कृषि कानूनों के कथित विरोध में दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के जरिए केंद्र सरकार को नकारात्मक रूप से पेश करने की कोशिश हो रही है। संत बाबा राम सिंह की मृत्यु के बाद सोशल मीडिया पर मोदी सरकार को क्रूर दिखाने के लिए तरह-तरह के पोस्ट किए गए। उनकी मृत्यु को शहादत से जोड़ा गया। कई राजनैतिक पार्टियों ने इसे आधार बना कर केंद्र सरकार को धिक्कारा। लेकिन संतराम की एक अनुयायी, जो पेशे से नर्स हैं ने इस पर सवाल उठाए हैं। वे कथित तौर पर बाबा का इलाज भी करती थीं।
सोशल मीडिया पर संत राम सिंह की आत्महत्या की खबरों के साथ-साथ इस नर्स की ऑडियो वायरल हो रही है। इसमें नर्स एक पंजाबी न्यूज चैनल को बता रही हैं कि वह लंबे समय से बाबा संत राम से जुड़ी हुई थीं। ये जो खबर आ रही है कि बाबा ने खुद को गोली मारी वो गलत है।
वह कहती हैं कि बाबा खुद को गोली मार ही नहीं सकते। इसके अलावा जो बाबा के नाम पर सुसाइड नोट जारी किया गया है, वह उनका नहीं है। यह उनकी हैंडराइटिंग नहीं है। वह कहती हैं कि जो शख्स सब को डटे रहने की सलाह देता हो, वो खुद को मार ही नहीं सकता।
The nurse who used to treat Sant Ram Singh Ji has raised several points.
— The Intrepid (@Theintrepid_) December 17, 2020
1. The handwriting of suicide does not Match with Sant Ji’s handwriting.
2. Sant ji can never commit suicide like this and why it’s a murder.
This matter must be investigated ASAP pic.twitter.com/qvV5MEmzvC
अमरजोत कौल नाम की महिला के इस दावे के बाद बाबा संत राम सिंह की ‘आत्महत्या’ वाले दावे पर सवाल उठने लगे हैं। लोगों का पूछना है कि यदि सुसाइड नोट में लिखी गई राइटिंग बाबा की नहीं है तो इस बात की कैसे पुष्टि होगी कि उन्होंने आत्महत्या की या फिर उन्हें मारा गया। सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि जब संत आत्महत्या जैसा अपराध कर ही नहीं सकते थे तो कहीं ये किसी की कोई साजिश तो नहीं?
बता दें कि कल से लेकर अब तक सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर तरह-तरह की बातें हुई हैं। विपक्षी पार्टियों ने हमेशा की तरह इस मुद्दे को भी खूब भुनाया। मोदी सरकार को क्रूर दिखाने के लिए ऐसे बिंदु ऱखे गए कि कोई भी शख्स अपने भीतर सरकार से नफरत करने लगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर संत बाबा की मृत्यु को सोशल मीडिया ने किस आधार पर सुसाइड घोषित किया? क्या उनके परिजनों से इस संबंध में कोई बात हुई? या सिर्फ एक नोट के आधार पर उनकी अप्राकृतिक मौत को आत्महत्या घोषित कर दिया गया।
How did Media declare that it’s ‘Suicide’? Because there was a letter? Did they verify whether it’s his handwriting? Where were his close people?
— Ankur Singh (@iAnkurSingh) December 17, 2020
If it’s suicide, where’s the gun?
Request @cmohry @mlkhattar ji to investigate this issue. https://t.co/gt8B8O4kVg
एक ऐसी घटना जिसे लेकर अमरजोत कौल जैसे बाबा के परिचित सवाल उठा रहे हैं, क्या उस पर आधिकारिक पुष्टि होना मीडिया के लिए कोई मायने नहीं रखता? क्या विपक्ष इतना अधीर हो गया है कि उनका सरोकार सिर्फ किसी मृत्यु पर राजनीति करने तक शेष है?
किसान आंदोलन की बाबत दावा किया जा रहा है कि अब तक कई किसान अपनी जान गँवा चुके हैं लेकिन सरकार के कान पर जूँ नहीं रेंग रही। राहुल गाँधी जैसे कॉन्ग्रेसी नेता मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कह रहे हैं कि मोदी सरकार क्रूरता की हर हद पार कर चुकी है। इसलिए अब वह जिद्द छोड़कर तुरंत कृषि विरोधी कानून वापस लेंं।
करनाल के संत बाबा राम सिंह जी ने कुंडली बॉर्डर पर किसानों की दुर्दशा देखकर आत्महत्या कर ली। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएँ और श्रद्धांजलि।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 16, 2020
कई किसान अपने जीवन की आहुति दे चुके हैं। मोदी सरकार की क्रूरता हर हद पार कर चुकी है।
ज़िद छोड़ो और तुरंत कृषि विरोधी क़ानून वापस लो! pic.twitter.com/rolS2DWNr1
पालघर जैसी घटनाओं पर बिलकुल मौन रहने वाले कॉन्ग्रेस के रणदीप सुरजेवाला भी संत की कथित आत्महत्या पर सवाल उठाते हैं,
“हे राम, यह कैसा समय। ये कौन सा युग। जहाँ संत भी व्यथित हैं। संत राम सिंह जी सिंगड़े वाले ने किसानों की व्यथा देखकर अपने प्राणों की आहुति दे दी।”
रणदीप सुरजेवाला ने आगे कहा कि ये दिल झकझोर देने वाली घटना है। प्रभु उनकी आत्मा को शांति दें। उनकी मृत्यु, मोदी सरकार की क्रूरता का परिणाम है।
विचार करने वाली बात है कि दिल्ली मे चल रहे कृषि आंदोलन पर कॉन्ग्रेस जैसी पार्टी संवेदना दिखा रही है, जिनका अपने शासित राज्यों में किसानों के प्रति रवैया ढुलमुल रहा है। यदि याद हो तो ज्यादा समय नहीं बीता जब एक किसान ने आत्महत्या की थी और वीडियो में कह कर गया था कि उसकी मौत का जिम्मेदार कॉन्ग्रेस नेताओं को माना जाए।
क्या एक जैसी स्थितियों में कॉन्ग्रेस का दोहरा रवैया इनकी मंशा पर सवाल नहीं उठाता। क्या उन तथाकथित किसान नेताओं की बात पर विश्वास करना सही है जो कुछ समय पहले तक सरकार से अपील कर रहे थे कि ऐसे कानून लाए जाएँ और अब उन्हीं के विरोध में चक्का-जाम करने की धमकी दे रहे हैं।
बात यदि केवल इस प्रदर्शन की है तो केंद्र सरकार कम से कम किसानों से बातचीत करके समस्या का समाधान करने के आगे तो आ रही है, लेकिन विपक्ष क्या कर रहा है? वह सिर्फ़ एजेंडा चलाने के लिए बेचैन हैं। संत राम सिंह की मृत्यु पर कहीं से भी एक सवाल तक का न उठना इसी बात का प्रमाण है कि इन लोगों ने ठान लिया है आसपास होने वाली हर मृत्यु को किसान आंदोलन में आहूति की तरह दिखाया जाएगा और एक बार भी नहीं पूछा जाएगा कि आखिर सुसाइड नोट पर क्यों सवाल उठे? इसके पीछे का सच क्या है? अगर वाकई ये एक आत्महत्या है और बाबा ने खुद को स्वयं गोली मारी तो वो बंदूक कहाँ हैं? क्या उनके करीबियों से एक भी बार पुष्टि नहीं होनी चाहिए? मामले की जाँच नहीं होनी चाहिए?