनों में जिलों में भेड़िये को वेयरवुल्फ माना गया (इंसानी भेड़िया- ट्विलाइट सागा सीरीज में ऐसे किरदार दिखे और बॉलीवुड फिल्म भेड़िया में भी)। उसे मनई (Manai) कहा जा रहा था। मनई आम तौर पर इंसान के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अवधी बोली का शब्द है। ऐसे में उस दौर में कोई अंजान आदमी प्रभावित इलाके के किसी गाँव में दिख जाता था, तो लोग उसे ‘मनई’ समझ कर मारने की कोशिश करते थे। ऐसे में लोगों का घरों से बाहर निकलना भी बंद हो गया था। इस मामले में सामने आया कि शिकारी भेड़िया बेहद ताकतवर था और अपने ग्रुप के मुखिया के जैसा था। ऐसे ग्रुप के मुखिया को ‘अल्फा मेल’ भी कहा जाता है। बाद में उस भेड़िये को शिकारियों ने मार गिराया था।

भेड़ियों से जुड़ी समस्या सुलझाने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण

भेड़ियों के हमलों को नियंत्रित करने के लिए एक लक्षित और सबूत-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता है। पीड़ितों के लार के नमूनों का डीएनए परीक्षण, चोटों के पैटर्न का विश्लेषण, और स्थानीय मांडवों का सर्वेक्षण जिम्मेदार जानवरों की पहचान में मदद कर सकते हैं। जब एक भेड़िया मानवों पर हमला करने की आदत डाल लेता है, तो उसे तुरंत हटाना आवश्यक हो जाता है। इससे न केवल मानव जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को भी समर्थन मिलेगा।

भेड़ियों के हमले कैसे हो सकते हैं कम

हालाँकि, यह समस्या तब तक पूरी तरह से हल नहीं हो सकती जब तक कि भेड़ियों को उनके प्राकृतिक आवास और शिकार का पर्याप्त हिस्सा नहीं दिया जाता। मानव-भेड़िया संघर्ष की समस्या को हल करने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है। इसमें जंगली क्षेत्रों का संरक्षण, भेड़ियों के प्राकृतिक शिकार की सुरक्षा, और स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग शामिल है। साथ ही, जनता के बीच जागरूकता फैलाने और भेड़ियों के साथ सह-अस्तित्व के उपायों को अपनाने की भी आवश्यकता है।

इस तरह बहराइच में भेड़ियों के हमलों ने न केवल तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि कैसे मानव गतिविधियों का वन्यजीवों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि हम इस समस्या का समाधान करना चाहते हैं, तो हमें भेड़ियों को उनके प्राकृतिक अधिकारों का हिस्सा देना होगा, और साथ ही उन्हें हमारे समाज के लिए खतरा बनने से रोकने के उपाय करने होंगे।

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श्रवण शुक्ल
श्रवण शुक्ल
Shravan Kumar Shukla (ePatrakaar) is a multimedia journalist with a strong affinity for digital media. With active involvement in journalism since 2010, Shravan Kumar Shukla has worked across various mediums including agencies, news channels, and print publications. Additionally, he also possesses knowledge of social media, which further enhances his ability to navigate the digital landscape. Ground reporting holds a special place in his heart, making it a preferred mode of work.

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