Friday, September 13, 2024
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कभी ‘श्रीकृष्ण’ गायब तो कभी ‘श्रीराम’… जन्माष्टमी पर भी छलका राहुल गाँधी का ‘सेकुलरिज्म’, जब हिंदुओं को दिखाना होता है नीचा तब हाथ में होती है देवी-देवताओं की तस्वीर

राहुल गाँधी के ऐसे दोहरे रवैया के बारे में अब नेटिजन्स भी अच्छे से जान गए हैं। उन्होंने पुराने पोस्ट की तस्वीरें साझा कर सवाल उठाए हैं कि आखिर जब संसद में चिल्लाते हुए भगवान की तस्वीर दिखा दी जाती है तो सदन के बाहर हिंदू त्योहारों के वक्त क्यों भगवानों की तस्वीरें गायब हो जाती हैं।

हिंदू धर्म में मूर्ति पूजन का महत्व सदियों से रहा है। सनातन मानने वाले लोग आमतौर पर पूजा पाठ के दौरान भगवान की मूर्ति के समक्ष ही आराधना करते हैं। आप भी यदि किसी देवी-देवता का नाम स्मरण करेंगे तो पहले उनकी एक मूरत आपके मन में बनेगी फिर आगे कुछ सोच पाएँगे। ऐसा सिर्फ होगा क्योंकि आपके मन में हिंदू धर्म के लिए आस्था है… जिनके मन में ये आस्था नहीं होती वो मूर्ति और मूर्ति पूजन दोनों से आपत्ति करते हैं। वो आपके त्योहार पर आपको शुभकामनाएँ तो देते हैं लेकिन भगवान के रूप को साझा करने से अक्सर परहेज करते हैं।

इस बात को अगर आपको अच्छे से समझना है तो लिबरलों द्वारा त्योहारों पर साझा होने वाले पोस्ट पर ध्यान देना चाहिए। ये लोग हर त्योहार पर हर समुदाय के लोगों को बधाई देते हैं लेकिन हिंदू धर्म के त्योहारों पर शुभकामना संदेश देते समय उनका अंदाज थोड़ा अलग होता है।

उदाहरण कॉन्ग्रेस सांसद राहुल गाँधी का ले लीजिए। आज जन्माष्टमी है राहुल गाँधी ने एक पोस्ट साझा किया है। इस पोस्ट में उन्होंने एक बाँसुरी और मोरपंख के साथ जन्माष्टमी की बधाई दी और लिखा, “सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाए एवं बधाई। आशा करता हूँ कि हर्ष और उल्लास का यह पर्व आप सभी के जीवन को नई उमंग एवं उत्साह से भर दे।”

राहुल गाँधी के पोस्ट में जन्माष्टमी की बधाई तो दे दी गई, ये तो कह दिया गया कि ये पर्व हर्ष और उल्लास का है लेकिन इसे हिंदू मनाते क्यो हैं और किनके जन्म के कारण इसकी महत्वता है इस पर एक शब्द नहीं लिखा।

इसी तरह उन्होंने जो पोस्ट साझा की उसमें नीले बैकग्राउंड में बाँसुरी और मोरपंख दिखाया गया, लेकिन ग्राफिक्स में कहीं भी ये नहीं दिखाया गया कि ये बाँसुरी और मोरपंख आखिर किसके प्रतीक हैं। तस्वीर में देख सकते हैं कि कहीं भी श्रीकृष्ण का चित्र नहीं दिखाया गया है।

अब शायद आप सोचें कि इसमें क्या समस्या है हर किसी का तरीका होता है बधाई संदेश देने का, कुछ लोग प्रतीकों को आधार बनाकर भी देते हैं और कुछ बिन तस्वीर के भी और कुछ सिर्फ टेक्स्ट के जरिए… बिलकुल सही बात है क्रिएटिव होने के नाम पर कोई भी विधा अपनाई जा सकती है लेकिन भावनाएँ आपकी साफ होनी चाहिए। आज बहुत से लोग भगवान के प्रतीकों को आधार बनाकर फोटो शेयर करते हैं, लेकिन उनके पोस्ट से हमेशा ही भगवान की मूर्ति गायब नहीं होती, लेकिन राहुल गाँधी के केस में ऐसा नहीं है।

