वाराणसी स्थित ज्ञानवापी ढाँचे के तहखाने में हिंदुओं को पूजा करने का अधिकार देने पर मुस्लिम पक्ष खफा है। उन्होंने ने शुक्रवार (2 फरवरी 2024) को अपनी-अपनी दुकानें बंद करके इसका विरोध किया। वहीं, लगभग 1700 मुस्लिम जुमे की नमाज पढ़ने के लिए ज्ञानवापी परिसर में पहुँचे। स्थिति को देखते हुए वाराणसी के चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रही।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में पूजा रोकने की मुस्लिम पक्ष द्वारा दी गई याचिका खारिज होने के बाद इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने मीडिया को संबोधित किया। बोर्ड ने कहा कि अगर मुस्लिमों की सोच सभी मंदिरों को तोड़ने की होते तो एक भी मंदिर नहीं बचता। इस बयान पर बनारस के संतों ने नाराजगी जाहिर की है। इसको लेकर लगभग 300 संतों ने बैठक बुलाई है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने ज्ञानवापी तहखाने में पूजा शुरू होने पर कड़ा ऐतराज जताया है। बोर्ड के प्रवक्ता मलिक मोहतशिम ने कहा, “कोर्ट ने इस वक्त जिस जल्दबाजी में फैसला किया और उसमें पूजा की इजाजत दी, उसमें दूसरे पक्ष को बहस का मौका ही नहीं दिया गया। इसकी वजह से अदालतों और इंसाफ देने वाली संस्थानों के भरोसे को चोट पहुँची है।” AIMPLB के एक सदस्य ने कहा कि मुस्लिमों के सब्र की परीक्षा ना ली जाए।
ज्ञानवापी केस को लेकर AIMPLB की प्रेस कॉन्फ्रेंस
— News18 Uttar Pradesh (@News18UP) February 2, 2024
'मंदिर गिराकर मस्जिद बनाने की बात गलत, इस्लाम में छीनी गई जमीन पर मस्जिद नहीं'- AIMPLB#Gyanvapicase #ASIsurvey #DistrictCourtVaranasi #GyanvapiUpdate #AIMPLB pic.twitter.com/uHA6X3nxpD
उन्होंने कहा, “माइनॉरिटी महसूस कर रही है कि अदालतों ने बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के लिए अलग-अलग पैमाने बना लिए हैं। इसकी मिसाल बाबरी मस्जिद का फैसला है। कोर्ट का काम आस्था पर नहीं, बल्कि दलील की बुनियाद पर फैसला सुनाना है। अदालत ने माना है कि बाबरी मस्जिद मंदिर तोड़कर नहीं बनाई गई। उसके नीचे मंदिर नहीं था। हमारी अदालतें भी ऐसी रास्ते पर चल रही हैं, जिससे लोगों का भरोसा टूट रहा है।”
मोतशिम ने कहा, “वर्ष 1991 के वर्शिप एक्ट में कहा गया कि 1947 में जो धार्मिक स्थल जिस तरह से थे, वे उसी रूप में बने रहेंगे। उसके बावजूद देश का माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। हम देश की अदालतों से यह रिक्वेस्ट करते हैं कि कानून को सख्ती के लागू करने की कोशिश करें।” उन्होंने कहा कि हिंदुओं और मुस्लिमों के दरम्यां नफरत पैदा करने के लिए एक अफसाना गढ़ा गया है।”
उन्होंने कहा, “हिंदुस्तान में जितने पुराने मंदिर हैं, वो हजारों साल से हैं। कई मुसलमान खानदानों की हुकुमतें आईं और गईं, लेकिन कभी किसी ने उसकी एक ईंट खुरचने की कोशिश नहीं की। अगर मुसलमानों की ये सोच होती कि हम दूसरों की ईबादतगाह पर जबरदस्ती कब्जा करके उसे मस्जिद बना लें तो क्या ये मंदिर मौजूद होते? ये ऐसा इतिहास है जिसे लोगों ने गढ़ा है।”
ज्ञानवापी मामले को लेकर काशी में हुई लगभग 300 संतों की बैठक में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बयानों पर कड़ी आपत्ति जताई गई। संतों ने आरोप लगाया कि ज्ञानवापी परिसर में बाहर से नमाजियों को बुलाकर नमाज पढ़ाने की कोशिश की गई। संत समिति ने माँग की है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर को हिन्दुओं कों सौंपा जाए। संतों ने चेतावनी दी कि अगर उनकी माँग नहीं मानी गई तो संत समाज अपने तरीके से ज्ञानवापी लेगा।
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि AIMPLB ने गैर-जिम्मेदार की तरह बयान दिया है। उन्होंने कहा, “यह देश संविधान से चलेगा। हमने राम जन्मभूमि संविधान के जरिए ली है और ज्ञानवापी भी ऐसे ही लेंगे। AIMPLB इस तरह के बयान देने से बचे।”