उत्तराखंड सरकार ने राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का संकल्प लिया हुआ है, जिसका ड्राफ्ट भी सरकार को सौंपा जा चुका है। इस बीच, शुक्रवार को यूसीसी पैनल की 4 खंड की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में पहाड़ों से लोग मैदानों की ओर पलायन कर रहे हैं, तो मैदानी इलाकों में शहरी आबादी बहुत तेजी से बढ़ी है। ये आबादी उत्तराखंड के अंदर की ही नहीं है, बल्कि दूसरे राज्यों से आए लोगों की वजह से भी है। खास बात ये है कि उत्तराखंड में मुस्लिमों और ईसाइयों की आबादी हिंदुओं और सिखों की तुलना में 2 गुना से भी ज्यादा बढ़ी है।
उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पैनल की रिपोर्ट ने बदलती जनसांख्यिकी की ओर ध्यान खींचा है। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आबादी घट रही है, तो मैदानी इलाकों में बेहद तेजी से आबादी बढ़ी है। इसमें सबसे बड़ा योगदान दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासियों ने किया है। रिपोर्ट अपने पहले खंड के अध्याय 2 में बताती है कि उत्तराखंड की सांख्यिकी डायरी 2021-22 के अनुसार, 2001-11 के दशक में मैदानी इलाकों में शहरी क्षेत्रों में ‘30.23% की जनसंख्या वृद्धि’ देखी गई, जो काफी हद तक पलायन के कारण थी। दूसरी ओर, अल्मोड़ा और गढ़वाल के दो पहाड़ी जिलों में इस अवधि में उनकी आबादी में ‘पूर्ण गिरावट’ देखी गई है।
मुस्लिमों-ईसाइयों की संख्या तेजी से बढ़ी
यूसीसी पैनल रिपोर्ट यह भी बताता है कि चुनाव आयोग के आँकड़ों से पता चलता है कि पिछले दशक के दौरान राज्य के मैदानी इलाकों में मतदाताओं की संख्या में ‘लगभग 30% की तीव्र वृद्धि’ हुई है। पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह जनसंख्या की सामान्य दशकीय वृद्धि दर से बहुत अधिक है, जो अन्य राज्यों से पलायन में भी तेजी से वृद्धि का संकेत देता है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों का एक बड़ा हिस्सा राज्य के मैदानी इलाकों में स्थित है। उदाहरण के लिए, हरिद्वार और उधम सिंह नगर जिलों के 34.3% और 22.6% निवासी मुस्लिम हैं।
पिछली जनगणना के आंकड़ों का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि उधम सिंह नगर के लगभग दसवें हिस्से के निवासी सिख हैं। इसमें कहा गया है कि 2001-11 के दशक के दौरान, मुसलमानों और ईसाइयों की वार्षिक औसत जनसंख्या वृद्धि दर (3.9% से अधिक) सिखों (1.15%) और हिंदुओं (1.60%) से आगे निकल गई है। इसी अवधि के दौरान जैन आबादी की पूर्ण संख्या में गिरावट आई।
पैनल रिपोर्ट में साझा किए गए डेटा और पाई चार्ट से पता चलता है कि राज्य के ‘पहाड़ी क्षेत्र’ से 98% सुझाव यूसीसी के पक्ष में थे, जबकि सिर्फ 2% विरोध में थे। मैदानी इलाकों में तस्वीर काफी बदल जाती है, जहां कथित तौर पर दूसरे राज्यों से काफी अधिक पलायन हुआ है। यहां प्राप्त सुझावों में से सिर्फ 38% यूसीसी के पक्ष में थे, जबकि 62% इसके खिलाफ थे। इसी तरह, पैनल द्वारा व्यक्तिगत रूप से फील्ड विजिट में प्राप्त सुझावों में पहाड़ी क्षेत्र में यूसीसी के लिए 99% समर्थन दिखा। मैदानी इलाकों के मामले में 92% सुझाव यूसीसी के पक्ष में थे, जबकि 8% इसके विरोध में थे।
उत्तराखंड में अक्टूबर से लागू हो जाएगा यूसीसी
उत्तराखंड सरकार ने इससे पहले रिपोर्ट के मुख्य अंश ही जारी किए थे, लेकिन शुक्रवार शाम पूरी रिपोर्ट आम लोगों के लिए उपलब्ध हो गई है। वेबसाइट https://ucc/uk.gov.in/ पर जाकर कोई भी व्यक्ति रिपोर्ट को देख सकता है। दरअसल, उत्तराखंड की धामी सरकार ने 27 मई 2022 को यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए एक पांच सदस्यीय कमेटी बनाई थी। रिटायर्ड जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में कमेटी गठित की गई थी। कमेटी ने 43 जनसंवाद कार्यक्रम और विभिन्न माध्यमों से 2.33 लाख लोगों से यूसीसी के लिए सुझाव लिए थे। इसके बाद 2 फरवरी, 2024 को कमेटी ने सरकार को यूसीसी की रिपोर्ट सौंपी।
कमेटी की ओर से रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद मुख्यमंत्री धामी ने 7 फरवरी को यूसीसी के ड्राफ्ट को विधानसभा के पटल पर रखा। इसे विधानसभा में ध्वनि मत से पास कर दिया गया। इसके बाद उत्तराखंड यूसीसी को लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया। विधेयक को कानून बनाने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया और फिर 11 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यूसीसी विधेयक को मंजूरी दे दी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अक्टूबर माह में इसे उत्तराखंड में लागू करने का ऐलान किया है।