बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी प्रदर्शनों से जुड़ी हिंसा की वजह से अब तक 130 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। पूरा देश थम गया है। हालाँकि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने उस 30 प्रतिशत के आरक्षण पर रोक लगा दी है, जो सरकारी नौकरियों में बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के परिजनों, आश्रितों को दिया जाता था। अब बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने देश में 7 प्रतिशत का आरक्षण लागू किया है और 93 प्रतिशत नौकरियों को अनारक्षित कर दिया है। ये उन प्रदर्शनकारी युवाओं (राजनीतिक कार्यकर्ताओं की नहीं) की जीत है, जिनकी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ‘रजाकारों’ से तुलना कर दी थी।
शेख हसीना के ‘रजाकार’ वाले बयान के बाद प्रदर्शनों में शामिल भीड़ ने अराजकता का प्रदर्शन किया। भीड़ ने नारे लगाए, “तुई के? अमी के? रजाकार, रजाकार! के बोलेचे? के बोलेचे? सैराचार- सैराचार ।” इस बंगाली लाइन का मतलब है, “तुम कौन? मैं कौन? रजाकार, रजाकार! कौन कहता है? कौन कहता है? तानाशाह, तानाशाह!” इस नारे में प्रदर्शनकारी युवाओं की भीड़ ने शेख हसीना को ‘तानाशाह’ करार दिया और खुद को ‘रजाकार’ कहने पर तीखा व्यंग किया।
भारत में रजाकार किन्हें कहा जाता था, ये तो आप जानते ही होंगे? अगर नहीं-तो हैदराबाद के भारत में विलय के ऐतिहासिक पन्ने को खोल लें। हैदाराबाद के निजामी रियासत में हिंदुओं पर अत्याचार करने वाली मिलिशिया रजाकार कहलाती थी, जिसने हैदराबाद की रियासत को भारत में मिलाने के लिए चलाए गए ऑपरेशन पोलो के खिलाफ हथियार भी उठाए थे। ठीक उसी तरह 1971 तक पूर्वी पाकिस्तान यानी अब के बांग्लादेश में ‘रजाकार’ एक प्राइवेट मिलिशिया की तरह थी, इसके लिए पाकिस्तानी सेना बकायदा कानून यानी बिल लेकन भी आई थी। इसी तरह से 2 अन्य कट्टरपंथी मुस्लिमों के मिलिशिया अल-बद्र और अल-शम्स भी थे। ये संगठन पूर्वी पाकिस्तान पर पश्चिमी पाकिस्तान के कब्जे को बनाए रखना चाहते थे और बंग भाषियों की आजादी की लड़ाई को कुचलने में पाकिस्तानी सेना का साथ दे रहे थे।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश यानी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में करीब 50 हजार रजाकार थे। जो बांग्लाभाषियों को सताने में न सिर्फ पाकिस्तानी सेना की मदद करते थे, बल्कि हिंदुओं का सफाया करने में, बांग्ला भाषियों की घरों की तलाशी लेने में, महिलाओं का बलात्कार करने में, बांग्लादेश के सेनानियों की जासूसी करने में सबसे आगे रहते थे। वैसे, रजाकारों को बनाने में पाकिस्तानी सेना का हाथ था, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है स्वयंसेवक होना। वो स्वयंसेवक जो पाकिस्तानी सेना के सहयोगी थे। बांग्लादेश में आज भी रजाकार शब्द का इस्तेमाल बंग विरोधियों और पाकिस्तान समर्थकों के लिए किया जाता है।
रजाकारों ने अल-बद्र और अल-शम्स जैसे कट्टरपंथी धार्मिक मिलिशिया के साथ मिलकर उन नागरिकों, छात्रों, बुद्धिजीवियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया, जिन्होंने पाकिस्तान के कब्जे का विरोध किया था। रजाकारों की मदद से पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के सिपाहियों और उनके परिवार पर जो जुल्म ढाया, उसकी वजह से 1970-71 में 3-30 लाख बांग्लाभाषियों की मौत हुई, करीब 4 लाख महिलाओं का पाकिस्तानी सेना और रजाकारों ने बलात्कार किया, जिसमें करीब 1.95 महिलाएँ गर्भवती भी हुई। इनके अत्याचारों की वजह से 60 लाख से अधिक बांग्ला भाषी लोग भारत में आश्रय लेने को मजबूर हुए और भारत को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। जिसके परिणाम स्वरूप बांग्लादेश नाम का नया देश अस्तित्व में आया।
बांग्लादेश की आजादी के लिए बांग्लादेश के आजादी के दीवानों ने जमकर खून बहाए। बाद में जब देश को आजादी मिली, तो आजादी के नायकों का खूब सम्मान हुआ। उन्हें तमाम तरह की सुविधाएँ देने की कोशिश की गई। इसी क्रम में उनके परिजनों, आश्रितों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत का आरक्षण भी दिया गया।
शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के राष्ट्रपति बनें। बांग्लादेश की बड़ी जनसंख्या जो पश्चिमी पाकिस्तान की समर्थक थी, उसका दमन भी हुआ। देश से कट्टरपंथी तत्वों को हटाया गया। वो भाग कर पाकिस्तान चले गए, लेकिन जमात-ए-इस्लामी जैसे पाकिस्तान परस्त कट्टरपंथी, रजाकार, अल बद्र, अल शम्स से जुड़े सारे आताताई पाकिस्तान नहीं जा पाए। वो वहीं रह गए। शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या कर दी गई। सेकुलर सरकार का पतन कर दिया गया।
बांग्लादेश में तानाशाही आई। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के शौहर जियाउर रहमान देश के राष्ट्रपति बन बैठे। जियाउर रहमान मुक्ति वाहिनी की कमान संभालने वालों में से थे। चूँकि वो पैदा भी हुए थे, तो पश्चिमी पाकिस्तान के एबटाबाद में ही, ऐसे में सत्ता की लालच में वो धीरे-धीरे धार्मिक कट्टरपंथ की ओर झुक गए और फिर देश विरोधी कट्टरपंथी तत्व धीरे-धीरे बांग्लादेश में समाहित हो गए। एक समय बाद देश में तानाशादी का दौर समाप्त हुआ, तो बांग्लादेश की राजनीति भी 2 धड़ों में बँट गई।
हैरानी की बात ये है कि बांग्लादेश की आजादी के 53 साल हो चुके हैं। बीच के देढ़ दशक बांग्लादेश में तानाशाही रही, फिर लोकतंत्र लौटा। लेकिन देश की अगुवाई सिर्फ 2 महिलाओं ने की। पहली- खालिदा जिया, जो जियाउर रहमान की विधवा हैं। तो दूसरी हैं मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना- शेख हसीना बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। पहली की पार्टी है बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी बीएमपी और दूसरे की पार्टी है आवामी लीग।
खैर, हम रजाकारों के बारे में बता रहे थे। पश्चिमी पाकिस्तान में पैदा हुए जियाउर रहमान ने जब देश की कमान संभाली, तो बांग्लादेश में रह गए ‘बिहारी, उर्दू भाषी और कट्टरपंथी तत्वों, जो पहले पश्चिम पाकिस्तान के साथ थे’ बांग्ला विरोधी खेमे के लोग जिया के साथ आ गए। आज भी वो खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी को ही सपोर्ट करते हैं। ऐसे में शेख मुजीब के जमाने से ही बांग्लादेश में लंबे समय तक बांग्लाभाषियों की पहली पसंद की पार्टी आवामी लीग ही रही। उसी ने देश की आजादी के लिए लड़ने वालों के लिए कोटा तय किया था, जिसमें समय-समय पर बदलाव लाया गया।
साल 1998 तक ये सुविधा सिर्फ आंदोलन में हिस्सा लेने वालों को मिलती थी, बाद में ऐसे कैंडिडेट न मिलने की वजह से उनके परिजनों को ये कोटा दे दिया गया। और अब चूँकि 2006 से शेख हसीना ही प्रधानमंत्री हैं और उनकी पार्टी आवामी लीग ही बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई की सबसे बड़ी हिस्सेदार थी, ऐसे में आरोप लगाए जाने लगे कि इस खास कोटा का इस्तेमाल शेख हसीना की पार्टी से जुड़े लोग ही करते हैं। ऐसे में इस कोटा का विरोध बढ़ने लगा। खालिदा जिया की पार्टी लंबे समय से सत्ता से बाहर है। उसे भी मुद्दा चाहिए था। लेकिन 2006 के बाद से ही सत्ता से बाहर रही बीएनपी ने अगले चुनाव में हार के बाद से चुनावों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। देश में सिविल अनरेस्ट की हालत पैदा कर दी गई। बीते चुनाव में भी उस पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार किया और बीते 18 साल से पार्टी सत्ता से बाहर है।
इस बीच, बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई लड़ने वालों के परिजनों को मिलने वाली सुविधाओं खासकर का विरोध शुरू हुआ। इस आरक्षण पर साल 2018 में रोक लगा दी गई, लेकिन हाल ही में एक कोर्ट ने इस आरक्षण को फिर से शुरू करने की राह खोल दी थी। इसके बाद पूरे बांग्लादेश में उबाल आ गया। तिस पर शेख हसीना का “रजाकार” बयान आग में घी का काम कर गया। जगह-जगह प्रदर्शन होने लगे, यूनिवर्सिटी बंद कर दी गई। सेना फ्लैग मार्च करने लगी। उपद्रव को दबाने के लिए गोलीबारी भी हुई। अब तक बांग्लादेश में इस हिंसा की वजह से 130 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों लोग घायल हैं, तो 2000 से अधिक लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
हसीना ने क्यों कहा रजाकार?
