दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में स्थित दुर्गा मंदिर में दूसरे समुदाय द्वारा की गई तोड़-फोड़ के बाद मीडिया अचानक से उपदेशक की भूमिका में आ गया है। यह नहीं पूछा जा रहा है कि इस मामले में कितने आरोपितों की गिरफ़्तारी की गई और पुलिस ने क्या एक्शन लिया? मीडिया के लिए फतेहपुरी मस्जिद के मुफ़्ती द्वारा इस घटना की निंदा करना ज्यादा मायने रखता है। मीडिया इस घटना को लेकर असदुद्दीन ओवैसी के बयान दिखाने में व्यस्त है। मंदिर में किन लोगों ने तोड़-फोड़ मचाई, प्रतिमाएँ विखंडित की और भड़काऊ नारेबाजी की- यह स्पष्ट है। लेकिन फिर भी मीडिया आज सांप्रदायिक सौहार्द की बातें चला रहा है। भाईचारे की बात करना अच्छी बात है लेकिन दो अलग-अलग मौक़ों पर दोहरा रवैया नहीं चलेगा।
He is the Mufti of Fatehpuri masjid in Old Delhi and a very important leader.
— Rana Safvi رعنا राना (@iamrana) July 2, 2019
He’s condemned the temple attack & appealed for rebuildinghttps://t.co/BIgUJsTgZv
आगे बढ़ने से पहले एक बार पूरे घटनाक्रम पर एक नज़र डाल लेते हैं। कई ताज़ा डेवलपमेंट्स हुए हैं और आपको शुरू से अंत तक इसे समझना ज़रूरी है। दरअसल, इतना सबकुछ होने के बाद भी स्थानीय हिन्दुओं ने शांति बनाए रखी और भावनाएँ आहत होने के बावजूद अपनी तरफ से किसी भी प्रकार के विवाद को जन्म नहीं दिया, यह अच्छी बात है। चावड़ी बाज़ार के हौज काजी में स्थित मंदिर में रविवार (जून 30, 2019) की रात दूसरे समुदाय के कुछ लोग घुस आए और उन्होंने तोड़-फोड़ मचाई। उन्होंने भगवान शिव, भगवान गणेश व अन्य देवताओं की प्रतिमाओं को विखंडित कर दिया।
घटना का वीडियो पूरे सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इसमें देखा जा सकता है कि मंदिर में प्रतिमाओं के आगे लगे गिलास तक को नहीं बख़्शा गया और उसे भी तोड़ डाला गया। इसके बाद दूसरे समुदाय के लोगों ने भड़काऊ एवं उत्तेजक नारे लगाए। उन्होंने ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्ला कर जता दिया कि ये महज एक छोटा सा विवाद नहीं है बल्कि एक मज़हबी उन्माद से ग्रस्त होकर सुनियोजित तरीके से किया गया कार्य है। दिल्ली पुलिस के अनुसार, पार्किंग को लेकर हुए झगड़े ने बड़ा रूप ले लिया और फलस्वरूप ये घटना घटी। इसके बाद सोशल मीडिया पर गिरोह विशेष के जाने-पहचाने चेहरे सक्रिय हो गए और देखिए उन्होंने क्या किया?
जैसे ही पार्किंग वाली बात सामने आई, गिरोह विशेष ने दलील देनी शुरू कर दी कि यह तो अब सांप्रदायिक घटना नहीं है, जैसा कि बताया जा रहा है। उन्होंने इस पर आपत्ति जताई कि पार्किंग को लेकर हुए झगड़े को सांप्रदायिक है और मज़हबी उन्माद में हुई घटना बताया जा रहा है।
दरअसल, रविवार को आस मोहम्मद ने एक दुकान के बाहर अपनी स्कूटी पार्क करनी चाही, इसके बाद ईमारत के मालिक संजीव गुप्ता ने इस पर आपत्ति जताई। इसके बाद मोहम्मद वहाँ से चला गया लेकिन कुछ ही देर बाद वह लौट भी आया। स्थानीय लोगों ने बताया कि मोहम्मद के साथ उसके समाज के और भी कई लोग थे, जिन्होंने संभवतः शराब पी रखी थी। उन्होंने गुप्ता की पिटाई की। यहाँ तक ये आपसी विवाद का मामला था जिसमें मोहम्मद द्वारा अपने ईमारत के सामने स्कूटी खड़ी की जाने पर गुप्ता ने आपत्ति जताई और बदले में मोहम्मद ने ‘अपने लोगों’ के साथ मिल कर गुप्ता को मारा-पीटा।
But Jharkhand was burning after a thief, well, alleged, was allegedly beaten up and fake skull cap case came on Gurugram? And it was all communal.
