कश्मीर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में देवी सरस्वती को समर्पित शारदा पीठ का ऐतिहासिक मंदिर शताब्दियों से हिंदू-बौद्ध विद्या का केन्द्र रहा है। कश्मीरी भाषा जिस शारदा लिपि में लिखी जाती थी, उसका भी आविष्कार इसी स्थान पर हुआ था।
हाल ही में कश्मीरी पंडित एवं पत्रकार आदित्य राज कौल उत्तरी कश्मीर के बुनियार में गए थे और वहाँ उन्होंने शारदा पीठ को लेकर इतिहासकार और लेखक रजा नजर बुनियारी से बातचीत की। उन्होंने इसका वीडियो इंस्टाग्राम पर पोस्ट किया है। पत्रकार ने बताया कि नजर बुनियारी 14 किताबें लिख चुके हैं और कृष्णागंगा या नीलम नदी/घाटी में प्राचीन शारदा मंदिर के जीर्णोद्धार और रख-रखाव के लिए तीन बार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की यात्रा कर चुके हैं।
बातचीत के दौरान आदित्य ने रजा नजीर से शारदा मंदिर और शारदा लिपि के महत्व के बारे में पूछा। इस पर उन्होंने कहा कि इस लिपि के बारे में लोगों के पास सीमित ज्ञान है। बहुत कम लोग जानते हैं इसके बारे में। इस लिपि में छपी किताबें उपलब्ध नहीं हैं या कह सकते हैं कि काफी कम हैं। स्थानीय लोगों को भी इसके बारे में नहीं पता है।
रजा नजीर ने आगे कहा, “जब रिसर्च होने लगा तब लोगों को पता चल रहा है कि यह कितना जरूरी है, क्योंकि वहाँ के एक प्रोफेसर साहब ने मुझसे कहा कि जब तक हम अपने इतिहास के बारे में, अपने स्मारक के बारे में, अपनी जमीन के बारे में, अपने मुल्क के बारे में नहीं जानेंगे तो सारी दुनिया का इतिहास पढ़कर हम क्या करेंगे। पहले अपने घर की खबर लो। फिर उन्होंने मुझे शारदा मंदिर के आस-पास की कुछ बातें बताई। मुझे लगता है कि जब से दुनिया बनी है, वहाँ पर हिंदू धर्म के स्मारक बने हुए हैं।”
इस दौरान उन्होंने हिंदू नाम के बारे में बताते हुए शारदा, नर्मदा, नारदा, सरस्वती, मधुमती का जिक्र किया, जो कि शारदा मंदिर के पास के नदियों के नाम हैं। वहाँ के स्कूल-कॉलेज के नाम भी हिंदू धर्म के मुताबिक हैं। अब वहाँ के लोगों को इसके बारे में पता चल रहा है। मंदिर में काफी तोड़-फोड़ की गई।
शारदा मंदिर और यूनिवर्सिटी की भाषा के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। जब से दुनिया बनी है, तब से वह है। उसे वहाँ के स्थानीय लोग उर्दू में दारूल-उलूम (Centre Of Knowledge) कहते हैं। शारदा लिपि के न आगे कोई जानते हैं, न पीछे कोई जानते हैं कि यह कब से यहाँ है। पिछले 7,000 सालों से यह लिट्रेचर में भी आ गई है।
इस लिपि में वहाँ पर चंद किताबें उपलब्ध हैं। इसके अलावा वहाँ पर लगी स्मारक और मूर्तियों के नीचे इस लिपि में लिखा हुआ है। जिसे वहाँ के लोग भी नहीं पढ़ पाते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि वह हिंदी और संस्कृत का मिश्रण है।
आगे आदित्य राज ने रजा नजीर से पूछा कि क्या पाकिस्तान और भारत की सरकार को करतारपुर साहिब बॉर्डर की तरह शारदा पीठ पर भी बात करना चाहिए। इसका जवाब देते हुए रजा ने कहा कि इस पर शारदा फाउंडेशन पीठ की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात हो गई है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही यह खुलने वाली है।
उल्लेखनीय है कि यह पीठ कश्मीरी पंडितों के लिए प्रसिद्ध पवित्र स्थलों में से एक है। यह नीलम नदी के किनारे है। यह भारत के उरी से करीब 70 किमी दूर है। यहाँ जाने के लिए दो रूट हैं। पहला मुजफ्फराबाद की तरफ से और दूसरा पुंछ-रावलकोट से। उरी से मुजफ्फराबाद वाला रूट कॉमन है। ज्यादातर लोग इसी रूट से जाते हैं।