सिक्किम उच्च न्यायालय ने हाल ही में लगभग 3 वर्षीय बच्ची से छेड़छाड़ के आरोपित को बरी कर दिया। न्यायालय ने गवाहों के इस दावे पर संदेह व्यक्त किया कि बच्ची को घबराया हुआ पाया गया था, क्योंकि आरोपित ने उसके निजी अंगों को छुआ था। इस पर कोर्ट ने कहा कि 3.5 साल की बच्ची को शायद ही यह समझ हो कि कोई उसके निजी अंगों को छू रहा है, जिससे वह घबरा जाए।
न्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान और न्यायमूर्ति मीनाक्षी मदन राय की खंडपीठ ने 5 जून के अपने फैसले में कहा, “गवाहों ने नाबालिग बच्ची पर कथित यौन हमले के बारे में अलग-अलग बयान दिए हैं। हमारी राय में साढ़े तीन साल की बच्ची मुश्किल से ही समझ पाएगी कि कोई व्यक्ति उसके निजी अंग को कैसे छू रहा है। वह यह समझकर कैसे घबरा जाएगी कि यह यौन हमला है। यह अविश्वसनीय है।”
इसके बाद न्यायालय ने आखिरकार उस आरोपित को बरी कर दिया, जिस पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत आरोप लगाया गया था। न्यायालय ने यह भी बताया कि अपराध किए जाने की संभावना को स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं था। कोर्ट ने यह भी पाया कि अपराध के तीन सप्ताह पर इस मामले में शिकायत दर्ज कराई गई थी।
दरअसल, इस मामले में निचली अदालत ने आरोपित को पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था और बीस साल जेल की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ आरोपित ने सिक्किम हाई कोर्ट में याचिका दी थी। इस मामले में बच्ची के नाबालिग भाई के आरोप के आधार पर 25 जून 2021 को मामला दर्ज कराया गया था।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, नाबालिग लड़के ने दावा किया था कि उसने अपीलकर्ता को उसकी बहन के मुँह और गुदा में उँगली डालते देखा था। अदालत को बताया गया कि उसने बाद में अपने माता-पिता को इसके बारे में बताया। बच्ची के पिता ने कोर्ट को बताया कि लड़के ने उसे बताया कि अपीलकर्ता ने उसकी बच्ची के निजी अंगों को छुआ था।
दूसरी ओर, बच्ची की माँ ने कहा कि अपीलकर्ता ने उसकी बेटी की फ्रॉक उतारी और उसके पूरे शरीर को छुआ। उसकी बच्ची की योनि से खून बह रहा था। बच्ची की माँ ने यह भी कहा कि उसने देखा कि उसकी नादान बेटी घबराई हुई थी और इसके बारे में बताने में असमर्थ थी। कोर्ट ने माता-पिता के बयान में कई खामियाँ पाईं। इसके आधार पर अपीलकर्ता को बरी कर दिया।