Monday, December 23, 2024
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वाह रे लिबरल! बंगाल पुलिस की कहानी अकाट्य, गुजरात-यूपी की पुलिस ग़लत

ख़ूनी राजनीतिक संघर्ष से सनी बंगाल की धरती पर बंधू प्रकाश को परिवार सहित मार डाला गया। लिबरल कहते हैं, इस मामले में बंगाल पुलिस की कहानी ही ब्रह्मवाक्य है। वहीं कमलेश तिवारी के हत्यारोपित मुस्लिम हैं, तो लिबरल यूपी और गुजरात पुलिस पर शक कर रहे हैं। ये दोहरा रवैया क्यों?

एक अजीब सा माहौल है। बहुसंख्यकों के बीच डर का माहौल है। हिन्दुओं में व्याप्त इस भय का कारण क्या है? दिनदहाड़े कमलेश तिवारी की हत्या कर दी गई। उनकी हत्या के बाद गिरफ़्तार हुए तीनों आरोपित मुस्लिम हैं। अब चूँकि सूरत से इसके तार जुड़ गए हैं और गुजरात एटीएस भी जाँच में सम्मिलित है, लिबरल पत्रकारों का एक गिरोह ‘कुछ गड़बड़’ सूँघते हुए अपनी राय बनाने में लगा है। गुजरात का नाम आते ही उनकी ‘सिटी बज जाती है’।

यूपी पुलिस ने कहा है कि कमलेश तिवारी की हत्या इसीलिए की गई क्योंकि उन्होंने 2015 में पैगम्बर मुहम्मद पर टिप्पणी की थी। स्थिति यह है कि कमलेश तिवारी का परिवार अभी भी डर के साये में है। परिवार को सुरक्षा और एक हथियार का लाइसेंस देने की बात यूपी पुलिस ने कही है। यूपी पुलिस के मुताबिक़, सूरत के एक मिठाई की दुकान से मिठाई ख़रीदी गई। उसी डब्बे में हथियार डाल कर हत्यारे कमलेश तिवारी के घर गए। खुद सीएम योगी का भी बयान आया है, जिसमें उन्होंने बताया है कि हत्यारों ने सिक्योरिटी गार्ड को बहाने से भेज दिया और फिर तिवारी की हत्या कर दी।

पुलिस ने कहा है कि कमलेश तिवारी के बेटे को नौकरी देने के साथ-साथ अन्य वित्तीय सुविधाएँ भी दी जाएँगी। आत्मरक्षा के लिए लाइसेंसी हथियार दिया जाएगा। उनके लिए सरकारी आवास की व्यवस्था की जाएगी और सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ परिजनों की बैठक तय की गई है। यूपी पुलिस के मुखिया ओपी सिंह ने कहा है कि जाँच के बाद अभी बहुत से राज़ खुलने बाकी हैं, लेकिन इतना तय है कि ये हत्या पैगम्बर मुहम्मद पर दिए गए बयान के कारण हुई। अब जब इसमें गुजरात का नाम आया है, कुछ पत्रकारों को इसमें सब कुछ गड़बड़ लग रहा है। इन्हीं पत्रकारों को बंधू प्रकाश और उनके परिवार की निर्मम हत्या के मामले में बंगाल पुलिस की कहानी सच्ची लग रही थी।

बीबीसी के पत्रकार रहे रिफत जावेद का कहना है कि रात को डीजीपी ने इसे व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते हुई हत्या बताया, जबकि सुबह होते ही यूपी पुलिस ने सूरत से कुछ लोगों को गिरफ़्तार कर इस घटना को सांप्रदायिक रंग दे दिया। रिफत जावेद लिखते हैं कि ये अभूतपूर्व है। रिफत जावेद का यह भी दावा है कि मृतक तिवारी की माँ ने किसी अन्य भाजपा नेता पर आरोप लगाया है। व्यथित परिवार जाँच नहीं करता बल्कि जाँच पुलिस करती है, ये बात उन्हें पता होनी चाहिए। रिफत जावेद जैसे लोगों को इसमें सब कुछ इसीलिए गड़बड़ लग रहा है क्योंकि इसमें गुजरात एटीएस सम्मिलित है और ये ‘योगी की पुलिस’ है। जबकि यही लोग बंगाल हत्याकांड के समय ‘पुलिस ने तो ऐसा बोला’ वाला राग अलाप रहे थे।

पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं को चुन-चुन कर निशान बनाया जा रहा है। अब तक 80 से भी अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की जा चुकी है। बंगाल वो राज्य है, जहाँ के दागदार पुलिस कमिश्नर को बचाने के लिए ख़ुद मुख्यमंत्री धरने पर बैठती हैं और सत्ता के संघर्ष का तो यह पुराना गवाह रहा है- पहले वामपंथियों का और अब तृणमूल का। वहाँ की पुलिस विश्वसनीय है! जबकि, उत्तर प्रदेश की पुलिस उनकी नज़र में विश्वसनीय नहीं है और गुजरात की पुलिस की बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। लेकिन यही लिबरल पत्रकार बंधू प्रकाश मामले में बंगाल पुलिस की बातों को ब्रह्मवाक्य बता रहे थे।

कथित अर्थशास्त्री रूपा सुब्रह्मण्य को भी इसमें कुछ गड़बड़ नज़र आ गया। उनका पूछना है कि आख़िर घटना लखनऊ में हुई तो इसमें गुजरात एटीएस कहाँ से आ गई? केवल ख़बरों की हेडलाइंस पढ़ कर कुछ भी सोच लेने वाले इन लिबरपंथियों को अब कौन समझाए कि इस घटना की पूरी साज़िश सूरत में रची गई थी। क्या गुजरात और उत्तर प्रदेश दो अलग-अलग राष्ट्र हैं कि उनकी पुलिस मिलजुल कर काम नहीं कर सकती? पुलिस अगर 24 घंटे के भीतर मामले को सुलझाने का दावा कर रही है तो उसे शक से केवल इसलिए देखा जाएं क्योंकि इसमें गुजरात और योगी का नाम आता है।

सोहराबुद्दीन शेख और इशरत जहाँ एनकाउंटर मामले में लोगों ने गुजरात पुलिस की ख़ूब आलोचना की और यहाँ तक कि इसमें अमित शाह का नाम भी घसीटा गया लेकिन वे विफल हुए। यूपीए में हुए ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स को लेकर भी मीडिया ने योगी पर सवालों की बौछार की लेकिन उन्होंने यह पूछ कर सबको शांत कर दिया था कि क्या वह थाल लेकर अपराधियों की आरती उतारें? यही सब कारण है कि इन लिबरपंथियों के मन में यूपी और गुजारत पुलिस से ‘कुछ तो गड़बड़’ वाली फीलिंग आ जाती है। जहाँ अपराधी काँपते हैं, वहीं पर इन लिबरलों की भी सिट्टी-पिट्टी क्यों गुम हो रही है? इस सवाल का जवाब चाहिए कि अगर ख़ूनी राजनीतिक संघर्ष की भूमि बन चुकी बंगाल पुलिस अकाट्य है तो यूपी और गुजारत की पुलिस पर शक क्यों?

कमलेश तिवारी हत्याकांड के कई राज़ अभी खुलने वाले हैं। इस हेट क्राइम के पीछे और कौन-कौन लोग हैं, इसका भी पता लग जाएगा। अभी जैसे-जैसे जाँच आगे बढ़ेगी, लिबरपंथी और वामपंथी कराहते हुए नज़र आएँगे ही क्योंकि आरोपितों में मुस्लिम हैं। यहाँ तक कि आरोपितों में एक मौलवी भी है। जाहिर है कि किसी की मृत्यु के बाद उसका परिवार व्यथित रहता है और वो सारे ‘दुश्मनों’ को शक की नज़र से देखते हैं। ऐसे में, एक बूढी औरत, जिसका बेटा छिन गया, उसका बयान के साथ अपनी विचारधारा की रोटी सेंकने वाले क्या बंगाल के सभी मृत भाजपा कार्यकर्ताओं के परिजनों से बात कर उनका वीडियो शेयर करने की हिम्मत रखते हैं?

यूपी पुलिस बुरी है। गुजरात पुलिस बुरी है। बस बंगाल पुलिस अच्छी है। लिबरलों के इस नैरेटिव को ध्वस्त करने के लिए यूपी पुलिस द्वारा पेश किए गए तथ्य ही काफ़ी होंगे। बस समय का इंतजार कीजिए। सीसीटीवी फुटेज का मिलान और मोबाइल नेटवर्क्स के द्वारा सबूत इकट्ठे किए जा रहे हैं। लेकिन, हो सकता है कि गुजरात पुलिस और योगी को शक की नज़र से देखने वालों को इसमें भी सब कुछ गड़बड़ लगने लगे। कहने को तो वो ये भी कह सकते हैं कि पुलिस ने सबूत ख़ुद बनाए हैं, सभी चीजें मैन्युफैक्चर्ड है। ऐसे लोगों के लिए राँची के काँके में बिरसा मुंडा के नाम पर एक अस्पताल है। वहाँ अच्छी व्यवस्था है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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