ये पहली बार नहीं है जब राहुल गाँधी के सोशल मीडिया पोस्टों से भगवानों की मूर्तियाँ ही गायब मिली हों। ये सिलसिला पुराना है। राहुल गाँधी ने महाशिवरात्रि के मौके पर कैलाश पर्वत की तस्वीर लगा सकते हैं लेकिन प्रतीक के तौर पर उनसे शिवलिंग की तस्वीर नहीं लग पाती। जगन्नाथ यात्रा के वक्त वो मंदिर के शिखर की तस्वीर लगाकर शुभकामनाएँ दे सकते हैं मगर न रथ की फोटो और न भगवान जगन्नाथ की फोटो लगा सकते हैं।

इसी तरह गणेश चतुर्थी पर राहुल गाँधी मोद, भोग, अगरबत्ती सबकी तस्वीरें लगा सकते हैं लेकिन उन्हें अपने पोस्ट में गणेश जी की फोटो लगाने में ससमस्या हो जाती है।

श्री राम नवमी पर टेक्स्ट के तौर पर राम नवमी लिखकर बधाई देना उन्हें आसान पड़ता है मगर श्रीराम का चित्र लगाना उनके लिए मुश्किल काम है। इसके अलावा दीवाली पर तो राहुल गाँधी बिन किसी तस्वीर के ही शुभकामना दे देते हैं।

ऊपर दिए उदाहरण चुनिंदा है और संभव है राहुल गाँधी की टाइमलाइन पर ऐसे और वाकये मिल जाएँ जहाँ भगवान के साकार रूप का चित्र लगाने से बचा गया हो। ऐसा करने के पीछे दूसरे समुदायों को अपनी ओर आकर्षित करने की मंशा, खुद को सेकुलर लिबरल दिखाने की उनकी कोशिश किसी से छिपी नहीं है। आम दिनों में राहुल गाँधी श्रीराम की तस्वीर लगाने से बचते हैं, अयोध्या राम मंदिर जाने से बचते हैं लेकिन एक हिंदू देवता को समर्पित त्योहार पर भी उनका तस्वीर न लगाने वाला रवैया स्वीकार्य कैसे हो सकता है। क्रिएटिविटी के नाम पर एक ही गलती बार-बार नहीं हो सकती और बार-बार सिर्फ भगवान की मूर्तियाँ गायब होना या उनके चिह्न से ही समझौता करना मात्र संयोग नहीं हो सकता। ये विशुद्ध रूप से केवल मूर्ति पूजा का विरोध मालूम पड़ता है।

यही राहुल गाँधी को जब हिंदू धर्म पर सवाल खड़ा करना होता है, हिंदुओं को हिंसक दिखाकर देवताओं का अपमान करना होता है तो वो फौरन संसद में भगवान की तस्वीरें दिखाने से परहेज नहीं करते क्योंकि वहाँ पर मंशा हिंदुओं को बदनाम करने की होती है लेकिन बात जैसे ही हिंदुओं की आस्था को सम्मान देने की आती है वो चालाकी से उन्हीं तस्वीरों को छिपा लेते हैं। राहुल गाँधी के ऐसे दोहरे रवैया के बारे में अब नेटिजन्स भी अच्छे से जान गए हैं। उन्होंने पुराने पोस्ट की तस्वीरें साझा कर सवाल उठाए हैं कि आखिर जब संसद में चिल्लाते हुए भगवान की तस्वीर दिखा दी जाती है तो सदन के बाहर हिंदू त्योहारों के वक्त क्यों भगवानों की तस्वीरें गायब हो जाती हैं।

अपडेट: कॉन्ग्रेस के कुछ समर्थकों ने राहुल गाँधी के कुछ पुराने ट्वीट और कुछ हालिया ट्वीट दिखाए हैं, जिनमें हिंदू देवताओं की तस्वीरें दिखाई दे रही हैं। बावजूद इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि हिंदू त्योहारों पर राहुल गाँधी के सोशल मीडिया पोस्ट से बार-बार हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें गायब रही हैं। यही वजह कि लोगों ने उनके सोशल मीडिया पोस्टिंग पैटर्न पर सवाल उठाया है।

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