उत्तर प्रदेश के आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने राज्य में मदरसों की जाँच के बाद अब मकतबों पर भी नज़र डालना शुरू कर दिया है। मौजूदा जानकारी के अनुसार, UP ATS ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के 473 मकतबों की जाँच शुरू की है, जिनमें से कई बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं। इस बाबत अल्पसंख्यक विभाग से संबंधित दस्तावेज़ और रिकॉर्ड मंगवाए गए हैं।
इन मकतबों में से अधिकांश मुज़फ्फरनगर, सहारनपुर और शामली जिलों में स्थित हैं, और UP ATS इन संस्थानों की फंडिंग और उनके संचालन के स्रोतों की जाँच कर रही है। मकतब एक प्रकार का स्थान है, जहाँ इस्लामी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मुस्लिम बच्चों को दीनी शिक्षा प्रदान की जाती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ATS की जाँच में अब तक सबसे अधिक 190 मकतब शामली में पाए गए हैं। इसके बाद मुज़फ्फरनगर में 165 और सहारनपुर में 118 मकतब संचालित हो रहे हैं। जाँच में ATS ने कई बिंदु तय किए हैं, जिनमें मकतबों की मान्यता न होने के कारण, फंडिंग के स्रोत, संचालन का समय, बच्चों की संख्या, सुरक्षा प्रबंध, रजिस्ट्रेशन की स्थिति और संबद्धता के स्रोत प्रमुख हैं। मकतबों की जाँच के लिए ATS ने सहारनपुर मंडल के तीन जिलों के अल्पसंख्यक अधिकारियों से रिकॉर्ड मंगवाए हैं।
शुरुआती जाँच में कई मकतबों में खामियाँ पाई गई हैं, साथ ही उनके वित्तीय लेन-देन में भी संदेहजनक गतिविधियाँ देखी गई हैं। ATS ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार को भेज दी है। इससे पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे राज्य में मदरसों का व्यापक सर्वेक्षण कराया था, जिसके तहत कई गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को बंद कर दिया गया था।
सहारनपुर मंडल के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश में आने वाले गोंडा जिले में भी कई मकतब चलते पाए गए हैं। यहाँ के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी ने अपने जिले में चल रहे 20 मकतबों को बंद करने की सिफारिश शासन को भेजी है। यहाँ कुल 286 मकतब चलते पाए गए हैं जिसमें 19 गैर मान्यता प्राप्त हैं। मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश ATS मुख्यालय से प्रदेश के हर जिले में अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों से मकतबों की जाँच में सहयोग करने के लिए कहा गया है।
क्या होता है मकतब
ऑपइंडिया ने मकतब के बारे में गाजियाबाद के मौलवी अब्दुल सलाम से जानकारी ली। उनके अनुसार, मकतब एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘पढ़ाई-लिखाई का स्थान’। उन्होंने बताया कि मकतब और मदरसे में अंतर है। मदरसे में पढ़ाई के बाद एक औपचारिक डिग्री प्राप्त होती है, जबकि मकतब में ऐसी कोई डिग्री नहीं दी जाती। अब्दुल सलाम ने मकतब को एक तरह का ‘कोचिंग सेंटर’ बताया, जहाँ आस-पास के मुस्लिम बच्चों को दीनी तालीम दी जाती है। उन्होंने कहा कि देश की लगभग 95% मस्जिदों में मकतब चलते हैं।
अब्दुल सलाम ने आगे बताया कि मकतब खासतौर से मुस्लिम बच्चों के लिए होते हैं, जहाँ कुरान और हदीस की तालीम दी जाती है। मकतब संचालित करने वाले मौलवी, मौलाना या हाफिज आमतौर पर कोई शुल्क नहीं लेते, लेकिन कहीं-कहीं मेहनताना के लिए धन इकट्ठा किया जाता है। मौलवी के अनुसार, मकतब में पढ़ने वालों की उम्र सीमा नहीं होती, लेकिन सामान्यतः नाबालिग बच्चे ही इनमें पढ़ते हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि कई मकतब इस्लामी जानकारों के घरों में भी संचालित होते हैं।