सुप्रीम कोर्ट में दो अलग-अलग मामलों की सुनवाई में मुस्लिम पक्ष को तगड़ा झटका लगा है। काशी स्थित ज्ञानवापी ढाँचा मामले में सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने व्यास तहखाने में पूजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। वहीं, मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला में जारी ASI की सर्वे पर भी रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
ज्ञानवापी मामले पर सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी परदीवाला की बेंच ने कहा कि 31 जनवरी 2024 के आदेश के चलते नमाज प्रभावित नहीं हुई है। ज्ञानवापी ढाँचा परिसर में स्थित व्यास तहखाने में हिंदुओं द्वारा की जा रही पूजा के खिलाफ अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमिटी ने याचिका लगाई थी। अब इस याचिका पर जुलाई के तीसरे सप्ताह में सुनवाई होगी।
सुनवाई के दौरान मस्जिद पक्ष के वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि निचली अदालत ने व्यास तहखाने में पूजा के अपने आदेश को लागू करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया था, लेकिन सरकार ने उसे तुरंत लागू कर दिया। हाई कोर्ट ने भी इस मामले राहत नहीं दी। हुजैफा ने सर्वोच्च न्यायालय से माँग की कि परिसर में स्थित व्यास तहखाने में पूजा पर तुरंत रोक लगाई जाए।
सुनवाई के दौरान भारत के CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “तहखाने का प्रवेश दक्षिण से और मस्जिद का उत्तर से है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित नहीं करते हैं। फिलहाल पूजा और नमाज दोनों अपनी-अपनी जगह जारी रहे।” मस्जिद कमिटी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें हिंदुओं को पूजा करने की अनुमति देने वाले निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया था।
दूसरी तरफ धार के भोजशाला में ASI की जारी सर्वे पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एएसआई सर्वे के नतीजे के आधार पर उसकी अनुमति के बिना कोई फैसला न लिया जाए। बता दें कि भोजशाला पर मुस्लिम भी दावा करते हैं। इसी को लेकर हिंदुओं की याचिका पर ASI सर्वे कराई जा रही है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर ASI द्वारा भोजशाला का जारी सर्वे 11वें दिन भी जारी रहा। ASI के अधिकारी सुबह लगभग 8 बजे विवादित स्थल पहुँच गए और आगे का शुरू कर दिया। इस दौरान सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध किए गए हैं और भारी संख्या में पुलिस बल को तैनात किया गया है।
भोजशाला को लेकर हिंदू समाज का दावा है कि यह माता वाग्देवी का मंदिर है, जिसे राजा भोज परमार ने बनवाया था। इतिहास में भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि अंग्रेज यहाँ से माँ सरस्वती की प्रतिमा निकाल कर इंग्लैंड ले गए, जो आज भी लंदन के संग्रहालय में सुरक्षित है। वहीं, मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला मस्जिद कहता है, जो 11वीं सदी है।
इस पूरे विवाद की शुरुआत 1902 से बताई जाती है। कहा जाता है कि धार के शिक्षा अधीक्षक काशीराम लेले ने मस्जिद के फर्श पर संस्कृत के श्लोक खुदे देखे थे। उन्होंने इसे भोजशाला बताया था। साल 1935 में धार के परमार महाराजा ने इमारत के बाहर तख्ती टंगवा दी, जिस पर भोजशाला और मस्जिद कमाल मौलाना लिखा था। तब से यह मामला जारी है।