नवरात्र के दौरान सुप्रीम कोर्ट कैंटीन में मांसाहारी भोजन परोसने के निर्णय के खिलाफ वकीलों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCORA) को पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि बार के सदस्यों की भावनाओं को ध्यान में रखे बिना यह निर्णय लिया गया है।
अधिवक्ता रजत नायर द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि यह निर्णय बार की ‘बहुलतावादी परंपराओं’ के अनुरूप नहीं था। यह असहिष्णुता और ‘एक दूसरे के प्रति सम्मान की कमी’ को दर्शाता है। इस विरोध का सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले कम-से-कम 133 वकीलों ने समर्थन किया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट कैंटीन के उस फैसले पर चिंता जताई थी जिसमें नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि के त्योहार के दौरान मेनू को केवल नवरात्रि के खाने तक सीमित रखने का फैसला किया था। इसको लेकर उन्होंने विरोध किया था और कहा था कि इससे गलत परंपरा की शुरुआत होगी। विरोध के बाद शुक्रवार (4 अक्टूबर 2024) को फैसला वापस ले लिया गया।
नायर ने इस फैसले को वापस लेने के खिलाफ लिखे पत्र में कहा कि मांसाहारी भोजन की सेवा फिर से शुरू करने का फैसला SCBA के पदाधिकारियों के निर्देश पर लिया गया। नायर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट को नवरात्रि के दौरान केवल गुरुवार और शुक्रवार को काम करना था। इसलिए मुख्य कैंटीन से इन दो दिनों के लिए नवरात्रि भोजन उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया था।
पत्र में कहा गया है, “मैं आपको पत्र लिखकर एससीबीए और एससीओआरए द्वारा नवरात्रि उत्सव के दौरान मांसाहारी खाद्य पदार्थों और प्याज/लहसुन युक्त खाद्य पदार्थों की सेवा के संबंध में हमारे बार के कुछ सम्मानित सदस्यों द्वारा लिखे गए दिनांक 3.10.2024 के पत्र के अनुसरण में की गई एकतरफा कार्रवाई के खिलाफ औपचारिक रूप से अपना कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहता हूँ।”
उन्होंने अपने पत्र में आगे कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट परिसर में संचालित 6-7 कैंटीनों में से किसी एक को दो दिनों के लिए बार के सदस्यों को नवरात्रि का भोजन परोसने की अनुमति दी जाती तो कोई अपूरणीय क्षति या नुकसान नहीं होता। यह तब और भी अधिक होता जब अन्य कैंटीन पहले से ही अपने मेनू सूची में मांसाहारी भोजन और प्याज, लहसुन आदि युक्त भोजन परोस रहे थे।”
नायर ने आगे कहा, “हालाँकि, एससीबीए/एससीओआरए के पदाधिकारियों द्वारा बार के शेष सदस्यों से परामर्श किए बिना या उनकी भावनाओं पर विचार किए बिना एकतरफा कार्रवाई करने के उपरोक्त कृत्य ने मुझे इस संबंध में आधिकारिक रूप से अपना विरोध दर्ज कराने के लिए आपको पत्र लिखने के लिए बाध्य किया है, ताकि भविष्य में ऐसी असंगत घटनाएँ न हों।”