दिल्ली हाई कोर्ट ने अपनी पत्नी पर मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर तलाक माँगने वाले व्यक्ति की अर्जी ठुकरा दी है। इस व्यक्ति का कहना था कि पत्नी साथ नहीं रहना चाहती। सेक्स से मना करती है। उसे घर जमाई बनाना चाहती है।
30 अक्टूबर 2023 को हाई कोर्ट ने तलाक देने से इनकार करते हुए कहा कि शादीशुदा जोड़े के बीच मामूली मनमुटाव, थोड़े से चिड़चिड़ेपन और विश्वास की कमी को मानसिक क्रूरता नहीं माना जा सकता है। इससे पहले निचली अदालत ने भी इस जोड़े को तलाक देने से मना कर दिया था। इस जोड़े की शादी साल 1996 में हुई थी। 1998 में उनकी एक बेटी पैदा हुई।
पति का आरोप था कि पत्नी को केवल खुद का कोचिंग सेंटर चलाने में दिलचस्पी थी। कोई न कोई बहाना बनाकर वह उसे छोड़ देती थी और सेक्स से इनकार करती थी। इस केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव सचदेवा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हालाँकि यौन संबंध से इनकार करना एक तरह से मानसिक क्रूरता मानी जा सकती है, लेकिन तब जब ये लंबे वक्त तक लगातार और जान-बूझकर किया जा रहा हो।
उन्होंने आगे कहा कि कोर्ट को इस तरह के नाजुक और संवेदनशील मुद्दों का निपटारा करने के लिए खासी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप केवल उलझन भरे और बगैर स्पष्टता के बयानों के आधार पर साबित नहीं किए जा सकते हैं। खासकर जब शादी पूरी तरह से रीति-रिवाजों से हुई हो।
तलाक के इस केस में कोर्ट ने देखा कि तलाक माँगने वाला पति याचिका में बताई गई किसी भी तरह की मानसिक क्रूरता की बात को साबित नहीं कर पाया। कोर्ट ने माना कि तलाक का ये केस शादी के रिश्ते में सामान्य मनमुटाव की तरफ इशारा कर रहा था। कोर्ट में सुबूतों से इस बात की पुष्टि भी हुई कि दरअसल कलह सास और बहु के बीच थी।
जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की बेंच ने कहा, “इस बात का कोई सकारात्मक संकेत नहीं है कि पत्नी का व्यवहार इस तरह का था कि उसका पति के उसके साथ रहना दूभर हो गया हो। मामूली चिड़चिड़ेपन और यकीन न होना मानसिक क्रूरता से नहीं जोड़ा जा सकता है।”
बेंच ने आगे ये भी कहा कि केवल इस आधार पर कि पत्नी ने पति की पुलिस में आपराधिक शिकायत की थी और इस वजह से उस पर एफआईआर दर्ज हुई, इसे क्रूरता नहीं कहा जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा, “महज इसलिए कि पत्नी ने अपनी शिकायत दूर करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जैसा कि उसके पति ने भी किया था, क्रूरता को बढ़ावा देना नहीं कहा जा सकता है। पति की ओर से पेश किए गए सबूतों को जब संभावनाओं की प्रबलता के पैमाने पर परखा गया, तो वो पत्नी की क्रूरता साबित करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं लगे।'”
हाई कोर्ट की बेंच ने कहा, “इस तरह, जो तस्वीर निकल कर सामने आती है, वह बहुत साफ है। दोनों पक्षों के बीच विश्वास, आस्था और प्रेम की कमी हो गई थी, लेकिन इसके बाद भी ये शादीशुदा जोड़ा अपनी शादी को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा था।” अदालत ने उनकी शादी के सुधारे न जा सकने वाली हद तक टूटने के हालात की वजह से तलाक देने की पति की याचिका को भी खारिज कर दिया। कोई कोर्ट ने कहा कि ऐसी शक्ति केवल सुप्रीम कोर्ट के पास है और कोई भी पक्ष अधिकार के तौर पर इसकी माँग नहीं कर सकता।