पिछले कुछ दिन कनाडा और खासकर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए विशेष रूप से शर्मनाक रहे हैं। एक खालिस्तानी आतंकवादी (हरदीप सिंह निज्जर) की हत्या पर भारत के साथ राजनयिक विवाद में उलझने, जिसका सबूत ट्रूडो अभी तक दे नहीं पाए हैं, के बाद कनाडा को हिटलर के लिए लड़ने वाले एक नाजी सैनिक का सम्मान करने की बदनामी का सामना करना पड़ा।
इस घटना पर दुनिया भर के देशों और यहूदी समुदाय ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिसने कनाडा और पीएम जस्टिन ट्रूडो पर एक ऐसे व्यक्ति के लिए सेलिब्रेट करने के लिए यहूदी विरोधी भावना का आरोप लगाया, जो उस शासन का हिस्सा था जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाखों यहूदियों को बेरहमी से मार डाला था। इस शर्मिंदगी के बावजूद, जिसमें संसद ने माफी माँगी और संसद अध्यक्ष ने इस्तीफा दे दिया, ट्रूडो ने इसके लिए ‘रूसी दुष्प्रचार’ की आड़ ली और खुद को इससे अलग करने की कोशिश की।
वहीं, इससे पहले ट्रूडो कनाडा की संसद में भारत पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं और भारत के साथ राजनयिक तनातनी मोल ले चुके हैं, जबकि उनके पास इस बात से जुड़े कोई सबूत नहीं है, सिवाय खोखले दावे के। उनके दावे पर भारत सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है और ‘जैसे को तैसा’ नीति के तहत ही कनाडा को जवाब दिया है।
हालाँकि, आम नजरिए से देखें तो दोनों ही मामले एक-दूसरे से अलग लगते हैं, लेकिन गंभीर तौर पर देखें और कनाडा के अतीत में झाँके, तो इन बातों को कई चीजें जोड़ती दिख रही हैं। खास कर अंतरराष्ट्रीय संगठनों और अन्य देशों की संवेदनशीलता के प्रति कनाडा का असम्मान भरा रवैया। चूँकि वो दुनिया भर के चरमपंथियों, आतंकवादियों के लिए आश्रय स्थल रहा है, चाहे वो खालिस्तानी आतंकी हों या नाजी हत्यारे। कनाडा ही वो देश है, जो भारत को तोड़कर खालिस्तान बनाने का सपना देखने वालों को शरण देता है, तो लाखों यहूदियों का नरसंहार करने वाले नाजी हत्यारों को भी। उन्हें न सिर्फ कनाडाई सरकार का संरक्षण मिला, बल्कि संसद तक में सम्मानित किया गया।
वैसे, आतंकवादियों और चरमपंथियों को कनाडा द्वारा समर्थन कोई नई घटना नहीं है, ये उसकी पुरानी आदत है, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसमें काफी बढ़ोतरी हुई है। खासकर वर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के राज में, जिसमें कनाडा वांटेड आतंकियों को बचाने की न सिर्फ कोशिश करता है, बल्कि अलगाववादी कार्यों के लिए जमीन भी उपलब्ध कराता है।
लॉस एंजिल्स हवाई अड्डे को उड़ाने वाले आतंकी को शरण देना
1990 के दशक में कनाडा ने अल्जीरियाई आतंकवादी अहमद रेसम को आश्रय दिया था , जिसने बाद में दिसंबर 1999 के अंत में लॉस एंजिल्स अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बमबारी की नाकाम साजिश को अंजाम दिया था। रेसम और अन्य इस्लामिक आतंकवादी 1992 में अल्जीरिया छोड़कर फ्रांस चले गए, जहां वह 1994 तक अवैध रूप से रहे। 1994 में, वह जाली पासपोर्ट पर कनाडा के लिए रवाना हो गए। आव्रजन अधिकारियों को रेसम पर फर्जी पासपोर्ट रखने का संदेह था। लेकिन रेसम ने अपने शपथपूर्ण बयान में आरोप लगाते हुए राजनीतिक शरण का अनुरोध किया कि उसे आतंकवाद के फर्जी मामले में फंसाया गया और अल्जीरिया में यातनाएं दी गई। कनाडा में आव्रजन अधिकारियों ने अल्जीरिया, फ्रांस या इंटरपोल से इसकी पुष्टि किए बिना उसकी कहानी को मान लिया और उसकी शरणार्थी स्थिति पर सुनवाई लंबित रहने तक उसे रिहा कर दिया।
कनाडा के तत्कालीन आप्रवासन मंत्री एलिनोर कैपलान ने इस कदम का बचाव करते हुए कहा कि कनाडा में प्रवेश करने के लिए झूठे पासपोर्ट का उपयोग करना गंभीर अपराध नहीं माना जाता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कई वास्तविक शरणार्थी अक्सर इस रणनीति का सहारा लेते हैं।
