Friday, November 22, 2024
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‘सरकारी सर्वे के बाद 1954 में आवंटित की गई गाँव की जमीन’: तमिलनाडु में हिंदू बहुल गाँव पर दावा करने वाले वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष, अन्य 17 गाँव भी सशंकित

वक्फ के मामले में संपत्ति का स्वामित्व वक्फ से अल्लाह को ट्रांसफर किया जाता है और कोई भी संपत्ति अल्लाह से वापस नहीं ली जा सकती है। इसलिए एक बार संपत्ति वक्फ बन जाने के बाद यह हमेशा वक्फ की रहेगी। इसका मालिक अल्लाह होगा, लेकिन उपयोग वक्फ बोर्ड करेगा।

तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड द्वारा एक हिंदू बहुल गाँवों को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया है। इसको लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। अब इसको लेकर वक्फ बोर्ड ने अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा कि इस जमीन का आवंटन सन 1954 में सरकार द्वारा सर्वेक्षण के बाद किया गया था।

बता दें कि तमिलनाडु के त्रिची जिले के 18 गाँवों की 389 एकड़ भूमि के स्वामित्व को वक्फ बोर्ड ने मुस्लिमों की बताई थी। थिरुचेंदुरई गाँव का एक ग्रामीण अपनी जमीन बेचने गया तो उसे बताया गया कि यह वक्फ की संपत्ति है और उसे वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लाना होगा।

वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष एम अब्दुल रहमान ने इंडिया टुडे को बताया, “1954 से हमारे वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में सरकार द्वारा सर्वेक्षण की गई भूमि की जानकारी दर्ज है। जानकारी के अनुसार, हमने उप-पंजीयक कार्यालय को सर्वेक्षण संख्या और गाँव के नाम के साथ विवरण भेजा है। ये गाँव एक विशाल क्षेत्र में हैं।”

रहमान ने कहा, “हम अर्काइव से डिटेल निकाल कर उप-पंजीयक कार्यालय को देंगे। लोग जमीन पर अपना कामकाज जारी रख सकते हैं, लेकिन इसके स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते।” मंदिर पर कब्जे का खंडन करते हुए उन्होंने कहा, “हमें गर्व है कि वक्फ की संपत्ति मंदिरों और इसके तालाबों के निर्माण के लिए दी गई थी। हमने एक हिंदू किसान को खेती के लिए 300 एकड़ जमीन दी है।”

बता दें कि यह पूरा मामला तब सामने आया, जब राजगोपाल नाम के एक व्यक्ति ने अपनी 1 एकड़ 2 सेंट जमीन राजराजेश्वरी नामक व्यक्ति को बेचने का प्रयास किया। राजगोपाल जब अपनी जमीन बेचने के लिए रजिस्ट्रार ऑफिस पहुँचे तो उन्हें पता चला कि जिस जमीन को बेचने के बारे में वह सोच रहे हैं वह उनकी नहीं, बल्कि जमीन वक्फ हो चुकी है।

राजगोपाल का कहना है कि उनसे यहाँ के रजिस्ट्रार मुरली ने कहा, “जिस जमीन को आप बेचने आए हैं उस जमीन का मालिक वक्फ बोर्ड है। वक्फ बोर्ड के निर्देश के अनुसार इस जमीन को बेचा नहीं जा सकता। आपको चेन्नई में वक्फ बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करना होगा।” थिरुचेंदुरई गाँव के राजगोपाल की घटना सामने आने के बाद पता चला कि आसपास के अन्य 17 गाँवों की जमीन भी उनकी नहीं, बल्कि वक्फ बोर्ड की है।

राजगोपाल ने जब गाँव वालों को आपबीती सुनाई तो पूरा गाँव यह जानकर हैरान रह गया कि जिस जमीन में वह सालों से रहते आ रहे हैं वह उनकी नहीं है। ग्रामीणों ने सोचा कि वक्फ बोर्ड पूरे गाँव का मालिक होने का दावा कैसे कर सकता है जब उनके पास आवासीय और कृषि दोनों के लिए उनके पास जमीनों के आवश्यक दस्तावेज हैं।

इसके बाद, परेशान ग्रामीण इस पूरे मामले को लेकर जब कलेक्टर के पास पहुँचे तो उन्होंने कहा है कि इसकी जाँच करनी पड़ेगी उसके बाद किसी प्रकार की कार्रवाई हो सकती है। वहीं, त्रिची जिले के भाजपा नेता अल्लूर प्रकाश ने कहा, “त्रिची के पास तिरुचेंदुरई गाँव हिंदुओं का एक कृषि क्षेत्र है। वक्फ बोर्ड का तिरुचेंदुरई गाँव से क्या संबंध है?”

