सुप्रीम कोर्ट ने देश में मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की माँग करने वालों की दलीलें सुनना चालू कर दिया है। कोर्ट ने यह माँग करने वालों से पूछा है कि आखिर यह देश में विवाह को लेकर क्या स्थिति पैदा करेगा। इससे पहले केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को मान्यता देने का पक्ष लेने से इनकार किया है।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बुधवार (17 अक्टूबर, 2024) को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की याचिकाएँ डालने वालों की दलीलें सुनना चालू किया और इस दौरान कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या पूछा?
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि यदि वह उस कानून को खत्म कर दे, जिसके अंतर्गत पत्नियां अपने पति पर रेप का आरोप नहीं लगा सकतीं,तो क्या वह कोई नया अपराध परिभाषित कर रहा होगा। इसके अलावा कोर्ट ने इसे मैरिटल रेप घोषित करने के परिणामों पर भी चर्चा की।
जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पूछा, “अगर पति सेक्स करने को कहता है और पत्नी मना कर देती है तथा वह मानती है कि उसके पति को ऐसा नहीं करना चाहिए था। इसके बाद अगले दिन वह जाकर FIR भी दर्ज करा देती है कि ऐसा हुआ, तो आपका इस पर क्या नजरिया है। हम इस पर आपकी मदद चाहते हैं।”
मैरिटल रेप की माँग करने वालों की तरफ से पेश हुईं वकील करुणा नंदी ने इस पर कहा, “वर्तमान क़ानून सेक्स को लेकर मेरा ना कहने या फिर ख़ुशी से हाँ कहने का अधिकार छीन लेता है। कानून में दी गई छूट के कारण मैं (महिलाएँ) एक यौन वस्तु और कानूनी चीज बन कर रह गई हूँ।” करुणा नंदी ने दावा किया कि पितृसत्ता के खिलाफ एक लड़ाई है।
इस पर जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बड़ा सवाल उठाया। उन्होंने कहा, “तो आपका तर्क है कि यदि बीवी सेक्स को लेकर ‘नहीं’ कह दे तो पति के पास केवल एक विकल्प तलाक दाखिल करना है।” इस पर करुणा नंदी ने कहा पति को पत्नी की हाँ का इंतजार करना चाहिए और अगर वह तलाक लेना चाहता है तो वह भी ले सकता है।
करुणा नंदी ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने पर नया कानून बनाने के लिए सवाल पर कहा कि अभी के क़ानून के तहत ही यह किया जा सकता है। नंदी ने यह दलील भी दी कि किसी पति का अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध बनाना या फिर किसी दूसरे व्यक्ति का एक महिला के साथ संबंध बनाना एक समान हैं। नंदी ने नेपाल का उदाहरण भी दिया।
केंद्र ने क्या बताया था?
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर ‘मैरिटल रेप’ को अपराध बनाने को अत्यधिक कठोर और असंगत बताया है। अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार कानूनी से अधिक सामाजिक मुद्दा है, जिसका सीधा असर आम समाज पर पड़ता है।
केंद्र ने तर्क दिया कि अगर ‘वैवाहिक बलात्कार’ को अपराध माना भी जाता है तो ऐसा करना सुप्रीम कोर्ट के बस की बात नहीं है। इस मुद्दे पर सभी हितधारकों से उचित परामर्श किए बिना या सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखे बिना निर्णय नहीं लिया जा सकता।
केंद्र सरकार ने कहा कि विवाह में अपने जीवनसाथी से उचित यौन संबंध बनाने की निरंतर अपेक्षा की जाती है। ऐसी अपेक्षाएँ पति को अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उससे यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने का अधिकार नहीं देती हैं। केंद्र ने कहा कि इस तरह के कृत्य के लिए बलात्कार विरोधी कानूनों के तहत किसी व्यक्ति को दंडित करना अत्यधिक और असंगत हो सकता है।
अभी क्या है कानून?
अभी के कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है, से उसकी सहमति के बगैर सेक्स करता है, तो इसे रेप नहीं माना जाता। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 63 के तहत, जिसमें रेप को लेकर कानून बनाए गए हैं, उसमें इस समबन्ध में एक अपवाद जोड़ा गया है। यह अपवाद संख्या 2 के नाम से प्रचलित है। पत्नी की बगैर सहमति के सेक्स करने को मैरिटल रेप घोषित करने की माँग करने वाले इस अपवाद को समाप्त करने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट पहुँचे हैं।
क्या होता है मैरिटल रेप?
दरअसल, पत्नी की अनुमति के बिना पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने को मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार कहा जाता है। इसे पत्नी के खिलाफ एक तरह की घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न माना जाता है। कई देशों में इसके लिए कानून भी बनाए गए हैं। हालाँकि, भारत में वैवाहिक संस्था बचाने के नजरिए से इसे अपराध का दर्जा नहीं दिया गया है।
मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की माँग का लगातार विरोध भी होता आया है। राष्ट्रीय पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहान ने इससे विवाह पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंताएँ जताई हैं। उन्होंने इसको लेकर कहा, “आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें पुरुषों को घरेलू मामलों में झूठा फँसाया जाता है। इस कारण से पुरुषों में आत्महत्या की दर भी बहुत अधिक बढ़ गई है। जब पुरुषों के खिलाफ इस सीमा तक पहले से ही दुराग्रह है तो ऐसे में वैवाहिक बलात्कार तो उसके खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार बन जाएगा।”
उन्होंने मैरिटल रेप की परिभाषा पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस संबंध में कहा, “आप ही बताएँ कि कैसे और कब कोई यह तय कर सकेगा कि बेडरूम में आखिर क्या हुआ था और इसकी सीमा में क्या-क्या आएगा? एक पति और पत्नी के बीच पचास तरह की लड़ाई होती है। ऐसे में कैसे तय हो पाएगा कि कब बलात्कार हुआ और कब आपसी सहमति से दोनों के बीच संबंध बने? यदि ऐसा ही रहेगा तो आज के युवा शादी करने से बचते फिरेंगे। वे शादी ही नहीं करेंगे, क्योंकि उन्हें इस बात का भय हमेशा रहेगा कि कब उन पर बलात्कारी होने का ठप्पा लग जाएगा?”