दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट स्टीफंस कॉलेज (St. Stephen’s College) की दाखिला प्रक्रिया से जुड़ी याचिका पर अपना फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने कॉलेज को 2022-23 में दाखिले के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से तय की गई नीतियों का पालन करने को कहा। सोमवार (12 सितंबर 2022) को कोर्ट ने अपने दिए फैसले में सेंट स्टीफंस कॉलेज को अपना प्रॉस्पेक्टस वापस लेने का निर्देश दिया।
संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार को दिल्ली हाई कोर्ट ने पूर्ण स्वतंत्र (बिना शर्त के, निरंकुश) नहीं माना। इसी आधार पर कोर्ट ने सेंट स्टीफंस कॉलेज (St. Stephen’s College) को 2022-23 में दाखिले के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी की ओर से तय की गई नीतियों का पालन करने कहा।
दिल्ली हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों से जुड़े संस्थान (जैसा कि दिल्ली का सेंट स्टीफंस कॉलेज है) अपने हिसाब से छात्र-छात्राओं को दाखिला देने के लिए यूनिवर्सिटी पर दबाव नहीं डाल सकती है।
सेंट स्टीफंस कॉलेज और CUET से जुड़ा मामला
दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने सेंट स्टीफंस कॉलेज को अपना प्रॉस्पेक्टस वापस लेने का निर्देश दिया। सेंट स्टीफंस कॉलेज (St. Stephen’s College) के प्रॉस्पेक्टस में लिखा हुआ था कि उनके यहाँ एडमिशन लेने के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के 85% जबकि उनके खुद के कॉलेज वाले इंटरव्यू को 15% वेटेज दिया जाएगा। कोर्ट में याचिका दाखिल होने की वजह भी यही बनी।
कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) के स्कोर को 100 पर्सेंट वेटेज देना है। यह नियम हर कॉलेज, हर यूनिवर्सिटी पर लागू है। सेंट स्टीफंस कॉलेज ने लेकिन इस नियम से अलग जाकर अपने लिए स्पेशल नियम खुद ही बनाया। और इसके लिए उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन के लिए अल्पसंख्यकों के अधिकार का तर्क रखा।
दिल्ली हाई कोर्ट में इस संबंध में जो जनहित याचिका दाखिल की गई थी, वो कनिका पोद्दार नाम की एक लॉ स्टूडेंट ने दायर की थी। दूसरी याचिका सेंट स्टीफंस कॉलेज की थी। जनहित याचिका में कोर्ट से सेंट स्टीफंस कॉलेज को यह निर्देश दिए जाने की माँग की गई थी कि वह कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) में मिले मार्क्स के आधार पर एडमिशन दे।
बता दें कि अनुच्छेद 30 देश में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों को कई अधिकार देता है। इसके तहत सभी अल्पसंख्यकों को देश में अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों को स्थापित और संचालित करने का अधिकार होगा।