आपराधिक मानहानि मामले में कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को सजा होने के बाद उनकी संसद सदस्यता रद्द होने पर देश में राजनीतिक बवाल हो गया है। अब सुप्रीम कोर्ट में जनप्रतिनिधि अधिनियम की धारा 8(3) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में दोष सिद्ध होने के बाद निर्वाचित विधायी निकायों के प्रतिनिधियों की स्वत: अयोग्यता को चुनौती दी गई है। याचिका में सामाजिक कार्यकर्ता आभा मुरलीधरन ने कहा है कि धारा 8(3) के तहत अयोग्यता को मनमाना और अवैध घोषित किया जाए।
Petition filed in Supreme Court challenging automatic disqualification of representatives of elected legislative bodies after conviction. The plea challenges the constitutional validity of Section 8(3) of the Representatives of People’s Act.
— ANI (@ANI) March 25, 2023
The plea seeks direction that… pic.twitter.com/eCCpz8Vr8Q
बता दें कि जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (3) के तहत अगर किसी सांसद या विधायक को दोषी ठहराया जाता है और उसे दो साल या उससे अधिक की सजा मिलती है तो उसकी सदस्यता जा सकती है। इसमें अंतिम निर्णय सदन के स्पीकर पर छोड़ा गया है। हालाँकि, बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसी स्थिति में सदस्यता स्वत: चली जाएगी।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि लिली थॉमस का फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 1951 के इस अधिनियम की धारा 8(4) को रद्द कर दिया है। इसका राजनीतिक दलों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। धारा 8(4) सजायाफ्ता विधायकों को सजा की अपील करने के लिए तीन महीने का समय देती थी। इससे तत्काल अयोग्यता को रोका जा सके।
क्या है लिली थॉमस केस
सन 2005 में केरल के वकील लिली थॉमस और लोक प्रहरी नाम के एनजीओ के महासचिव पूर्व IAS अधिकारी एसएन शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इस याचिका में जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित करने की माँग की गई थी।
याचिका में कहा गया था कि यह धारा दोषी सांसद-विधायकों की सदस्यता को बचाती है, क्योंकि अगर ऊपरी अदालतों में मामला लंबित है तो सदस्यता को रद्द नहीं किया जा सकता था। इसके लिए दोनों ने संविधान के अनुच्छेदों का हवाला दिया था।
याचिका में थॉमस और शुक्ला ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) का हवाला दिया गया था। दरअसल, अनुच्छेद 102(1) में सांसद और 191(1) में विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य को अयोग्य ठहराने का प्रावधान है।
इस मामले पर सुनवाई करते हुए 10 जुलाई 2010 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की बेंच ने फैसला सुनाया। इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि केंद्र के पास धारा 8(4) को लागू करने का अधिकार नहीं है। अगर किसी मौजूदा सांसद-विधायक दोषी ठहराए जाते हैं तो जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(1), 8(2) और 8(3) के तहत वो अयोग्य हो जाएँगे।
राहुल गाँधी ने नहीं फाड़ा होता अध्यादेश तो नहीं जाती सांसदी
अब जबकि राहुल गाँधी की सांसदी जा चुकी है तो इसके लिए जिम्मेदार कानून को चुनौती दी गई है। इस मामले में अगर राहुल गाँधी ने साल 2013 में हस्तक्षेप नहीं किया होता तो आज उनके खुद के अलावा कई सांसदों और विधायकों की सदस्यता छिने जाने से पहले कुछ वक्त मिल जाता।
दरअसल, साल 2013 में कॉन्ग्रेस नेता अजय माकन सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को रद्द करने के फैसले के खिलाफ यूपीए सरकार से लाए जा रहे अध्यादेश की जानकारी दे रहे थे। इसी दौरान राहुल गाँधी आए और अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी। उन्होंने कठोर कानून बनाए जाने की वकालत की थी।
यूपीए सरकार द्वारा लाए जा रहे इस अध्यादेश से दोषी ठहराए गए सांसदों को भी लोकसभा से अयोग्य ठहराने के लिए तीन महीने की राहत दी जा रही थी। इस अध्यादेश को राजद सुप्रीमो लालू यादव को राहत देने के लिए लाया जा रहा था। राहुल गाँधी के इस फैसले के बाद यूपीए सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया और अगले साल 2014 में सरकार बदल गई।