दिल्ली CAA/NRC हिंसा के मुख्य आरोपित उमर खालिद के बारे में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में छपा लेख फ़िलहाल चर्चा का विषय बना हुआ है। इस लेख में उमर खालिद की प्रेमिका द्वारा उसे याद और प्यार किए जाने के साथ डेटिंग आदि का विस्तार से जिक्र किया गया है। मीडिया के वामपंथी और इस्लामी वर्ग द्वारा आतंकियों का मानवीय पहलू दिखाने का प्रयोग ये पहली बार नहीं हुआ है। इस प्रयोग तरह के प्रयोगों से यह कोशिश की जाती है कि आम लोग पुलिस या अन्य जाँच एजेंसियों द्वारा उसके खिलाफ पेश किए सबूतों पर विश्वास न करें।
कभी ऐसा ही प्रयोग भारत का फिल्म जगत भी किया करता था। तब वह हिन्दुओं की विभिन्न जातियों को नकारात्मक रूप में दिखा कर फिल्म के मुस्लिम कैरेक्टर को बेहतर दिखाने की कोशिश किया करता था। हालाँकि, भले ही तकलीफ से सही पर बॉलीवुड को रचनात्मकता के नाम पर संदेह का लाभ मिला लेकिन मीडिया द्वारा अमानवीय आतंकियों का मानवीय चित्रण एक खतरनाक चलन है। दरअसल खबरों में मानवीय भावनाओं का ये खेल आम लोगों को आतंकी से भावनात्मक रूप से जोड़ने के लिए खेला जाता है। एक नैरेटिव जैसा सेट किया जान लगता है जहाँ कोई खुद को उस आतंकी की जगह रख कर सोचने लगता है। ऐसी स्थिति में लोगों ने लिए यह बात मायने नहीं रखती कि जेल में बंद वो आतंकी कितना खूँखार है।
सारांश में माने तो यह आतंकी या अपराधी को एक पीड़ित मुस्लिम के तौर पर दिखाने की एक प्लानिंग होती है जिसे इमोशनल ब्लैकमेलिंग भी कहा जा सकता है। यहाँ हम कुछ इसी तरह के इमोशनल ब्लैकमेलिंग के बारे में चर्चा करेंगे जो समय-समय पर मीडिया के एक खास वर्ग द्वारा करने का प्रयास हुआ है।
हिज्बुल आतंकी रियाज नाइकू की तारीफ
द इंडियन एक्सप्रेस, हफ़िंगटन पोस्ट और द वायर जैसे संस्थानों ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिदीन के टॉप आतंकवादी रियाज़ नाइकू को ‘दर्जी का बेटा’ , ‘गणित शिक्षक’ और आतंकवादी समूह के ‘ऑपरेशनल प्रमुख’ जैसे नाम देते हुए लेख प्रकाशित किए थे। ‘द वायर’ ने तो अपने पूरे लेख में कहीं भी रियाज़ को ‘आतंकी’ तक नहीं लिखा था।
बताते चलें कि सुरक्षा बलों द्वारा मार गिराया गया आतंकी रियाज़ नायकू कश्मीर में कई हमलों को अंजाम दे चुका था। उस पर नए आतंकियों की भर्ती और अपहरण जैसे आरोप भी थे। कुछ आतंकी समर्थकों और उनके प्रचारकों ने उसके लिए गम भरे गाने लिखे और भारतीय शासन द्वारा घोषित आतंकवादी को ‘शहीद का दर्जा’ देने का प्रयास किया।
शाहरुख पठान
2020 दिल्ली दंगों के मुख्य आरोपित शाहरुख़ पठान के खिलाफ जैसे ही दिल्ली कोर्ट ने आरोप तय किए थे वैसे ही रवीश कुमार ने उसके बारे में भ्रम पैदा करने की कोशिश की थी। रवीश ने शाहरुख़ पठान को अनुराग मिश्रा साबित करने का असफल प्रयास किया था। लगभग यही कोशिश द क्विंट ने भी की थी। तब रवीश कुमार NDTV इंडिया में काम करते थे, जो फ़िलहाल बेरोजगार हैं। 26 फरवरी 2020 की घटना पर किए गए शो में रवीश कुमार ने दावा किया था कि पुलिस ने शाहरुख़ को 1 दिन पहले यानी 25 फरवरी को ही गिरफ्तार कर लिया था। तब रवीश ने पुलिस के दावों के उलट जाते हुए सोशल मीडिया की रिपोर्ट्स के आधार पर शाहरुख़ को अनुराग सबित करने का प्रयास किया था।