रेसम चार साल की अवधि के लिए मॉन्ट्रियल में रहे। उन्होंने एक अपार्टमेंट बिल्डिंग में अपना निवास स्थापित किया, जिसे बाद में कनाडाई और अंतर्राष्ट्रीय कानून प्रवर्तन द्वारा ओसामा बिन लादेन नेटवर्क से जुड़े आतंकवादी सेल के संचालन के मॉन्ट्रियल अड्डे के रूप में मान्यता दी गई। यह सेल विशेष रूप से एक अल्जीरियाई आतंकवादी संगठन से जुड़ा था जिसे सशस्त्र इस्लामी समूह या जीआईए के नाम से जाना जाता है।
मार्च 1998 में, रेसम ने जिहादी प्रशिक्षण लेने के लिए अफगानिस्तान की यात्रा की। एक साल बाद, 1999 में, वह पाकिस्तान, दक्षिण कोरिया और लॉस एंजिल्स के माध्यम से कनाडा लौट आए, जब उन्हें लॉस एंजिल्स अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बमबारी करने की प्रेरणा मिली। मॉन्ट्रियल में वापस आकर और बम बनाने के ज्ञान से लैस होकर, उन्हें रसायन और उपकरण मिले, जिनसे उन्हें इमारतों को विस्फोट करने के लिए डिज़ाइन किए गए विस्फोटक बनाने में मदद मिली। बाद में उसी वर्ष, उसे लॉस एंजिल्स अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बमबारी करने के रास्ते में अमेरिकी शहर सिएटल के पास गिरफ्तार कर लिया गया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नाजियों की कनाडा में एंट्री
कनाडा द्वारा हत्यारओं को शेल्टर देने का ये इकलौता मामला नहीं है, बल्कि वो नाजियों के सैन्य संगठन, यूक्रेनी वेफेन-एसएस गैलिसिया डिवीजन के साथ भी एक घिनौना इतिहास साझा करता है। इसी डिवीजन के हुंका को कुछ दिन पहले कनाडा की संसद में सम्मानित किया गया था, जिसके बाद ये कहानी फिर से दुनिया के सामने आ गई।
गैलिसिया डिवीजन के अनुभवी नाजी हत्यारे यारोस्लाव हुंका को संसद में सम्मानित किए जाने पर कनाडा ने आँखें बंद करके रखी। कैसे, एक नाजी वेटरन को संसद में एंट्री मिली और वो यूक्रेनी राष्ट्रपति के सामने सम्मानित हो गया। वो भी तब, जब यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की के खुद के रिश्तेदार नाजियो द्वारा यहूदियों के होलोकास्ट में मारे गए थे। यही नहीं, कनाडा में तो एसएस की नाजी बटालियन 14वीं वेफेन ग्रेनेडियर डिवीजन को ये कहते हुए क्लीन चिट दे दिया गया, कि उसका नाजियों द्वारा किए गए नरसंहार से कोई लेना देना नहीं। जबकि ये बटालियन नाजियों द्वारा ही संचालित होती थी और पूरी तरह से नाजियों के उद्देश्य ही आगे बढ़ाती थी।
गैलिसिया डिवीजन, जिसे आधिकारिक तौर पर एसएस के 14वें वेफेन ग्रेनेडियर डिवीजन कहा जाता था, वो नाजियों द्वारा स्थापित स्वयंसेवकों का समूह था। ये नाजियों की मूल सेना से अलग, लेकिन उन्हीं द्वारा चलाई जाने वाली स्पेशल बटालियन थी, जिसके दम पर यूक्रेन के क्षेत्रों पर नाजी राज करते थे। नाजियों ने ऐसी ही डिवीजन फ्रांस, नॉर्वे, डच और अमेरिकी नागरिकों को मिलाकर भी बना थी। यूक्रेन की बटालियन को नाजियों ने 1943 में बनाया था, ताकि सोवियत संघ से कब्जाई जमीन पर वो राज कर सके।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद गैलिसिया डिवीजन के सदस्यों को कनाडा में शरण मिली, जबकि आधिकारिक आप्रवासन नीति के तहत कनाडा में जर्मन वेहरमाच या एसएस से जुड़े लोगों के कनाडा में घुसने पर रोक थी। साल 1986 में युद्ध अपराधियों की संघीय सार्वजनिक जांच से पता चला कि गैलिसिया डिवीजन के लोगों को कनाडा में आने के बाद साल 1950 में कैबिनेट की मंजूरी मिली थी।
साल 1986 में जब ये खुलासा हुआ, तो पूरा कनाडा सन्न रह गया। खासकर के वो यहूदी समुदाय, जो नाजियों की बर्बरता का शिकार बना था। उस समय कनाडाई यहूदी कॉन्ग्रेस ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई थी। हालाँकि, उसकी आपत्ति को इस आधार पर खारिज कर दिया गया, कि इस डिवीजन के सैनिकों ने “जर्मनों के प्रति निष्ठा के कारण नहीं, बल्कि रूसियों और कम्युनिस्ट शासन के प्रति उनकी शत्रुता के कारण” स्वेच्छा से काम किया था।
