पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापन को लेकर सुप्रीम कोर्ट बुधवार (10 अप्रैल 2024) को सुनवाई के दौरान योगगुरु रामदेव और बालकृष्ण पर भड़क गया। भ्रामक विज्ञापन को लेकर बाबा रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर बना शर्त माँगी, लेकिन शीर्ष न्यायालय ने माफी से संंबंधित इस याचिका को एक बार फिर से खारिज करते हुए कहा कि ‘हम अंधे नहीं हैं’ और वह इस मामले में ‘उदार नहीं होना चाहता’।
सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोेर्ट की न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, “माफी कागज पर है। यह बेहद खराब हालात है। हम इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हम इसे वचन का जानबूझकर उल्लंघन मानते हैं।” अदालत ने यह भी कहा कि वह इस मामले में केंद्र के जवाब से संतुष्ट नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हमारे आदेश की 3-3 बार अनदेखी की गई। अब नतीजा भुगताना होगा।
कार्यवाही की शुरुआत में पीठ ने कहा कि रामदेव और बालकृष्ण ने पहले मीडिया से माफी माँगी। न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, “जब तक मामला अदालत में नहीं आया, अवमाननाकर्ताओं ने हमें हलफनामा भेजना उचित नहीं समझा। उन्होंने इसे पहले मीडिया को भेजा। कल शाम 7.30 बजे तक यह हमारे लिए अपलोड नहीं किया गया था। वे स्पष्ट रूप से प्रचार में विश्वास करते हैं। यह हलफनामे में धोखाधड़ी है।”
पतंजलि संस्थापकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि वह रजिस्ट्री की ओर से नहीं बोल सकते और माफी माँगी जा चुकी है। जैसे ही उन्होंने हलफनामे पढ़े न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “आप हलफनामे को धोखा दे रहे हैं। इसे किसने तैयार किया? मैं आश्चर्यचकित हूँ।” इसके बाद रोहतगी ने कहा कि एक चूक हुई, जिस पर अदालत ने कहा कि ‘बहुत छोटा शब्द’ है।
न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने पूछा कि क्या माफ़ी दिल से माँगी गई है। इस पर रोहतगी ने उत्तर दिया, “और क्या कहने की ज़रूरत है, माई लॉर्ड्स। वह पेशेवर वादी नहीं हैं। लोग जीवन में गलतियाँ करते हैं!” पीठ ने कहा, “हमारे आदेश के बाद भी? हम इस मामले में इतना उदार नहीं होना चाहते।” अदालत ने कहा कि इसको लेकर समाज में एक संदेश जाना चाहिए।
अदालत ने कहा, “यह सिर्फ एक FMCG के बारे में नहीं है, बल्कि कानून का उल्लंघन है। राज्य प्राधिकरण को दिए गए अपने जवाब को देखिए कि उन्होंने आपसे पीछे हटने के लिए कहा तो आपने कहा कि हाई कोर्ट ने कहा है कि हमारे खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा। हम इसे आपके आचरण का हिस्सा बना रहे हैं।”
इसके बाद अदालत ने उत्तराखंड सरकार की ओर रुख किया और सवाल किया कि लाइसेंसिंग निरीक्षकों ने कार्रवाई क्यों नहीं की। कोर्ट ने यह भी कहा कि तीन अधिकारियों को एक साथ निलंबित कर दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा, “2021 में मंत्रालय ने एक भ्रामक विज्ञापन के खिलाफ उत्तराखंड लाइसेंसिंग प्राधिकरण को लिखा था। जवाब में कंपनी ने लाइसेंसिंग प्राधिकरण को जवाब दिया।”
कोर्ट ने आगे कहा, “हालाँकि, प्राधिकरण ने कंपनी को चेतावनी देकर छोड़ दिया। 1954 के अधिनियम में चेतावनी का प्रावधान नहीं है और ना ही अपराध को कम करने का प्रावधान नहीं है। ऐसा 6 बार हुआ और लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहे। उनकी ओर से कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज कराई गई। बाद में नियुक्त व्यक्ति ने भी यही व्यवहार किया। उन सभी तीन अधिकारियों को अभी निलंबित किया जाना चाहिए।”
बता दें कि मंगलवार (9 अप्रैल 2024) को भी रामदेव और बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में बिना शर्त माफी माँगी थी। इससे पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने दोनों पर जमकर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने रामदेव से कहा था कि वे खुद को कानून से ऊपर ना समझें। कानून की महिमा सबसे ऊपर है।