दंगे के इसी आरोपित शाहरुख़ द्वारा दिल्ली पुलिस के जवान पर पिस्टल तानने की घटना को ‘द क्विंट’ ने अपने लेख में बेशर्मी से ‘आत्मविश्वास’ का नाम दिया था। इस आत्मविश्वास के पीछे हमलावरों द्वारा मास्क न पहनने की घटना को सकारात्मक कदम बताने की कोशिश की गई है।
यासीन मलिक
भारतीय वायुसेना के जवानों के कातिल और पाकिस्तान परस्त आतंकी यासीन मलिक की करतूतों को हिंदुस्तान टाइम्स ने ‘संघर्ष का लंबा इतिहास’ बता कर प्रकाशित किया था। कश्मीर को भारत से अलग करने के मंसूबे रखने वाले इस आतंकी ने वहाँ के गैर मुस्लिमों पर भी कई हमले किए थे। फिलहाल यासीन मलिक जेल में अपने गुनाहों की सजा काट रहा है।
शरजील इमाम
CAA-NRC हिंसा के दौरान चर्चा में आए शरजील इमाम का पूर्वोत्तर को देश से अलग करने की मंशा का वीडियो काफी वायरल हुआ था। लेकिन बावजूद इसके द क्विंट की लीगल लेखिका मेखला सरन ने शरजील इमाम के जामिया हिंसा में संलिप्तता को आत्मरक्षा जैसा दिखाने का प्रयास किया गया है। द क्विंट की इस कानूनी समाचार विश्लेषिका ने शरजील इमाम के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए गए थे।
तब मेखला सरन ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश को पेश सबूतों पर विचार करने की नसीहत दे डाली थी। शरजील द्वारा काटी जा रही जेल को भी मेखला ने स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन बताया था।
ज़ाकिर मूसा
कश्मीर घाटी में कभी टॉप मोस्ट वांटेड रहे अंसार गजवत-उल-हिंद के प्रमुख आतंकी जाकिर मूसा को सुरक्षाबलों ने 24 मई 2019 को मार गिराया था। ज़ाकिर मूसा के का संगठन अल-कायदा से कनेक्टेड था। ज़ाकिर मूसा के मारे जाने पर ‘न्यूज़ 18’ ने उसे इंजीनियर का बेटा बताया था। उस लेख में यह साबित करने की कोशिश की गई थी कि ज़ाकिर मूसा ने पिता के पास बहुत पैसे होने के बावजूद ऐशोआराम के जीवन का त्याग कर दिया।
ओसामा बिन लादेन
द गार्जियन द्वारा साल 2018 में ओसामा बिन लादेन की माँ का इंटरव्यू लिया गया था। यह इंटरव्यू उन तमाम बिंदुओं पर केंद्रित रखा गया था जिस से लोगों में ओसामा के लिए सहानुभूति जगे। इस इंटरव्यू के बाद छपे लेख में खास तौर पर लादेन के बचपन का भावनात्मक तौर पर जिक्र किया गया था। इस लेख का शीर्षक ‘My Son Osama’ दिया गया था। इसी इंटरव्यू में कुछ ऐसे लोगों को खासतौर पर बताया गया है जो ओसामा को भगवान के जैसा मानते हैं। ओसामा को अमेरिकी सील कमांडो ने पाकिस्तान में उसके घर से खोज कर मार गिराया था।
उपरोक्त तमाम बातों के एक कॉमन बात ये है कि ये इमोशनल ब्लैकमेलिंग के लेख केवल मुस्लिम अपराधियों के लिए लिखे जाते हैं। इसी प्रकार के शाब्दिक समर्थन पाने वालों में वो मतान्ध भी शामिल होते हैं, जो हिन्दुओं को काफिर बता कर उनकी हत्या करते हैं। हिंदू पीड़ितों/मृतकों का अमानवीयकरण करते हैं। कई बार तो इस खास चित्रण के लिए आतंकवाद और चरमपंथ पीड़ित हिन्दुओं को ही दोषी ठहरा दिया जाता है।
उदाहरण के लिए दिल्ली दंगों में चाकुओं से गोद डाले गए IB अधिकारी अंकित शर्मा के बेरहम कातिलों के लिए मानवीय पक्ष खोज कर लाने वालों ने मृतक और उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदनहीनता का प्रदर्शन किया था।