श्रीकृष्ण जन्मस्थान और शाही ईदगाह विवाद (Sri Krishna Janmabhoomi Shahi Idgah) के मामले में मथुरा सिविल कोर्ट में चल रही सुनवाई पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने 8 हफ्ते के लिए सुनवाई पर रोक लगाई है। जिला जज ने 19 मई, 2022 को शाही ईदगाह विवादित ढाँचा हिंदुओं को सौंपे जाने की माँग वाली याचिका पर सिविल कोर्ट में सुनवाई करने का आदेश जारी किया था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जिला जज के इस आदेश को यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने इस मामले में जिला जज द्वारा दिए गए आदेश को पलट दिया है। मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस सलिल कुमार राय की सिंगल बेंच ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर 8 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है। अब 8 हफ्ते बाद होगी इस मामले में सुनवाई होगी।
दरअसल, यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। बोर्ड ने तर्क दिया कि मथुरा कोर्ट का आदेश बिना अधिकार क्षेत्र के पारित किया गया था, क्योंकि रिवीजन का मूल्यांकन 25,00,000 रुपए से अधिक था। इसलिए जिला जज के पास रिवीजन पर सुनवाई का आर्थिक क्षेत्राधिकार नहीं है। वहीं, अदालत ने सिर्फ वाद संख्या 176/2020 की सुनवाई पर ही रोक लगाई है।
मालूम हो कि भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को वादी बनाकर 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश करने वाली सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री के केस को जिला जज राजीव भारती की अदालत ने 19 मई 2022 को सुनवाई योग्य मानते हुए दर्ज कर लिया था। करीब दो वर्ष की लंबी अदालती प्रक्रिया के बाद उनकी याचिका को अदालत ने दर्ज करने संबंधी निर्णय दिया। अदालत के फैसले पर अधिवक्ता रंजना ने कहा था कि यह भगवान श्रीकृष्ण विराजमान की जीत है।
गौरतलब है कि रंजना अग्निहोत्री ने 25 सितंबर 2020 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर दावा पेश किया था, जिसमें उन्होंने वर्ष 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही ईदगाह के बीच हुए समझौते को गलत बताकर इसे रद्द करने की माँग की थी। उनकी याचिका में बताया गया है कि 20 जुलाई 1973 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट और शाही मस्जिद इंतजामिया कमेटी के मध्य बीच समझौता हुआ था, जिसके तहत परिसर की जमीन को ईदगाह इंतजामिया कमेटी को दे दिया गया। बाद में समझौते की डिक्री (न्यायिक निर्णय) 7 नवंबर 1974 को हुई।