छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 में सभी पार्टियों ने पूरी ताकत झोंक दी हैं। नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में दो चरणों में मतदान होना है, जिसके नतीजे 3 दिसंबर 2023 को आएँगे। अब चुनाव परिणामों को लेकर अटकलें भी लगनी शुरू हो गई हैं। इस बीच, एक सर्वे आई है, जिसमें कॉन्ग्रेस को आगे दिखाया गया है। हालाँकि, ये सर्वे जमीनी हकीकत से दूर नजर आता है, क्योंकि छत्तीसगढ़ में लगभग हर मुद्दे पर कॉन्ग्रेस जो कुछ समय पहले आगे दिखती थी, वो अब पीछे छूट चुकी है, जिसका जिक्र इस लेख में किया जा रहा है।
अभी सबसे पहले बात सर्वे की। टाइम्स नाऊ-इटीजी ने छत्तीसगढ़ के लिए जो सर्वे जारी किया है, उसमें कॉन्ग्रेस को 3 प्रतिशत वोटों से आगे दिखाया गया है। कॉन्ग्रेस के 42.30 प्रतिशत मतों के मुकाबले भाजपा को 39.30 प्रतिशत मत मिलते दिखाया जा रहा है, तो अन्य के खाते में 18.40 प्रतिशत मत जाते दिख रहा है। इस सर्वे के मुताबिक, कॉन्ग्रेस 51 से 59 सीटें जीत सकती है तो भाजपा को 27 से 35 सीटों के मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। वहीं, अन्य के खाते में 2-6 सीटें मिलती दिख रही हैं।
औंधे मुँह गिरने वाले हैं सर्वे
छत्तीसगढ़ में चुनाव है। भूपेश बघेल के हाथ में सत्ता है, लेकिन उन्हें अपने ही दो साथियों के साथ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। ताम्रध्वज साहू अपने बड़े साहू समाज की ओर से कॉन्ग्रेस में भूपेश बघेल को चुनौती दे रहे हैं, तो दूसरे हैं टीएस सिंहदेव, जिनकी नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। सिंहदेव की नाराजगी थामने के लिए कॉन्ग्रेस हाईकमान को मजबूरी में उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाना पड़ा था। बात सिर्फ इतनी ही नहीं है, बल्कि बात है राज्य के सबसे बड़े मुद्दों की। भूपेश बघेल ने 2018 में छत्तीसगढ़ की जनता से शराबबंदी का वादा किया था, लेकिन वादा निभाना तो दूर, उनके बेटे पर ही 2000 करोड़ के शराब घोटाले का आरोप लगा है।
भूपेश बघेल ने राज्य में युवाओं को रोजगार देने की बात कही, लेकिन उनके राज्य में छत्तीसगढ़ पब्लिक सर्विस कमीशन का सबसे बड़ा घोटाला सामने आ चुका है। इस घोटाले में नेताओं और अफसरों के बच्चों-नजदीकियों को थोक के भाव कलेक्टर बनाया गया। छत्तीसगढ़ के युवाओं ने इसके खिलाफ खूब प्रदर्शन भी किए। यही नहीं, भूपेश बघेल की सरकार कॉन्ग्रेस के हाईकमान के लिए पैसे उगाहने की मशीनरी तक कही जाने लगी है। महिलाओं के कल्याण के मुद्दे पर ये सरकार अप्रभावी साबित हुई है, तो सबसे ज्यादा अनुसूचित जनजाति वाले राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ में पिछले 5 सालों में एसटी वर्ग की क्या गत हुई है, ये किसी से छिपा नहीं है।
यही नहीं, भूपेश बघेल अपने पूरे कार्यकाल में कॉन्ग्रेस संगठन के लिए चुनावी मोड में खड़े रहे। राज्य में विकास कार्य पैरालाइज्ड हो चुके हैं। सामान्य अपराध से लेकर नक्सली हिंसा के नाम पर आम लोगों को मार देने का कलंक भी भूपेश बघेल सरकार के सिर पर लग चुका है। शिक्षा की हालत खराब है। केंद्र सरकार द्वारा पोषित योजनाओं का पैसा तो ले लिया गया, जनता तक वो पहुँचा नहीं। ऐसे में ये सर्वे किस आधार पर किया गया, सबसे बड़ा सवाल तो यही है। आगे हम विस्तार से बता रहे हैं कि क्यों कॉन्ग्रेस छत्तीसगढ़ के बचाव में मजबूत नहीं दिख रही है।
राजनीतिक नेतृत्व
