सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (10 मई 2014) को शराब घोटाले में जेल में बंद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 1 जून 2024 तक अंतरिम जमानत दे दी। इससे ठीक एक दिन पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम जमानत का विरोध किया था और कहा था कि इससे एक गलत परंपरा की शुरुआत होगी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया है। अंतरिम बेल से संबंधित सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि शराब नीति मामले में केस अगस्त 2022 में दर्ज किया गया था और केजरीवाल को लगभग डेढ़ साल बाद मार्च 2024 में गिरफ्तार किया गया।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति मामले में ईडी द्वारा केजरीवाल की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी। बता दें कि अरविंद केजरीवाल को प्रवर्तन निदेशालय ने 21 मार्च को गिरफ्तार किया था और तब से वह हिरासत में हैं।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्रीय एजेंसी ने 9 मई को कहा था कि चुनाव प्रचार का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और ना ही कानूनी या संवैधानिक अधिकार है। अगर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाती है तो यह एक मिसाल कायम करेगा, जो सभी बेईमान राजनेताओं को अपराध करने और फिर चुनाव की आड़ में जाँच से बचने की अनुमति देगा।
अपने हलफनामे में ED ने कहा, “अभिसाक्षी की जानकारी में अभी तक किसी भी राजनीतिक नेता को चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी गई है। ये तो चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार भी नहीं हैं। यहाँ तक कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को भी चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत नहीं दी जाती है, अगर वह हिरासत में है।”
केंद्रीय एजेंसी ने कहा, “पिछले 5 वर्षों में लगभग 123 चुनाव हुए हैं। यदि चुनाव प्रचार के उद्देश्य से अंतरिम जमानत़ दी जानी है तो किसी भी राजनेता को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और ना ही न्यायिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि चुनाव पूरे वर्ष होते रहते हैं।” ED ने तर्क दिया कि संघीय ढाँचे में हर चुनाव महत्वपूर्ण है।
हलफनामे में आगे कहा गया है, “हर स्तर पर हर राजनेता यह तर्क देगा कि यदि उसे अंतरिम जमानत पर रिहा नहीं किया गया तो उसे अपरिवर्तनीय परिणाम भुगतने होंगे। अकेले धनशोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत वर्तमान में कई राजनेता हैं, जो न्यायिक हिरासत में हैं और उनके मामलों की जाँच सक्षम अधिकारियों द्वारा की जा रही है।”
केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय ने आगे तर्क दिया, “अदालतें उनकी (नेताओं की) हिरासत में बरकरार रख रही हैं। गैर-पीएमएलए अपराधों में पूरे देश में कई राजनीतिक नेता न्यायिक हिरासत में होंगे। इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि याचिकाकर्ता द्वारा विशेष उपचार की विशेष प्रार्थना को स्वीकार किया जाए।”