— saket suryesh ?? (@saket71) July 2, 2019
लेकिन, इसके बाद जो भी हुआ, वह मज़हबी उन्माद में किया गया वही कार्य था, जो पाकिस्तान जैसे देशों में होता रहा है। इसके बाद वही किया गया, जो कश्मीर घाटी के अलगावादी और आतंक समर्थक करते हैं। शायद इस विवाद का मंदिर से कुछ लेना-देना नहीं था लेकिन जिस समय मंदिर पर आक्रमण किया गया और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली गई, उसी क्षण इस घटना ने मज़हबी विवाद का रूप ले लिया। और हाँ, जिस तरह ‘अल्लाहु अकबर’ कह कर आत्मघाती हमले करने वाले आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता, यही नारे लगा कर मंदिर को तोड़ने वाले लोगों का भी कोई धर्म नहीं था।
यह सब सुनियोजित तरीके से किया गया। यह कोई अचानक से हुई घटना नहीं थी। व्हाट्सप्प ग्रुप में कई भड़काऊ और उत्तेजक मैसेज शेयर किए गए। इसे कई लोगों तक पहुँचाया गया। समुदाय विशेष के एक व्यक्ति को मार डाले जाने की अफवाह फैलाई गई ताकि समुदाय के भीतर एक प्रकार का गुस्सा पैदा हो। यह सब जान कर लगता है कि किसी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी वारदात की तैयारी चल रही थी। आज मंगलवार (जुलाई 2, 2019) को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और स्थानीय सांसद डॉक्टर हर्षवर्धन ने मौके का जायजा लिया और ट्विटर पर जानकारी देते हुए लिखा:
“आज सुबह चाँदनी चौक के लाल कुँआ स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर के दर्शन किए। मंदिर में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से हुई तोड़फोड़ से मन व्यथित हुआ है। मैंने स्थानीय लोगों से बात कर मामले की पूरी जानकारी ली और उन्हें आश्वस्त किया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। दौरे पर मेरे साथ रहे डीसीपी व अन्य पुलिसकर्मियों को मैंने मंदिर में तोड़फोड़ करने वाले असामाजिक तत्त्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। पुलिस ने आश्वस्त किया है कि दोषियों को चंद घंटों में पकड़ लिया जाएगा। सभी से धैर्य व शांति बनाये रखने की अपील करता हूँ। क्षेत्र में कोई अन्य अप्रिय घटना न घटे इसके लिए किए गए सुरक्षा बंदोबस्त की भी समीक्षा की। संसद में व्यस्तता के कारण कल क्षेत्र का दौरा नहीं कर सका लेकिन पल-पल की जानकारी लेता रहा।”
डॉक्टर हर्षवर्धन ने प्राचीन दुर्गा मंदिर में दर्शन के बाद स्थानीय प्रबुद्ध नागरिकों से मुलाकात कर हौज काज़ी थाने में पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की और पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जानकारी ली। उन्होंने विश्वास जताया कि पुलिस अपेक्षित कार्रवाई करने में कोताही नहीं बरतेगी। लेकिन, अगर हम समुदाय विशेष के संगठनों व लोगों द्वारा किए जा रहे हालिया प्रदर्शनों को गौर से देखें तो पता चलता है कि कश्मीर की पत्थरबाज़ी का ट्रेंड इसके सिर चढ़ कर बोल रहा है। अलीगढ और मेरठ में तबरेज अंसारी की हत्या के विरुद्ध प्रदर्शन के नाम पर पुलिस से झड़प की गई और पत्थरबाज़ी की गई। जब ईद के दिन दिल्ली में मस्जिद के पास कार गुज़र गई, तब पत्थरबाज़ी की गई।