कॉन्ग्रेस: छत्तीसगढ़ कॉन्ग्रेस में ताकत के कई केंद्र हैं। भूपेश बघेल के साथ ही ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव का अपना एक समर्थक वर्ग है। वहीं, भूपेश बघेल के पास ऐसा कोई समर्थक वर्ग नहीं दिखता है। वहीं, टॉप लीडरशिप में राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के अलावा कॉन्ग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी छत्तीसगढ़ पर नजर रख रहे हैं, लेकिन ये सभी नेता पड़ोस की मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीटों पर भी जुटे हुए हैं। वहीं, ताम्रध्वज साहू और टीएस सिंहदेव का समर्थक वर्ग भूपेश बघेल की सुनता तक नहीं है।
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी के पास छत्तीसगढ़ में नेतृत्व की कोई कमीं नहीं है। तीन बार मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को भले ही भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर केंद्र में बुला लिया गया हो, लेकिन छत्तीसगढ़ में वो अब भी काफी प्रभावी हैं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह, भाजपा के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा और भाजपा संघठन के महासचिव बीएल संतोष छत्तीसगढ़ में पूरी तरह से सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई रैलियाँ छत्तीसगढ़ में कर चुके हैं। ऐसे ही एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान टीएस सिंहदेव ने जब केंद्र सरकार की तारीफ कर दी, तो सिंहदेव को कॉन्ग्रेस आलाकमान ने माफी माँगने के लिए मजबूर कर दिया।
छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास राज्य के कई बड़े चेहरे मौजूद हैं। भाजपा के लिए ओबीसी चेहरे के तौर पर अरुण साओ को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है, तो रमन सिंह पहले की तरह चुनावी कार्यक्रमों का अहम हिस्सा हैं। इसके अलावा अनुसूचित जनजाति के नेताओं में रेणुता सिंह सेरुता मोर्चा संभाल रही हैं, तो ओम माथुर और मनसुख माँडविया जेसे धुरंधर छत्तीसगढ़ पर नजर रखे हुए हैं।
छत्तीसगढ़ का चुनावी इतिहास
छत्तीसगढ़ के चुनावी इतिहास को समझने के लिए सिर्फ थोड़ा ही पीछे जाना होगा। छत्तीसगढ़ में पहली बार कॉन्ग्रेस ने 2018 में जीत दर्ज की। भूपेश बघेल की अगुवाई में कॉन्ग्रेस ने 68 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, तो भाजपा को 90 में से सिर्फ 15 सीटें मिली थी, 7 सीटें अन्य के हाथों में हैं, तो 2 सीटों पर अन्य दलों\निर्दलीयों ने जीत हासिल की थी। भाजपा को कुल 33 प्रतिशत और कॉन्ग्रेस को 43 प्रतिशत वोट मिले थे। इस तरह से इस बार भाजपा और कॉन्ग्रेस के बीच महज 3 प्रतिशत के मतों का अंतर सर्वे में दिख रहा है, जो सीटों के लिहाज से लगभग दोगुने का अंतर तो कतई नहीं बैठता। ऐसे में ये आंकड़े संदिग्ध दिखते हैं।
वैसे, साल 2013 के विधानसभा चुनाव में आँकड़ा भाजपा के पक्ष में था। भाजपा ने 90 में से 49 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाई थी। कॉन्ग्रेस को 39 सीटें मिली थी। अन्य के हिस्से में दो सीटें गई थी। मत प्रतिशत की बात करें तो 2013 में भाजपा को 41 प्रतिशत तो कॉन्ग्रेस को 40 प्रतिशत कुल वोट पड़े थे। और अभी साल 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो भाजपा ने 51 प्रतिशत मत हासिल करते हुए 9 लोकसभा सीटें जीती थी, जबकि कॉन्ग्रेस को 42 प्रतिशत वोट मिले थे, और महज 2 सीटें उसकी झोली में गई थी। ये चुनाव 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए थे, जिसमें भाजपा ने बाजी मारी थी। ऐसे में इस विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को आगे दिखाने का मतलब है कि या तो आपका सैंपल साइज बहुत छोटा है, या आपके एक्सपर्ट छत्तीसगढ़ की राजनीति से अनभिज्ञ हैं।
छत्तीसगढ़ में कितने मतदाता, सीटें कितनी और आरक्षण कितना?
