आम चुनावों में एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपनी सबसे बड़ी ताकत मानकर चल रही है और कथित अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को अपना सबसे बड़ा हथियार मानते हुए इस आबादी के मतों पर अपना अधिकार मानती आई है वहीं, मोदी सरकार के इन 4 सालों में जमीनी हकीकत कुछ और ही कहती नजर आ रही हैं।
लखनऊ की रहने वाली एक 33 साल की एक समुदाय विशेष की ही महिला ने तीन तलाक देने की वजह से अपने पति के खिलाफ कोर्ट केस किया था। यह पहला मौका था, जब उसने अपने परिवार की इच्छा के खिलाफ कोई फैसला लिया था। ब्यूटीशियन का काम करने वाली इस महिला का कहना है कि वह एक बार फिर परिवार की इच्छा के खिलाफ कदम उठाने वाली है और वह 6 मई को भारतीय जनता पार्टी को वोट देगी।
गत वर्ष कॉन्ग्रेस के लिए प्रचार करने वाली इस महिला ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “मोदी सरकार ने तीन तलाक की प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई है। कोई दूसरी पार्टी तो इस बारे में बात भी नहीं कर रही।”
2014 के चुनाव में कॉन्ग्रेस के लिए किया था प्रचार
2014 में इस महिला को उसके पति ने बिना कोई कारण बताए शादी के महज 22 दिन बाद तलाक दे दिया था। महिला के मुताबिक, उसने पिछले चुनाव में कॉन्ग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी के लिए प्रचार किया था। महिला ने कॉन्ग्रेस पर सवाल उठाते हुए कहा, “उन्होंने हमारे लिए क्या किया? बीजेपी ने कम से कम हमारी खराब स्थिति को लोगों के सामने रखा। मोदी सरकार ने पेंशन स्कीम से लेकर LPG कनेक्शन तक, हमारे लिए बहुत कुछ किया है।” महिला ने अपने इंटरव्यू में कहा, “मैंने पढ़ा है कि मोदी सरकार ने क्या किया है। मैं जरूर उनको ही वोट दूँगी।”
ट्रिपल तलाक को लेकर CM योगी आदित्यनाथ से टि्वटर पर मदद माँगी थी मदद
इस महिला की तरह ही 26 साल की निशात फातिमा ने भी ट्रिपल तलाक बिल की वजह से इस बार बीजेपी को वोट देने का मन बनाया है। दो बच्चों की मां निशात को शादी के 5 बरस बाद उनके पति से फोन पर तीन तलाक दे दिया था। निशात ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से टि्वटर पर मदद माँगी थी। वह बीजेपी की ओर से तीन तलाक पर कराए गए सेमिनार में भी मौजूद रही हैं। इस कार्यक्रम में गवर्नर राम नाइक भी मौजूद थे। बता दें कि यूपी में कम से कम 20% आबादी मुस्लिमों की है।
हालाँकि, इन दो महिलाओं के उलट इस समुदाय की कई अन्य महिलाएँ ऐसी भी हैं, जिन्हें ट्रिपल तलाक या तलाक-ए-बिद्दत की प्रथा तक की भी जानकारी नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जब उन्होंने इन महिलाओं से इससे जुड़े सवालों पर जब बात की तो वो नजरें फेर लेती हैं या फिर बहस का टॉपिक बदल देती हैं। जो बात करने के लिए तैयार भी हैं, उनके मुताबिक, उन्हें पता ही नहीं कि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 में इस प्रथा पर रोक लगा दी थी। इनमें से कुछ ने बीजेपी पर धार्मिक मामलों में दखलंदाजी का आरोप भी लगाया। 23 साल की फरजाना अहमद का कहना है कि मोदी सरकार अपने फायदे के लिए इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है।
अखिलेश यादव ने दिया था लैपटॉप, सपा को देंगे वोट
हालाँकि, कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने वोट देने के लिए मोदी सरकार द्वारा किए गए काम को ही अकेला आधार बनाने से इंकार करते हुए कहा, “ट्रिपल तलाक को अपराध के दायरे में लाने का क्या फायदा, जब पति मेरे साथ रहना ही नहीं चाहता। क्या कानून के डर से उसे मेरे साथ रहने के लिए मजबूर करने से मकसद हल होगा?” फरजाना शिक्षा और स्कॉलरशिप को चुनावी मुद्दा मानते हुए आरोप लगाती हैं कि वर्तमान सरकार सिर्फ हिंदू और ‘मजहब’ वालों की लड़ाई पर बातें करती है। पूर्व की अखिलेश यादव सरकार द्वारा लैपटॉप दिए जाने का जिक्र करते हुए वह कहती हैं कि वह सपा को वोट देंगी।
वहीं, डालीगंज की रहने वालीं 60 साल की सूफिया रहमान कहती हैं, “हम कौन होते हैं मियाँ-बीवी के बीच में दखल दे कर, किसी को सजा देने वाले।” लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हुसैन का मानना है कि बीजेपी इस संवेदनशील मुद्दे का गलत इस्तेमाल कर रही है और इस पर बिल लाने से पहले समुदाय की राय नहीं ली गई। ताहिरा ही नहीं, रिटायर्ड आईआरएस अफसर परवीन तल्हा और ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन पर्सनल लॉ बोर्ड की डायरेक्टर शाइस्ता अंबर भी मानती हैं कि बीजेपी को समुदाय विशेष की कोई परवाह नहीं है।