हैरी पॉटर फ़िल्म श्रृंखला में Blood Pact (अटूट कसम) जैसी घटना देखने को मिली थी, जिसमें दो लोग एक दूसरे से खून की शपथ से बंधकर किए गए वायदे को निभाने की कसम खाते थे। इसी से मिलता-जुलता एक उदाहरण उत्तराखंड के पंचायत चुनावों में भी नजर आता है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पंचायती चुनावों में पहाड़ी लोगों की आस्था और विश्वास का प्रभाव देखने को मिलता है। जनजातीय इलाके होने के कारण यहाँ के लोग अभी भी कुछ पौराणिक प्रथाओं से जुड़े हुए हैं, जिनमें से “लूण (नमक) लोटा” भी एक है। ग्राम्य देवताओं का भय दिखाकर और कसमें लेकर मतदाताओ को अपने समर्थन में करने की कुछ प्रथाओं में से ही एक है लूण-लोटा!
इर बार के पंचायत चुनाव में लूण-लोटा का अहम रोल माना गया है। वोट पक्का करने के लिए वायदे से फिसलने वाले मतदाताओं को चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशी और उनके कार्यकर्ता लोटे में पानी डालकर कसम दिलवाते हैं। ऐसे में अगर यह कसम खाने वाला मतदाता वायदे से हट जाए, तो उसको देवता से होने वाले नुकसान होने का डर सताता है। यानी, अगर लूण-लोटा हुआ तो वोट पक्का माना जाता है।
लूण-लोटा
एक शख्स हाथ में पानी से भरे लोटे को पकड़ता है। दूसरे हाथ से उसमें नमक डालता है। इस दौरान वह अपनी जुबान से एक वादा या वचन देता है, जिसे पूरा करने की वो कसम खाता है। लोटे में नमक डालने के बाद वो किसी भी सूरत में अपने वचन को पूरा करने से पीछे नहीं हट सकता है। यही प्रथा कहलाती है- लूण लोटा। हिमाचल प्रदेश के कई भागों में यह प्रथा आज भी प्रचलित है।
लूण लोटा में लूण का अर्थ नमक होता है। यह सब सुनने में यह बात भले ही अजीब लगे मगर हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज के पिछड़े हुए पहाड़ी इलाक़ों में इस तरह की परंपरा अब भी मौजूद होने के संकेत जब-तब सामने आते रहते हैं।
उत्तराखंड, शिमला-सिरमौर के आंतरिक इलाकों में इसे ‘लूण-लोटा’ कहा जाता है। इस प्रथा में ग्रामीण देवी-देवाताओं के नाम पर कसम खिलाई जाती है। ये देवी-देवता गाँव के इष्ट होते हैं जिन्हें ग्राम्य देवता के नाम से जाना जाता है।
लूण-लोटा यानी – “अटूट-कसम”
दरअसल, जब एक शख्स पानी से भरे लोटे में नमक डालते हुए कसम लेता है, तब वह एक वादा कर रहा होता, जिसे उसे निभाना ही होगा। अगर उसने नहीं निभाया तो जिस तरह पानी में नमक घुल गया और खत्म हो गया। उसी तरह अगर वचन अथवा वादा पूरा नहीं किया तो वचन देने वाला शख्स भी इसी तरह खत्म हो जाएगा।
जिन देवताओं के नाम पर क़सम या शपथ दिलाए जाने की बात आती है, वे मुख्यत: गाँवों के देवता हैं। इन देवताओं के अपने मंदिर होते हैं और श्रद्धालु उन्हें पालकी से त्योहारों, मेलों और उत्सवों में लेकर जाते हैं।
इन प्रथाओं की जब शुरुआत हुई थी, तब इनका इस्तेमाल विवादों का निपटारा करने के लिए किया गया। विवादों को सुलझाने का यह एक शांतिपूर्ण तरीका था। लेकिन वक़्त के साथ लोगों ने इसका गलत इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया। हालाँकि, हमारी पीढ़ी में यह प्रथा मात्र एक कहानी बनकर रह गयी है, लेकिन अभी भी कई दूरस्थ इलाकों में यह जीवित है और चुनावों में सबसे ज्यादा इसका गलत इस्तेमाल देखने को मिलता है।
सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं है यह प्रथा
लूण लोटा की यह प्रथा सिर्फ उत्तराखंड के चुनावों तक ही सीमित नहीं है। लूण लोटा के अलावा कई और तरीके हैं, जिनके जरिए एक शख्स को कसम खिलवाई जाती है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर और शिमला में भी लूण लोटा की परंपरा है। ठीक इसी तर्ज पर, मंडी, कुल्लू जैसी जगहों पर मंदिर के सामने पानी पिलाने और चावल देने की प्रथा है।
इसके आगे लाहौल-स्पीति की तरफ बढ़ेंगे तो वहाँ पर बौद्ध और हिंदू परंपराओं का समायोजन देखने को मिलता है। इन जगहों पर पर जाप के लिए इस्तेमाल की जाने वाली माला के माध्यम से कसम दिलाई जाती है।
उत्तराखंड पंचायत चुनावों के बीच यह प्रथा हमेशा ऊपर आ जाती है। मतदाताओं को रिझाने के लिए सियासी दल मतदान की पहली रात कई दाँव खेलने को तैयार रहते हैं और इन टोटकों को इस्तेमाल करने से भी नही चूकते। इस बार भी कहीं मंदिरों में कसमें तो कहीं लूण-लोटा करने की तैयारियाँ सुनिश्चित की गईं।