उन्होंने आगे कहा, “गाँव में मानेदियावल्ली समीथा चंद्रशेखर स्वामी मंदिर है। कई दस्तावेजों और सबूतों के मुताबिक यह मंदिर 1,500 साल पुराना है। मंदिर के पास तिरुचेंथुरई गाँव और उसके आसपास 369 एकड़ की संपत्ति है। क्या यह मंदिर संपत्ति भी वक्फ बोर्ड के स्वामित्व में है? वक्फ बोर्ड बिना किसी बुनियादी सबूत के कैसे घोषणा कर सकता है कि यह जमीन उसकी है, जबकि गाँव के लोगों के पास जमीन के आवश्यक दस्तावेज हैं।”

भारत में वक्फ और वक्फ बोर्डों का इतिहास

भारत में वक्फ का इतिहास दिल्ली सल्तनत के शुरुआती दिनों से ही माना जाता है। सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम घोर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के पक्ष में दो गाँव समर्पित किए और इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को सौंप दिया। जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और बाद में इस्लामी राजवंश भारत में फले-फूले, भारत में वक्फ संपत्तियों की संख्या बढ़ती चली गई।

19वीं शताब्दी के अंत में भारत में वक्फ की समाप्ति का भी एक मामला सामने आया था। उस दौरान ब्रिटिश शासन के समय में लंदन की प्रिवी काउंसिल में एक वक्फ संपत्ति पर विवाद शुरू हुआ था। इस मामले की सुनवाई करने वाले चार ब्रिटिश न्यायाधीशों ने वक्फ को “सबसे खराब और सबसे हानिकारक” बताते हुए अमान्य घोषित कर दिया था।

भारत में इस निर्णय को स्वीकार नहीं किया गया और 1913 के मुसलमान वक्फ मान्यकरण अधिनियम ने भारत में वक्फ को बचा लिया था। इसके बाद से अब तक वक्फ पर अंकुश लगाने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। यही कारण है कि वक्फ बोर्ड अब सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूमि मालिक है।

नेहरू सरकार द्वारा पारित वक्फ अधिनियम 1954 ने वक्फों के केंद्रीयकरण की दिशा में एक रास्ता बनाया था। यही नही, भारत सरकार द्वारा 1954 के इसी वक्फ अधिनियम के तहत साल 1964 में सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना की गई थी।

तत्कालीन भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया सेंट्रल वक्फ काउंसिल ऑफ इंडिया एक केंद्रीय संस्था है। यह संस्था विभिन्न राज्य के वक्फ बोर्डों के काम की देखरेख करता है, जो वक्फ की धारा 9 (1) के प्रावधानों के तहत स्थापित किए गए थे। 1954 वक्फ अधिनियम को साल 1995 में मुस्लिमों के लिए और भी अधिक अनुकूल बनाया गया। इसके बाद से यह एक अधिभावी कानून है और इस पर कोई विधायी शक्तियाँ काम नहीं कर सकती हैं। एडवोकेट दवे ने भी कोर्ट में यही तर्क दिया।

वक्फ अधिनियम 1995

22 नवंबर 1995 को वक्फ अधिनियम 1995 लागू किया गया। यह अधिनियम वक्फ परिषद, राज्य वक्फ बोर्डों और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की शक्ति और कार्यों के साथ-साथ मुतवल्ली के कामकाज को भी देखता है।

यह अधिनियम एक वक्फ ट्रिब्यूनल की शक्ति और प्रतिबंधों का भी वर्णन करता है, जो अपने अधिकार क्षेत्र के तहत एक सिविल कोर्ट की तरह कार्य करता है। वक्फ ट्रिब्यूनल को एक सिविल कोर्ट माना जाता है और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत एक सिविल कोर्ट द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियों का उपयोग और कार्यों को करने की क्षमता रखता है।

वक्फ ट्रिब्यूनल ऐसा है कि इसका निर्णय अंतिम और सभी पक्षों पर बाध्यकारी होगा। इस अधिनियम के तहत अगर कोई भी मसला वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित किया जाना है तो वो विवाद या कानूनी कार्यवाही किसी दीवानी अदालत के अधीन नहीं जा सकती है। सीधे शब्दों में कहें तो वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले किसी भी सिविल कोर्ट से ऊपर हैं।

एक बार वक्फ की संपत्ति, हमेशा के लिए वक्फ की संपत्ति

वक्फ के मामले में संपत्ति का स्वामित्व वक्फ से अल्लाह को ट्रांसफर किया जाता है और कोई भी संपत्ति अल्लाह से वापस नहीं ली जा सकती है। इसलिए एक बार संपत्ति वक्फ बन जाने के बाद यह हमेशा वक्फ रहेगी। इसका मालिक अल्लाह होगा लेकिन उपयोग वक्फ बोर्ड करेगा।

ठीक ऐसा ही बेंगलुरु ईदगाह मैदान के मामले में भी देखा गया। भले ही सरकार के अनुसार किसी भी मुस्लिम संगठन को इस भूमि का मालिकाना हक नहीं दिया गया है। लेकिन, वक्फ का दावा है कि यह 1850 के दशक से वक्फ की संपत्ति थी, इसका मतलब है कि यह अब हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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