Thursday, November 14, 2024
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ट्विटर ने CJI पर प्रशांत भूषण के ट्वीट हटाए, साल 2010 का इंटरव्यू भी पड़ रहा भारी: जानिए क्या है मामला

बार एंड बेंच के मुताबिक़ प्रशांत भूषण के विवादास्पद ट्वीट को हटाते हुए ट्विटर ने दो विकल्प खुले रखे हैं। पहला वह ट्वीट को हटा सकता है और दूसरा वह अंतिम निर्णय आने के बाद ट्वीट को फिर से बहाल कर सकता है।

ट्विटर ने शनिवार (25 जुलाई 2020) को प्रशांत भूषण के दो ट्वीट हटा लिए। इनमें से एक ट्वीट 27 जून को और दूसरा 29 जून को किया गया था। एक में उन्होंने न्यायपालिका पर आरोप लगाए थे, जबकि दूसरा मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबड़े से जुड़ा था।

शीर्ष अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इन ट्वीट पर भूषण के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की थी। महक माहेश्वरी नाम की अधिवक्ता ने भी इस मामले में अवमानना की कार्रवाई को लेकर याचिका दायर की थी। वहीं करीब दशक भर पुराने अवमानना के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ 4 अगस्त को सुनवाई की तारीख तय की है।

इससे पहले मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने प्रशांत भूषण और ट्विटर को पॉंच अगस्त तक इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा था। ट्विटर की नीतियों के मुताबिक़ अगर किसी ट्वीट पर न्यायिक कार्रवाई होती है तो ट्विटर उस पर रोक लगा देता है। 

सु्प्रीम कोर्ट में ट्विटर की पैरवी कर रहे वकील साजन पूवैया के अनुसार इस संबंध में अदालत को सूचित कर दिया गया। उन्होंने बताया कि ट्वीट हटाने का मतलब उसे ‘डिलीट’ करना नहीं है।

बार एंड बेंच के मुताबिक़ ट्वीट पर रोक लगाते हुए ट्विटर ने दो विकल्प खुले रखे हैं। पहला वह ट्वीट को हटा सकता है और दूसरा वह अंतिम निर्णय आने के बाद ट्वीट को फिर से बहाल कर सकता है।

वहीं शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रशांत भूषण के खिलाफ लगभग एक दशक पुराने मामले की सुनवाई की तारीख़ तय की थी। प्रशांत भूषण के विरुद्ध अवमानना के इस मामले की सुनवाई 4 अगस्त को होनी है। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के दौरान उनके पिता शांति भूषण को पार्टी बनाने से इनकार कर दिया था। साल 2009 के दौरान तहलका में साक्षात्कार देते हुए सोमा चौधरी से बात करते हुए प्रशांत भूषण ने कई बातें कही थीं। 

उन्होंने इस बात के संकेत दिए थे कि जस्टिस सरोश होमी कपाड़िया ने ‘फ़ोरेस्ट बेंच’ का हिस्सा बन कर न्यायिक रूप से अनीति की है। बेंच ने उड़ीसा के नियामगिरी लीज़ मामले में वेदांता सब्सिडरी स्टरलाइट के पक्ष में फैसला सुनाया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि कंपनी में उनके भी शेयर थे। इस बयान के आधार पर हरीश साल्वे ने प्रशांत भूषण के खिलाफ़ अवमाननना की याचिका दायर की थी। 

साक्षात्कार में बात करते हुए प्रशांत भूषण ने कई विवादित बातें कही थीं। उन्होंने कहा था, “16-17 न्यायाधीशों में लगभग आधे भ्रष्ट हैं। मैं इसे साबित नहीं कर सकता लेकिन हमारे पास पुंछी, आनंद और सभरवाल के खिलाफ सबूत हैं। इसके आधार पर ही हमने इनके महाभियोग की माँग उठाई थी।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि शीर्ष अदालतों के न्यायाधीशों से जुड़ा कुछ भी साबित करना बहुत मुश्किल होता है। 

उन्होंने कहा था कि इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि शीर्ष अदालतों के न्यायाधीशों पर लगाए गए आरोपों की जाँच तक नहीं होती है। ऐसी कोई अनुशासन समिति ही नहीं है जो इन पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करे। 

इस मामले पर अपने बेटे का पक्ष लेते हुए पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने 6 ईमानदार और 8 भ्रष्ट न्यायाधीशों की सूची सर्वोच्च न्यायालय को दी थी। उन्होंने यह दावा भी किया था अगर उनका बेटा दोषी पाया गया तो वह खुद जेल जाने के लिए तैयार हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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