सर्वोच्च न्यायालय ने सोशल मीडिया में साम्प्रदायिक हैशटैग और इस्लामोफोबिक कंटेंट पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका की सुनवाई को अगले सप्ताह के लिए टाल दिया है। मुख्य न्यायधीश एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता को केंद्र सरकार के नए आईटी रूल्स को ठीक से पढ़ने के लिए कहा है। कोर्ट ने कहा है कि जिन मुद्दों को लोग भूल रहें हैं, आप उन्हें फिर से उठाना चाहते हैं। याचिकाकर्ता को नए आईटी एक्ट को पढ़कर होमवर्क करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया गया है।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश जस्टिस एनवी रमणा और एएस बोपन्ना की पीठ ने की। वकील खाजा एजाजुद्दीन द्वारा दायर की गई याचिका में इस तरह के पोस्ट सोशल मीडिया पर डालने वालों के खिलाफ एनआईए या सीबीआई से जाँच कराने की माँग की गई है। पिछले साल निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात से कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने और गाइडलाइन उल्लंघन को लेकर जो आक्रोश देखा गया था याचिकाकर्ता को उससे आपत्ति है।
याचिका में कहा गया है, “भारत में चल रहे सभी सोशल मीडिया नेटवर्क को एक खास समुदाय की भावनाओं को आहत करने या अपमानित करने वाले इस्लामोफोबिक पोस्ट या संदेशों को फैलाने से रोकें। नफरत भरे संदेश को फैलाने वाले यूजर और ट्विटर के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए भारत सरकार को निर्देश दें।”
मामले की सुनवाई शुरू होते ही मुख्य न्यायधीश ने वकील खाजा से पूछा कि जब लोग पहले से ही इन मुद्दों को भूल रहे हैं तो फिर आप इसे फिर से क्यों उठाना चाहते हैं? क्या आपने नए आईटी नियमों को पढ़ा है? इसके जवाब में वकील खाजा ने दावा किया कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए आईटी नियम सांप्रदायिक प्रचार को संबोधित नहीं करता है। इस पर सीजेआई ने कहा कि याचिकाकर्ता नए नियमों को दिखाएँ और बताएँ कि उसमें इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता वकील को सही तरीके से होमवर्क करने की नसीहत दी है।
इसके साथ ही मुख्य न्यायधीश ने सुनवाई के दौरान कहा कि इसी तरह की एक याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी दायर की थी। बता दें कि इससे पहले याचिकाकर्ता ने तेलंगाना हाईकोर्ट में भी यही याचिका दायर की थी, लेकिन वहाँ याचिका खारिज कर दी गई।