भारतीय सनातन पद्धति में संन्यासियों का भिक्षाटन एक महत्वपूर्ण एवं आवश्यक परंपरा है। इससे वह अपने अहम यानी अहंकार का न सिर्फ त्यागता है, बल्कि वह समाज में गहराई से जुड़ता है। इससे समाज की वास्तविकता का पता चलता है। भगवान विष्णु के परमावतारों में से एक भगवान बुद्ध से लेकर गुरु गोरखनाथ, मच्छेंद्रनाथ, दधीचि, भर्तृहरि, आचार्य शंकर आदि तक भिक्षाटन परंपरा को अपनाया और समाज को जागरूक एवं प्रकाशमय बनाया।
वर्तमान में इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं एक युवा संन्यासी। इस संन्यासी का नाम है स्वामी दीपांकर। स्वामी दीपांकर पिछले 6 महीनों से अधिक समय से भिक्षा यात्रा पर निकले हैं। वे संन्यासी परंपरा के तहत से लोगों से भिक्षा तो ले रहे हैं, लेकिन यह भिक्षा कुछ अलग हटकर है। वे लोगों से संकल्प की भिक्षा ले रहे हैं।
स्वामी दीपांकर अपनी यात्रा के 204वें दिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और सहारनपुर जिले के देहात की यात्रा पर हैं। ऑपइंडिया से बात करते हुए स्वामी दीपांकर कहते हैं, “इस भिक्षा यात्रा में लोगों से ली जाने वाली दो भिक्षा हैं- पहली भिक्षा जातियों में ना बँटकर एक हिंदू होने की भिक्षा दीजिए और दूसरी भिक्षा है एक युद्ध नशे के विरूद्ध।”
हिंदुओं की संगठित करने के लिए भिक्षा यात्रा की जरूरत पर बल देते हुए युवा संन्यासी स्वामी दीपांकर कहते हैं, “1990 में जब कश्मीर से पंडित निकले थे तो वे हिंदू नहीं थे। वे पंडित बनकर निकले थे। अगर वे हिंदू होते तो समाज साथ खड़ा होता। एक होना बहुत जरूरी है। अगर एक नहीं होंगे और इसी प्रकार जातीय जनगणनाएँ होती रहेंगी।”
जातीय जनगणना का आम हिंदुओं के जनमानस पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर वे कहते हैं, “जाति की जनगणना होगी तो आपको एक बार फिर से बाँटा जाएगा। आप सोचिए…. कभी क्रिश्चियन में पिछड़ा-अति पिछड़ा नहीं हुआ, मुस्लिम में पिछड़ा- अति पिछड़ा नहीं हुआ, मगर हिंदुओं में पिछड़ा, अति पिछड़ा और महा पिछड़ा सब हो गया।”
हिंदुओं को जोड़ने के लिए ‘भिक्षा यात्रा ही क्यों’ के सवाल पर स्वामी दीपांकर कहते हैं कि यह प्राचीन भारतीय परंपरा है। भारत में बुद्ध ने भिक्षा माँगी है, दधीचि ने भिक्षा माँगी है और गुरुकुल परंपरा में ब्रह्मचारियों को भिक्षा माँगने की अनुमति थी। उनका कहना है कि वे उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भिक्षा यात्रा निकाल रहे हैं।
स्वामी दीपांकर का कहना है कि उनकी इस भिक्षा यात्रा को लोगों का अपार समर्थन मिल रहा है। इस यात्रा में अब तक 5 लाख से अधिक लोगों को संकल्प करा चुके हैं। इन लोगों ने जातियों में ना बँट करके एक हिंदू होने का संकल्प लिया है। स्वामी दीपांकर का कहना है कि 23 नवंबर 2023 होने वाली इस यात्रा तक वे 10 से अधिक लोगों को जाति-पाँति से हटकर सिर्फ हिंदू होने का संकल्प दिलाएँगे।
दरअसल, स्वामी दीपांकर जातिवाद और नशा से लोगों को बचाने के लिए 23 नवंबर 2022 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की यात्रा शुरू की थी। स्वामी दीपांकर का कहना है कि 23 नवंबर 2023 तक इस क्षेत्र के कुल लगभग 26 जिलों के कवर कर रहे थे, जिसमें 14-15 जिलों तक वे पहुँचे हैं। इस बीच यूपी का पंचायत चुनाव शुरू हो गया और आचार संहिता लगने के कारण वे उत्तराखंड और दिल्ली में यात्रा करने लगे। इस दौरान उन्होंने उत्तराखंड के कई जिलों और दिल्ली के 8 से 10 पर यात्रा की।
स्वामी दीपांकर से यह पूछे जाने पर कि इस यात्रा का उद्देश्य भारत को धीरेंद्र शास्त्री की तरह हिंदू राष्ट्र बनाने की माँग को लेकर तो नहीं है। इस पर स्वामी दीपांकर कहते हैं, “आप हिंदू हो तो जाइए। हो जाइए फिर कहना नहीं पड़ेगा, राष्ट्र के लिए।” उन्होंने कहा कि उनकी भिक्षा यात्रा को स्थानीय लोगों के साथ-साथ साधु-संतों का भी भरपूर समर्थन मिल रहा है।
हिंदू राष्ट्र की माँग को लेकर बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के साथ मिलकर काम करने के सवाल पर स्वामी दीपांकर ने कहा, “ये काल के गर्भ में छिपा है। हमें लगता है कि हर व्यक्ति अपनी नियति स्वयं तय करता है। हर संन्यासी का अपना कर्तव्य है और संन्यासी को अपने कर्तव्य का निर्वाह स्वयं करना चाहिए। हम अलग कभी किसी से रहे नहीं है।”
ऑपइंडिया को स्वामी दीपांकर ने बताया कि इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य जातियों में बँटे हुए सनातन को हिंदू के रूप में संगठित करना है। उन्हें जागरूक करना है कि जातियों में ना बँट करके हिंदू बनकर रहिए। उन्होंने कहा कि सिर्फ हिंदू होने का महासंकल्प ही इस यात्रा का सार है।
यात्रा की सफलता पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “लोगों में अब एक स्पार्क दिखता है। पहले लोगों के कारों के पीछे जाट, गुज्जर, ब्राह्मण, बनिया लिखा देखते थे, लेकिन अब हिंदू लिखा देखने को मिलता है। मोबाइल के कवर से लेकर विवाह के समारोह के कार्ड तक हिंदू दिखना अब आम हो गया है। यह देखना अच्छा लगता है।” उन्होंने कहा कि यात्रा के संपन्न होने तक इसके और भी सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।