राम मंदिर पर सोमवार (अक्टूबर 14, 2019) को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन भड़क गए। जब उन्होंने वकीलों वाली जगह पर सुब्रह्मण्यम स्वामी को देखा, तब उन्होंने नाराजगी जताई। धवन ने अदालत से कहा कि एक व्यक्ति को तवज्जो दी जा रही है और ये सही नहीं है। सीजेआई गोगोई ने धवन को कहा कि वो इस मामले को देखेंगे। राजीव धवन ने दलीलों की शुरुआत करते हुए कहा कि रीती-रिवाज कोई माइंडगेम नहीं है। उन्होंने दावा किया कि हिन्दू पक्ष ने जिन भी अदालती फ़ैसलों को आधार बनाया है, वे सभी तथ्यात्मक आधार पर सही नहीं हैं।
उन्होंने बड़ा दावा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एएसआई को भी इस बात का कोई सबूत नहीं मिला है कि इस स्थल पर मंदिर को तबाह किया गया था। उन्होंने कहा कि मुस्लिम पक्ष हमेशा से इस जगह का स्वामित्व रखता आया है और हिन्दुओं ने काफ़ी बाद में इसे अपना बताना शुरू किया। हालाँकि, उन्होंने स्वीकार किया कि हिन्दुओं के पास इस जगह का अधिकार नहीं था लेकिन वे यहाँ प्रार्थना कर सकते थे, उन्हें प्रार्थना का अधिकार था। जस्टिस बोड़बे ने धवन से पूछा कि अगर हिन्दुओं को यहाँ प्रार्थना का अधिकार है तब तो मुस्लिम पक्ष के एकाधिकार वाली माँग ख़त्म नहीं हो जाती?
#RamMandir – #BabriMasjid: Custom is not a mind game, Rajeev Dhavan.
— Bar & Bench (@barandbench) October 14, 2019
मुस्लिम पक्षकार राजीव धवन ने जस्टिस बोड़बे के सवाल का जवाब देते हुए एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि अगर उनके स्वामित्व वाली ज़मीन पर कोई हाथ धोने का आग्रह करता है और वह इजाजत दे देते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं कि ये ज़मीन उनकी ही हो जाए। हालाँकि, जस्टिस बोड़बे के सवालों से राजीव धवन नाराज़ भी हो गए। उन्होंने कहा- “सुनवाई के दौरान मैंने इस बात पर ध्यान दिया है कि जजों के सारे सवाल मुझसे ही पूछे जाते हैं। हिन्दू पक्ष से कोई सवाल नहीं किया जाता।” हिन्दू पक्ष ने इस पर आपत्ति जताई।
#RamMandir – #BabriMasjid: One thing I have noticed about this hearing is that all Your Lordships questions have been directed at me. No questions have been put to them (Hindus), Rajeev Dhavan.
— Bar & Bench (@barandbench) October 14, 2019
सुनवाई के दौरान हिन्दू पक्ष द्वारा समय-समय पर क़ुरान की आयतों का जिक्र किए जाने पर आपत्ति जताते हुए राजीव धवन ने कहा कि वो लोग क़ुरान के एक्सपर्ट नहीं हैं। धवन ने कहा कि हिन्दू पक्ष के वकील क़ुरान में से कुछ भी उठा कर उसका जिक्र कर देते हैं जबकि इस्लामिक नियम-क़ानून का दायरा इससे भी बहुत अधिक है।