अपने क़ानूनी ‘कारनामों’ के लिए मशहूर भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने एक और क़ानूनी लड़ाई जीत ली है। इस बार उनके हक़ में साकेत की स्थानीय अदालत ने IIT दिल्ली को उनका बकाया वेतन सूद समेत चुकाने का आदेश दिया है। 8% के सूद समेत संस्थान पर बकाया उनकी वेतन राशि ₹40-45 लाख बैठने की उम्मीद है।
1972 में हुई अपनी बर्खास्तगी को वह पहले ही अदालत से 1991 में अनुचित घोषित करवा चुके थे, जिसके बाद उन्होंने पदभार ग्रहण कर उसी दिन इस्तीफा दे दिया था। अब वे इस कालखंड के वेतन का मुकदमा लड़ रहे थे जिसे उन्होंने जीत लिया है।
उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी देने के साथ यह भी कहा कि यह मामला अकादमिक क्षेत्र के विकृत मानसिकता वाले व्यक्तियों के लिए सबक है।
After 47 years the IIT Delhi lost to me In The Saket Court and has to pay my back salary at annual 8% interest compounded. Earlier they had to restore me to my Professorship of Economics.which I resigned after a day. Let this be an example to all perverts in the academic world
— Subramanian Swamy (@Swamy39) April 8, 2019
तीन साल थे शिक्षक, बर्खास्तगी को बताया था राजनीति से प्रेरित
IIT दिल्ली में डॉ. स्वामी तीन साल (1969-1972) तक अर्थशास्त्र के प्राध्यापक थे। इस दौरान वह दक्षिणपंथी अर्थशास्त्र के पक्ष में लिखते रहे थे। उन्होंने हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को कम समाजवादी और अधिक बाजार-आधारित बनाने की भी वकालत की थी।
इसी दौरान एक शाम उन्हें एक पत्र दे तत्काल प्रभाव से पदमुक्त कर दिया गया था। अपनी बर्खास्तगी को राजनीतिक बताते हुए उन्होंने लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ी जिसके बाद 1991 में जाकर अदालत ने उनके निष्कासन को अनुचित ठहराते हुए उनकी पद-बहाली का आदेश दिया। डॉ. स्वामी ने पदभार ग्रहण कर उसी दिन इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद उन्होंने इस कालखंड (1972-1991) की बकाया वेतन राशि पाने के लिए मुकदमा दायर किया, और 18% की दर से ब्याज माँगा। हालिया फैसले में अदालत ने मात्र 8% ब्याज की दर से ब्याज चुकाने का निर्देश दिया है।
संस्थान ने कहा, लेंगे अपने बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स से निर्देश
IIT दिल्ली ने कहा है कि अब वह इस फैसले को अपने बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के समक्ष लेकर जाएँगे जो आगे इस मामले पर क्या कदम उठाया जाना है यह तय करेगा।
अगर स्वामी का है यह हाल, तो आम आदमी का क्या होता होगा?
डॉ. स्वामी की राजनीतिक ताकत किसी से छिपी नहीं है- वह न केवल वर्तमान सत्तारूढ़ दल के सदस्य हैं बल्कि अतीत में भी कई सरकारें बनवाने, चलवाने, और गिरवाने में अपनी भूमिका को वह खुल कर मानते हैं। इसके अलावा उनके पास कानूनी संसाधनों की कोई कमी नहीं है- उनकी पत्नी रॉक्सना स्वामी खुद देश की चोटी के वकीलों में हैं, और श्रीमती स्वामी के अलावा भी उनके पास वकीलों की छोटी-मोटी फौज होती है।
ऐसे हालात में भी यदि उनके जैसे शक्तिशाली व्यक्ति को न्याय पाने में लगभग 50 साल लग जाते हैं तो आम आदमी की क्या हालत होती होगी, यह सोचना भी मुश्किल है। डॉ. स्वामी के पास तो आजीविका के दूसरे संसाधन थे, पर यही अगर किसी आम आदमी की जीविका के एकलौते साधन पर कोई अवैध तरीके से रोक लगा दे तो उसके पास क्या विकल्प है सिवाय इसके कि वह मजदूरी करे, उसका बच्चा ट्रैफिक पर भीख माँगे, और उसकी पत्नी दूसरे के घरों में काम करे? या जैसे-तैसे किसी भी हालत में जीवन निर्वाह का जतन करे।
आगामी सरकार चाहे जिसकी हो, न्याय में देरी की आड़ में हो रहे अन्याय के बारे में सोचने के लिए “सुब्रमण्यम स्वामी बनाम IIT दिल्ली” महज एक केस नहीं, एक जरूरी नजीर है।