दरअसल, 1980 के दशक की शुरुआत में एक मशहूर नाजी हत्यारे साइमन विसेन्थल ने कनाडाई सरकार को 217 नामों की एक सूची सौंपी थी। इस सूची में गैलिसिया डिवीजन के पूर्व अधिकारियों के नाम थे, जो ‘यूरोप से बाहर रह रहे थे।’ इसकी जाँच के बाद पता चला कि इनमें से कम से कम 11 लोग कनाडा में रहते हुए रिटायर हुए और उनकी कनाडा में ही मौत हो गई। हालाँकि, 1986 में एक सार्वजनिक जाँच में अंततः घोषित किया गया कि डिवीजन के खिलाफ ‘युद्ध अपराध के आरोप’ कभी भी प्रमाणित नहीं हुए थे। नतीजतन, शीर्ष अधिकारियों ने गैलिसिया डिवीजन से जुड़े नाजियों को देश से बाहर निकालने की योजना रद्द कर दी, जबकि कनाडाई सरकार को इनके नाजियों से जुड़ाव के बारे में पूरी जानकारी थी।
खालिस्तानी आतंकियों को बढ़ावा दे रहा है कनाडा
कनाडा अब लोकतांत्रिक राष्ट्र की जगह खालिस्तानी आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन गया है। जो कनाडा में रहकर भारत के पंजाब राज्य को खालिस्तान के नाम से अलग देश बनाना चाहते हैं। ऐसे खालिस्तान समर्थक तत्व न सिर्फ कनाडा की नागरिकता लेकर मौज कर रहे हैं, बल्कि कनाडा की राजनीति में भी दखल बढ़ाकर सरकारी संरक्षण भी प्राप्त कर रहे हैं। ये सब तब हो रहा है, जब भारत की सरकारों ने कनाडा से लगातार अपील की है कि वो खालिस्तानी आतंकियों को संरक्षण देना बंद करे और भारत के विरुद्ध काम कर रहे अलगाववादियों पर शिकंजा कसे।
हाल ही में कनाडा में मारे गए हरदीप सिंह निज्जर के अलावा प्रतिबंधित आतंकवादी गिरोह ‘सिख फॉर जस्टिस’ का मुखिया गुरपतवंत सिंह पन्नू भी कनाडा में रहकर भारत विरोधी गतिविधियों को पूरी आजादी के साथ अंजाम दे रहा है। वो अक्सर भारतीय राजनयिकों, हिंदुओं और भारत सरकार के खिलाफ धमकियाँ जारी करता है और खालिस्तान की माँग करता है। इस माह की शुरुआत में पन्नू कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया पहुँचा था, जहाँ एक गुरुद्वारे में जनमत संग्रह की माँग को लेकर प्रदर्शन किया गया था। यहाँ उसने भड़काऊ भाषण भी दिया था।
गौरतलब है कि कनाडा में उसी दिन जनमत संग्रह का आयोजन किया गया था, जब कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो जी20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत आए थे, जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी ने कनाडा में चरमपंथी तत्वों की जारी भारत विरोधी गतिविधियों के बारे में भारत की कड़ी चिंताओं से अवगत कराया था।
उस कार्यक्रम से जुड़े वीडियो में प्रमुख खालिस्तानी आतंकवादी और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के गुर्गे गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अपने करीबी सहयोगी खालिस्तानी आतंकवादी की हत्या के लिए पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, एनएसए अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर को जिम्मेदार ठहराया था। बता दें कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में दो अज्ञात व्यक्तियों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
खालिस्तानी आतंकवादियों पर दबाव बना, तो कनाडा में मंदिरों पर हमलों की बाढ़ आ गई। 8 सितंबर को खालिस्तानी आतंकवादियों ने कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में श्री माता भामेश्वरी दुर्गा देवी सोसायटी में तोड़फोड़ की। सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें सामने आईं जिनमें हिंदू मंदिर की दीवारों पर ‘पंजाब भारत नहीं है’ नारे के साथ भारत विरोधी पोस्टर चिपकाए गए थे।
कनाडा में मंदिरों और राष्ट्रवादी भारतीयों के खिलाफ इस तरह के बर्बरतापूर्ण हमलों की घटनाएं कुछ महीनों में तेजी से बढ़ी हैं। जो ये दिखाती हैं कि कनाडाई अधिकारी और सरकार किस तरह से खालिस्तानी आतंकियों को पाल-पोस रही हैं। चूँकि जस्टिन ट्रूडो की पार्टी को सत्ता में बने रहने के लिए जगमीत सिंह की राजनीतिक पार्टी से महत्वपूर्ण समर्थन मिलता है, इसी वजह से ट्रूडो शांत रहते हैं और खालिस्तानियों को अपनी गैरकानूनी गतिविधियों को बेखौफ होकर अंजाम देने का हौसला मिलता है।
मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में जिनित जैन द्वारा लिखी गई है। इसे पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।