दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। याचिका में हिन्दू मैरिज एक्ट 1956 के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात कही गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि इस अधिनियम में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि शादी आदमी और औरत के बीच ही होनी चाहिए। सोमवार 14 सितंबर 2020 को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि वह इस याचिका का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा कानून, समाज और मूल्य मान्यता नहीं देते हैं। हिन्दू मैरिज एक्ट समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं देता है। इस क़ानून के तहत सिर्फ एक आदमी और औरत के बीच शादी हो सकती है। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि हमें भूलना नहीं चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया है। न्यायालय ने इस मुद्दे पर इसके अलावा कुछ और नहीं कहा है।
Hearing on petition seeking marriage equality for LGBTQ persons begins before the Delhi High Court #LGBTQ
— Live Law (@LiveLawIndia) September 14, 2020
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने यह भी कहा कि याचिका हलफ़नामा दायर किए जाने लायक नहीं है। इतना ही नहीं सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक विवाहों के बारे में कुछ नहीं कहा, इसलिए इसे मान्यता देने की माँग करने का कोई मतलब नहीं है। वहीं मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश प्रतीक जालान की पीठ ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा हमने मामले को खुले विचारों से समझा है।
Hearing on petition seeking marriage equality for LGBTQ persons begins before the Delhi High Court #LGBTQ
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उन्होंने कहा हमने मुद्दे को इस आधार पर भी समझा है कि दुनिया में कितने बदलाव हो रहे हैं। इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे लोगों की सूची सौंपने के लिए कहा जिन लोगों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह का रजिस्ट्रेशन करने से मना कर दिया गया था। वहीं केंद्र सरकार ने क़ानून और संस्कृति का हवाला देते हुए समलैंगिक विवाह का विरोध किया। इस मामले पर अगली सुनवाई 21 अक्टूबर को होगी।
यह याचिका अभिजीत अय्यर मित्रा, गोपी शंकर एम, गीति थंडानी और जी उर्वशी ने दायर की थी। अपनी याचिका में इन्होंने कहा था कि शादी का अधिकार छिनना समानता के अधिकार और जीने के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने अपनी याचिका में यह भी कहा था हिंदू मैरिज एक्ट ऐसा नहीं कहता कि शादी महिला-पुरुष के बीच ही हो। साल 2018 से भारत में समलैंगिकता अपराध नहीं है, लेकिन फिर भी समलैंगिक शादी अपराध क्यों है। जब एलजीबीटी (LGBT) समुदाय को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है, तो फिर शादी को मान्यता न देना संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन होगा।