चुनाव आयोग के आँकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं। इसमें से 39 सीटें आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों में से 10 अनुसूचित जातियों (एससी वर्ग) के लिए और 29 अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए सुरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 2 करोड़ 3 लाख 80 हजार 79 मतदाता हैं। जिनमें 1 लाख 60 हजार 955 दिव्यांग मतदाता हैं, तो 790 मतदाता थर्ड जेंडर के हैं। इसके अलावा 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ मतदाताओं की संख्या 2 लाख 63 हजार 829 मतदाता हैं। वहीं, 2 लाख 63 हजार 829 मतदाता 18-19 साल के हैं, जो पहली बार मतदान करने वाले हैं।
जाति वर्ग आधारित मतदाताओं का डाटा
छत्तीसगढ़ में सामान्य वर्ग के मतदाता महज 5 प्रतिशत हैं। सबसे बड़े वर्ग के तौर पर ओबीसी और अनुसूचित जनजाति हैं। छत्तीसगढ़ के कुल मतदाताओं में 37 प्रतिशत ओबीसी वर्ग के हैं, जिसमें साहू समाज के सबसे ज्यादा वोटर हैं, तो अनुसूचित जनजाति (एसटी वर्ग) के 34 प्रतिशत मतदाता हैं। राज्य के 15 प्रतिशत मतदाता एससी कम्युनिटी के हैं। खास बात ये है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा भले ही लगातार तीन चुनाव जीती हो, लेकिन महज 6 विधानसभा सीटों पर ही उसके मतदाता लगातार तीन चुनाव जीत सके। वहीं, कॉन्ग्रेस के पास ऐसी 9 सीटें हैं, जो पिछले तीन चुनाव से कॉन्ग्रेस के पास हैं। इसमें से दो सीटें एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 12 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहाँ अनुसूचित जनजाति का वर्चस्व है, तो बाकी की 78 सीटों पर एससी, एसटी और ओबीसी तीनों का प्रभाव है।
चुनाव आयोग ने क्या की है तैयारियाँ?
चुनाव आयोग ने इस बार थर्ड जेंडर, सेक्स वर्कर्स और दिव्यांगों को मतदान में शामिल करने के लिए कई अभियान चलाए हैं। चुनाव आयोग सभी वर्ग के मतदाताओं को मतदान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इसके लिए इस बार छत्तीसगढ़ में मतदान केंद्रों की संख्या भी बढ़ाई गई है। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 23,677 मतदान केंद्र बनाए गए थे। इस बार इनकी संख्या बढ़ाकर 24 हजार 109 कर दी गई है। चुनाव आयोग ने दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर की सुविधा भी दी है, तो दृष्टिबाधित लोगों के लिए एक साथी को ले जाने की भी अनुमति दे दी है। चुनाव आयोग ने बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में पहली बार 100 से अधिक मतदान केंद्र बनाए हैं, जिसकी सुरक्षा के लिए भारी संख्या में केंद्रीय बलों की तैनाती की गई है।
छत्तीसगढ़ में मतदान और नतीजे कब?
छत्तीसगढ़ में मतदान दो चरणों में होने हैं। पहले चरण में 7 नवंबर और 17 नवंबर को मतदान होने हैं। पहले चरण में नक्सल हिंसा प्रभावित बस्तर और राजनांदगाँव डिवीजन के 7 जिलों की 20 विधानसभा सीटों पर 7 नवंबर को मतदान होंगे, तो दूसरे चरण में बाकी की 70 सीटों पर मतदान होंगे। छत्तीसगढ़ में बाकी राज्यों की तरह 3 दिसंबर को मतगणना होगी।
दिल थाम कर बैठिए, 3 दिसंबर को हो जाएगा सबकुछ साफ
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में सत्ता-विरोधी लहर एक बड़ा फैक्टर है। ऐसे में भाजपा कॉन्ग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी भावना का फायदा उठाने की उम्मीद कर रही है। कॉन्ग्रेस पिछले पाँच साल से छत्तीसगढ़ में सत्ता में है, लेकिन जनता में कॉन्ग्रेस के प्रति काफी असंतोष दिखता है। जबकि भाजपा राज्य में अपनी मजबूत संगठनात्मक उपस्थिति से भी लाभान्वित होने की उम्मीद कर रही है।
भाजपा के पास एक अच्छी तरह से चलने वाला चुनावी मशीनरी है और यह उम्मीद की जा रही है कि वह मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफल होगी। वैसे, इस बार छत्तीसगढ़ में हमार राज पार्टी नाम से एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने का दम भरने वाली पार्टी भी मैदान में है, जो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 29 विधानसभा सीटों पर कॉन्ग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
बहरहाल, चुनाव के नतीजे तो 3 दिसंबर को आएँगे, लेकिन तब तक सभी दलों और सभी उम्मीदवारों की धड़कनें बढ़ी ही रहेंगी। इस बार भूपेश बघेल के सामने सिर्फ भाजपा की ही नहीं, बल्कि अजीत जोगी कॉन्ग्रेस भी चुनौती पेश कर रही है। उनके अपने परिवारी जन भी उन्हें चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में सर्वे के आंकड़ें कहाँ तक सटीक बैठेंगे, ये देखने वाली बात होगी।