दशकों से अटके पड़े अयोध्या विवाद की बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। 40 दिनों की सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है। 23 दिनों के भीतर फैसला आने की उम्मीद है। पीठ ने संबंधित पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ (राहत में बदलाव) के मुद्दे पर लिखित दलील दाखिल करने के लिए 3 दिन का समय दिया है।
सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चन्द्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई की है। हाई कोर्ट ने अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बॉंटने का आदेश दिया था।
सुनवाई के 40वें दिन एक हिन्दू पक्षकार ने दलील दी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकार यह साबित करने में विफल रहे हैं कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल पर मुगल बादशाह बाबर ने मस्जिद का निर्माण किया था। वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि मुस्लिम पक्ष का यह दावा था कि मस्जिद का निर्माण शासन की जमीन पर हुकूमत (बाबर) द्वारा किया गया था, लेकिन वे इसे सिद्ध नहीं कर पाए हैं।
वैद्यनाथन सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर मालिकाना हक के लिए 1961 में दायर मुकदमे का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि मुस्लिम पक्ष प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत के तहत विवादित भूमि पर मालिकाना हक का दावा कर रहे हैं तो उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि मूर्तियॉं या मंदिर पहले इसके असली मालिक थे।
वैद्यनाथन ने कहा कि अयोध्या में दूसरे समुदाय के पास नमाज पढ़ने के लिए अनेक स्थान हो सकते हैं, लेकिन हिन्दुओं के लिए तो भगवान राम का जन्मस्थान एक ही है जिसे बदला नहीं जा सकता। एक अन्य हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद की ओर से वकील रंजीत कुमार ने कहा कि इस जगह श्रद्धालुओं का पूजा-अर्चना करने पहले से ही अधिकार था। मुस्लिमों की आस्था के स्थान पर इस जमीन का स्वरूप नहीं बदला जा सकता है।