Saturday, November 23, 2024
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उत्तरकाशी की सुरंग में कैसे फँसे 40 मजदूर, अब तक क्यों नहीं निकाले जा सके हैं बाहर: रेस्क्यू ऑपरेशन के बारे में जानिए सब कुछ

सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में हल्ला मच रहा है कि आखिर मजदूरों को निकालने में इतना समय क्यों लगा दिया...कुछ लोग इस पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आ रहे। लेकिन हकीकत तो ये है कि ऐसी घटना अगर कहीं भी घटती हैं तो उसके बचाव कार्य में समय लगता ही है।

उत्तरकाशी के सिल्कयारा सुरंग के भीतर 40 मजदूरों को फँसे हुए आज 6 दिन हो गए हैं। घटना वाले दिन के बाद से अब तक लगातार उनके रेस्क्यू के लिए काम किया जा रहा है। देश-विदेश से मशीनें मँगाकर मलबा हटाने का प्रयास चल रहा है। इन्हीं कोशिशों का फल है कि अब खबर आ रही है कि हो सकता है मजदूरों को सुरंग से 48 घंटे में निकाल लिया जाए। तब तक उन्हें पाइप से ही खाना-पानी और ऑक्सीजन दी जाएगी।

एक ओर जहाँ प्रशासन ने मजदूरों की जान बचाने के लिए दिन-रात को एक किया हुआ है। वहीं सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में हल्ला मच रहा है कि आखिर मजदूरों को निकालने में इतना समय क्यों लगा दिया…कुछ लोग इस पर राजनीति करने से भी बाज नहीं आ रहे। लेकिन हकीकत तो ये है कि ऐसी घटना अगर कहीं भी घटती हैं तो उसके बचाव कार्य में समय लगता ही है। 2018 में थाईलैंड में हुई ऐसी घटना के वक्त 18 दिन बाद जाकर लोगों को टनल से निकाला गया था।

कहाँ तक पहुँचा रेस्क्यू का काम

उत्तरकाशी टनल हादसे के बाद एयरलिफ्ट कराकर उत्तरकाशी पहुँचाई गई ‘अमेरिकी ऑगर मशीन’ ने शुक्रवार (17 नवंबर 2023) सुबह तक ड्रिलिंग की। इसके बाद 900mm व्यास वाले 6-6 मीटर के 5 पाइप मलबे के अंदर डाल दिए। बताया जा रहा है कि अब भी 30 मीटर तक की खुदाई बाकी है। इसके बाद जल्द से जल्द मजदूरों को पाइप के जरिए निकाला जाएगा। इस प्रक्रिया को ‘ट्रेंचलैस तकनीक’ कहते हैं। जहाँ मजदूर पाइप से रेंगते हुए बाहर आएँगे।

उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए सुरंग के बाहर टनल के बाहर 6 बिस्तरों वाला एक अस्थायी हॉस्पिटल भी तैयार किया गया है। टनल से मजदूरों के निकलने के बाद उन्हें तुरंत मेडिकल सुविधाएँ मिल सकें इसलिए टनल के बाहर 10 एंबुलेंस भी तैनात की गई हैं।

खाना पहुँचाने का काम कैसा चल रहा

कुछ वीडियोज सामने आई हैं जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह से मजदूरों के लिए पाइपलाइन से खाना पहुँचाया जा रहा है। इस प्रक्रिया में कई मजदूर जुटे हैं जो चना जैसी खाने की चीजें पाइप में डालते हैं फिर उसमें पीछे से एक और पाइप लगाते हैं और प्रेशर से उसे टनल में फँसे मजदूरों तक पहुँचाते हैं।

रेस्क्यू के दौरान आ रही मुश्किलें

उत्तरकाशी में हुई इस घटना में मजदूरों को निकालने में इतने दिन लग गए, इसे लेकर हर जगह प्रश्न किया जा रहा है। जबकि हकीकत यह है कि सुरंग में मशीन से लगातार काम नहीं हो पा रहा है। वहाँ भूस्खलन के कारण सुरंग में मलबा भरा और 40 मजदूर फँस गए। इसी के बाद वहाँ के पत्थर भी कमजोर हो गए। अब रेस्क्यू ऑपरेशन में इसी वजह से दिक्कत आ रही है।

मंगलवार को वहाँ एक और भूस्खलन हुआ था। तब रेस्क्यू में लगे 2 अन्य मजदूर भी घायल हो गए, जिनका अस्पताल में इलाज किया गया। हिमालय के क्षेत्र में सामान्यत: सॉफ्ट रॉक ही मिलते हैं। जिस इलाके में ये घटना हुई वहाँ के पत्थर कमजोर हैं और टूटे-फूटे हैं। इस कारण खुदाई में समस्या आती है।

ऐसी चुनौतियों के बावजूद स्टील के बड़े बड़े पाइप मलबे के अंदर डालकर मजदूरों तक पहुँचाने का काम चल रहा है। आज सुबह की ही बात है सुबह खुदाई के वक्त भी मिशन एक पत्थर आने से मिशन में रुकावट आई थी। लेकिन तब डायमंड कटर व डायमंट बिट मशीन की मदद से उसे काट दिया गया और आगे का काम शुरू हुआ। लेकिन जितनी देर ये समस्या आई उतने समय तक खुदाई का काम रुका रहा।

थाईलैंड की एक्सपर्ट टीम रख रही नजर, झेल चुके हैं ऐसी स्थिति

बता दें कि निर्माणाधीन टनल में फँसे मजदूरों को बचाने के लिए जहाँ दिन-रात मेहनत की जा रही है। उन्हें भोजन और ऑक्सीजन सप्लाई हो रही है। वहीं उन्हें सकुशल सुरंग से निकाल लेने के लिए नॉर्वे-थाईलैंड से भी एक टीम को घटनाक्रम पर नजर बनाए रखने को कहा गया है।

ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने उत्तरकाशी जैसी स्थिति का 2018 में सामना किया था। उस समय सुरंग में फँसे लोग 18 दिन बाद जाकर बाहर निकाले गए थे। इन लोगों में थाइलैंड में एसोसिएशन फुटबॉल टीम के 11 से 16 साल की उम्र के 12 बच्चे और एक कोच था।

थाईलैंड में इन बच्चों को निकाललने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में 10 हजार लोगों ने हिस्सा लिया था। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस जैसे देश मदद को आगे आए थे, तब जाकर बच्चों की और कोच की जान बच पाई थी।

उस वक्त टनल से बच्चों को निकालने के लिए एक बेस तैयार किया गया था। चूँकि उस टनल में पानी भी था तो हर बच्चे को निकालने के लिए 2 गोताखोर लगाए गए थे। इन सबके पास ऑक्सीजन टैंक था। जब ये बच्चों को रेस्क्यू करने गए तो निकालने से पहले उनको बेहोश किया। इस घटना से जितन विकट स्थिति थाईलैंड के सामने आई थी उससे लग रहा था रेस्क्यू में 4 माह लग जाएँगे। हालाँकि तीन दिन में ही गोताखोरो ने बच्चों को निकाल दिया। दुर्भाग्यवश रेस्क्यू के दौरान दो बचाव कार्य में लगे 2 कर्मचारियों की मौत भी हो गई थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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