क्या किसी ने भी पीड़ित संजीव गुप्ता की पत्नी का दर्द जानना चाहा? जिस तरह से मारे गए आतंकियों के परिजनों के घर कैमरा दौड़ता है, क्या गिरोह विशेष ने पीड़ित की पत्नी के बयानों को हाइलाइट किया? नहीं। अभी भी डरी-सहमी बबिता गुप्ता इसी तनाव में डूबी हैं कि उनका परिवार इस ज़हर घुले माहौल में कैसे रह पाएगा? उनके घर में शराब की बोतलें और पत्थर पड़े हुए थे। दुर्गा मंदिर गली में बचे 30 हिन्दू परिवारों के भविष्य की चिंता क्या किसी पत्रकार को है? स्थानीय लोगों का कहना है कि एक तो वहाँ इलाक़े में नाममात्र हिन्दू परिवार बचे हैं और ऊपर से उनके पूजा स्थलों को भी नहीं छोड़ा जा रहा।
मंदिर में आग लगाए जाने की बात भी सामने आई है। मंदिर के पर्दों को जला डाला गया। गली के लोग अभी भी दहशत के साये में हैं लेकिन नहीं, सांप्रदायिक विवाद है ही नहीं। ये तो पार्किंग का मामला है। मंगलवार के ‘नवभारत टाइम्स’ समाचारपत्र पर ग़ौर फरमाइए- “पुरानी दिल्ली में तनाव, पर मज़हब ने सिखाया आपस में बैर न रखना“, यह ख़बर कम और ख़बर को दबाने की कोशिश ज्यादा लगती है। ऐसा इसीलिए, क्योंकि मस्जिदों में अगर कोई चींटी भी चीनी खाने आ जाए तो इसे अल्पसंख्यक हितों पर हमले के रूप में प्रचारित किया जाता है। मुख्यधारा की तरह गिरोह विशेष के अन्य मीडिया संस्थानों ने भी इसे पार्किंग को लेकर हुआ तनाव बताया।
गिरोह विशेष की हमेशा कोशिश यह क्यों रहती है कि किसी सामान्य घटना को भी मजहब विशेष के ख़िलाफ़ वीभत्स अपराध के रूप में पेश किया जाए और एक समाज द्वारा इस्लामी नारे लगाते हुए हिन्दू पूजा स्थलों को तोड़ डाला जाए, फिर भी उसे छिपाया जाए? सवाल दिल्ली पुलिस से भी है कि जब घटना का वीडियो पूरी तरह वायरल हो चुका था और आरोपितों की पहचान मुश्किल नहीं थी, तब भी तुरंत कोई गिरफ़्तारी क्यों नहीं की गई?
एक और सुलगता हुआ सवाल है जो सोशल मीडिया से जुड़ा है। जब एक चोर को भीड़ ने मार डाला और उसका फायदा उठाते हुए कुछेक शरारती तत्वों ने उससे जबरन ‘जय श्री राम’ बुलवाना चाहा तो ट्विटर पर ‘No To Jai Shri Ram’ ट्रेंड कराया गया और इसे गिरोह विशेष का ख़ासा समर्थन मिला। जरा सोचिए, अगर ‘अल्लाहु अकबर’ बोल कर निर्दोष नागरिकों को मार डालने वाले आतंकियों के ख़िलाफ़ अगर ‘No To Allahu Akbar’ ट्रेंड करने लगे तो क्या यही लोग इसे अल्पसंख्यकों की आस्था पर हमले के रूप में नहीं देखेंगे? तब यह कहा जाएगा कि मज़हब विशेष की आस्था को निशाना बना कर ‘डर का माहौल’ पैदा किया जा रहा है। बहुसंख्यक हिंदुओं के इस देश में उनके भगवान राम को नकारने वाला ट्रेंड चलाए जाते हैं, वो भी 2-4 शरारती तत्वों की हरकतों के आधार पर।
आरोपितों की पहचान छिपाई जाती है, घटना की असली वजह छिपाई जाती है, पीड़ितों की पहचान छिपाई जाती है- यह सब एक ख़ास मामले में ही क्यों होता है जब आरोपित खास मजहब के हों और पीड़ित हिन्दू हों? मज़हबी एकता और भाईचारे का सन्देश तब क्यों नहीं दिया जाता जब भीड़ द्वारा किसी चोर की हत्या कर दी जाती है मुस्लमान निकलता है तो उसे लेकर हंगामा किया जाता है? क्या पुलिस भी खास आरोपितों के मामले में अतिरिक्त एहतियात बरतती है और त्वरित कार्रवाई से हिचकती है? वहीं अगर मामले इसके उलट हो या फिर ऐसा प्रतीत हो कि मामला इसके उलट है तो तुरंत एक पब्लिक परसेप्शन बनाया जाता है और त्वरित कार्रवाई होती है। यह सब कब तक चलेगा?