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना लंबे समय से सत्ता में हैं। जाहिर तौर पर देश में असंतोष बढ़ रहा था। विपक्षी किसी भी तरह उन्हें सत्ता से हटाने के लिए व्याकुल हो रहे थे। उनके पास ‘जवानी’ की ताकत यानी नौजवानों के प्रदर्शन की ताकत आई। ठीक उसी तरह से, जैसे 1971 में नौजवानों ने मुक्ति बाहिनी बनाकर पाकिस्तान को भारत की मदद से घुटने टेकने पर मजबूत कर दिया था। इस बार ये ताकत विपक्ष के पास आई, जिसमें रजाकार हों या अन्य कट्टरपंथी ताकत, जो पहले से ही उसमें समाहित थे। उन्हें चोट पहुँचाने के लिए शेख हसीना ने उनका नाम लिया, तो वो तत्व नौजवानों के विरोध प्रदर्शन की आड़ में खुलकर सामने आ गए। कथित रजाकारों ने पूरे बांग्लादेश को आग के ही हवाले कर दिया है। प्रदर्शनकारियों की शक्ल में सड़कों पर मौजूद कट्टरपंथी भीड़ खुद को ‘रजाकार’ तो कह रही है, सहानुभूति पाने के लिए, लेकिन शेख हसीना को भी ‘तानाशाह’ की संज्ञा दे रही है।
खास बात ये है कि जिस शेख हसीना के पिता के नेतृत्व में आज का बांग्लादेश बना है, जिन्होंने बांग्लादेश के लिए खून बहाया, उनका खून बहाने में पाकिस्तानियों का सहयोग करने वाले रजाकारों के नाम पर आज फिर से देश को लहूलुहान किया जा रहा है। ऐसे में बांग्लादेश की फिजा में कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव कितना ज्यादा हो चुका है, इस बात को आसानी से समझा जा सकता है। क्योंकि जिन रजाकारों ने बांग्ला महिलाओं का दामन रौंदा, जिन्होंने बांग्लादेश की लड़ाई में बंगालियों से घात किया, उन्हें ‘क्रांति’ का प्रतीक बनाना कहीं से भी सही नहीं लगता। ऐसे में इन रजाकारों की आड़ में विदेशी ताकतें और कट्टरपंथी तत्व बांग्लादेश में किस तरह का हस्तक्षेप कर रहे हैं, इसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
वैसे, अब जबकि बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट आरक्षण को महज 7 प्रतिशत पर समेट चुका है, तो देर-सबेर देश में फैली हिंसा पर भी रोक लग जाएगी, क्योंकि पढ़ाई लिखाई और नौकरी वाले युवा अपने लक्ष्य में जुट जाएँगे और बाकी उपद्रवी ‘रजाकार’ तत्व सरकार की जड़ में खोदने में जुट जाएँगे। ऐसे में शेख हसीना जरूर चाहेंगी उन ताकतों का पता लगाना, जिन्होंने आरक्षण की आड़ में देश को जलाने का काम किया।