Thursday, November 14, 2024
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‘छात्राओं को पोशाक चुनने की आजादी’: सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के कॉलेज में हिजाब बैन पर लगाई रोक, कहा- तिलक एवं बिंदी पर रोक क्यों नहीं लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपको (कॉलेज प्रशासन ) अचानक पता चलता है कि देश में कई धर्म हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब पर बैन से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए मुंबई के एक कॉलेज के उस आदेश पर आंशिक रूप से रोक लगा दी है, जिसमें कॉलेज परिसर में ‘हिजाब, बुर्का और नकाब’ पहनने पर पाबंदी लगाई गई थी। शुक्रवार (09 अगस्त 2024) को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्राओं को यह चयन करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि वह क्या पहनें। इस मामले में सुनलाई करने हुए शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि शैक्षिक संस्थान छात्राओं पर अपनी पसंद को नहीं थोप सकते।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने ‘एन जी आचार्य और डी के मराठे कॉलेज’ चलाने वाली ‘चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी’ को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने उन्हें 18 नवंबर तक जवाब तलब करने को कहा है। पीठ ने मुस्लिम छात्राओं के लिए ‘ड्रेस कोड’ को लेकर उत्पन्न विवाद से केंद्र में आए कॉलेज प्रशासन से कहा कि छात्राओं को यह चयन करने की आजादी होनी चाहिए कि वे क्या पहनें। इसके लिए कॉलेज उन पर दबाव नहीं डाल सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आपको (कॉलेज प्रशासन ) अचानक पता चलता है कि देश में कई धर्म हैं। पीठ ने कहा कि अगर कॉलेज का इरादा छात्राओं की धार्मिक आस्था के प्रदर्शन पर रोक लगाना था, तो उसने ‘तिलक’ और ‘बिंदी’ पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया। कोर्ट ने एजुकेशनल सोसायटी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील माधवी दीवान से पूछा कि क्या छात्राओं के नाम से उनकी धार्मिक पहचान उजागर नहीं होती?

हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्राओं को कक्षा के अंदर बुर्का पहनने की अनुमति नहीं दी जा सकती और न ही परिसर में किसी भी धार्मिक गतिविधि की अनुमति दी जा सकती है। पीठ ने कहा कि उसके अंतरिम आदेश का किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए और किसी भी दुरुपयोग के मामले में ‘एजुकेशनल सोसायटी’ और कॉलेज को अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता है।

लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस कुमार ने आगे सवाल किया, “क्या आप किसी को तिलक लगाने से मना कर सकते हैं? क्या यह आपके दिशा-निर्देशों में शामिल नहीं है?” सुप्रीम कोर्ट उस याचिका की समीक्षा कर रहा था जिसमें जून माह के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें कॉलेज के प्रतिबंध लागू करने के निर्णय को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

ये विवाद 1 मई को शुरू हुआ जब चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ने अपने आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में एक नोटिस जारी किया, जिसमें संकाय सदस्य और छात्र दोनों शामिल थे। नोटिस में एक ड्रेस कोड जारी किया गया, जिसमें परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, टोपी, बैज और स्टोल पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह निर्देश बिना किसी कानूनी अधिकार के जारी किया गया था, जो लागू नहीं होता।

ये विवाद 1 मई को शुरू हुआ जब चेंबूर ट्रॉम्बे एजुकेशन सोसाइटी के एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज ने अपने आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप में एक नोटिस जारी किया, जिसमें संकाय सदस्य और छात्र दोनों शामिल थे। नोटिस में एक ड्रेस कोड जारी किया गया, जिसमें परिसर में हिजाब, नकाब, बुर्का, टोपी, बैज और स्टोल पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह निर्देश बिना किसी कानूनी अधिकार के जारी किया गया था, जो लागू नहीं होता।

इस मामले में छात्रों ने सबसे पहले कॉलेज प्रबंधन और प्रिंसिपल से संपर्क किया और अनुरोध किया कि हिजाब, नकाब और बुर्का पर प्रतिबंध हटा दिए जाएँ, क्योंकि उन्हें कक्षा में अपनी पसंद, सम्मान और निजता का अधिकार है। जब उनके अनुरोधों की अनदेखी की गई, तो उन्होंने इस मुद्दे को मुंबई विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और उप-कुलपति के साथ-साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष उठाया और हस्तक्षेप की माँग की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्रदान की जाए। कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर छात्रों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील अल्ताफ खान ने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि हिजाब पहनना इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा है। याचिका में कॉलेज की कार्रवाई को “मनमाना, अनुचित, कानूनी रूप से दोषपूर्ण और गलत” बताया गया। कॉलेज प्रबंधन ने प्रतिबंध का बचाव करते हुए दावा किया कि यह एक समान ड्रेस कोड लागू करने और अनुशासन बनाए रखने के लिए एक उपाय था, जिसका मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करने का कोई इरादा नहीं था। कॉलेज का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील अनिल अंतुरकर ने जोर देकर कहा कि ड्रेस कोड सभी धर्मों और जातियों के छात्रों पर लागू होता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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