साल 2010 में ईशनिंदा के इल्जाम में केरल के प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर हमला कर उनका दाहिना हाथ काटने वाले आरोपित नजीब को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने दोबारा गिरफ्तार कर लिया। 43 वर्षीय नजीब एर्नाकुलम जिले के अलुवा का निवासी है और साथ ही कट्टरपंथी इस्लामिक समूह पॉपुलर फ्रंट इंडिया का सदस्य भी।
इसी मामले में इससे पहले उसकी गिरफ्तारी 10 अप्रैल 2015 को कोयंबटूर से हुई थी। लेकिन, 23 जुलाई को केरल हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान उसे जमानत दे दी। इसके बाद एनआईए ने केरल कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिस पर सुनवाई के बाद केरल कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई और नजीब को दोबारा बुधवार को गिरफ्तार किया गया।
गौरतलब है कि 4 जुलाई 2010 को एर्नाकुलम जिले के थोदुपुझा में प्रोफेसर टीजे जोसेफ पर घातक हमले की साजिश रचने और हमलावरों की मदद करने के आरोप में नजीब के खिलाफ आइपीसी की विभिन्न धाराओं, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। इस मामले में एनआईए ने 13 लोगों को आरोपित बनाया था।
जानकारी के अनुसार, टीजे जोसेफ केरल के इदुकी जिले के एक कॉलेज में मलयालम पढ़ाते थे। 2010 में उन पर कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन के सदस्य नजीब समेत कुछ युवकों ने चाकुओं से उनका दाहिना हाथ काट दिया था। घटना रविवार के दिन तब घटी थी, जब जोसेफ अपने परिवार के साथ चर्च से प्रार्थना कर लौट रहे थे। आरोपित युवकों ने आरोप लगाया था कि जोसेफ ने एक परीक्षा ली थी, जिसमें उन्होंने छात्रों से ईशनिंदा वाले प्रश्न पूछे थे।
जोसेफ पर आरोप लगा था कि उन्होंने मलयालम भाषा में एक विवादित प्रश्नपत्र तैयार किया था, जिससे समुदाय विशेष की मजहबी भावनाएँ आहत हुईं। हालाँकि इस बीच कई लोगों ने उन पर सवाल उठाए और कॉलेज प्रशासन ने उन्हें नौकरी से भी निकाल दिया था। तब इस मामले पर वहाँ की शिक्षा मंत्री ने उन्हें कहा भी कि वे चाहें तो यूनिवर्सिटी के ट्रिब्यूनल में अपना मामला दर्ज करवा सकते हैं। लेकिन फिर भी उन्होंने फैसला किया कि वे कॉलेज के फैसले के ख़िलाफ़ कोई कानूनी कदम नहीं उठाएँगे।
इतना ही नहीं, अपने ऊपर कट्टरपंथियों के हमले के बाद भी जोसेफ ने तो ये भी कहा था कि उन्होंने सभी आरोपितों को माफ कर दिया है और अपना जीवन सामान्य रूप से जीने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मजहबी संगठनों के दबाव में कॉलेज प्रशासन के फैसले से उनका जीवन सामान्य नहीं रहने दिया। सामाजिक दबाव और आर्थिक परेशानियों के चलते उनकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली और बाद में प्रोफेसर को वापस पढ़ाने की इजाजत दी गई। कुछ समय पहले वे रिटायर हो गए।
उनके दोषियों को भले ही उन्होंने अपनी अच्छाई के चलते माफ कर दिया। लेकिन कोर्ट ने उन पर कार्रवाई जारी रखी और कुछ साल पहले उन्हें प्रोफेसर पर हमला करने का दोषी पाया गया। आरोपितों पर फैसला उस समय आया जब 57 साल के जोसेफ की लिखी एक किताब रिलीज हुई है। इदुकी जिले में एक छोटे कार्यक्रम में अपनी किताब को रिलीज करने के दौरान जोसेफ का कहना था, “ये किताब मैंने दाहिने हाथ से लिखी थी, आज मैं आपके सामने इसे बाएँ हाथ से पेश कर रहा हूँ।” बता दें कि हमले के बाद जोसेफ की दाहिनी हथेली को डॉक्टरों ने वापस जोड़ दिया था।