- खट्टर की खाट खड़ी हो गई।
- जेजेपी ने बीजेपी की वाट लगा दी।
- यह बीजेपी की हार की शुरुआत है।
- नतीजों से बीजेपी को लगा झटका।
जैसे-जैसे दिन चढ़ा और हरियाणा तथा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे स्पष्ट होने लगे, सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएँ, वेब पोर्टल की हेडलाइन और राजनीतिक टीकाकारों का टिप्पणियाँ ऊपर की चंद पंक्तियों के इर्द-गिर्द सिमटने लगी। इसमें कोई दो मत नहीं कि महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों राज्यों में 2014 की तुलना में बीजेपी की सीटें गिरी हैं। लेकिन, इसी आधार पर इन नतीजों का आकलन करना तथ्यों को अपने ही चश्मे से देखना है।
हरियाणा के परिणाम को 2009 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से तौले तो तस्वीर कुछ और ही दिखने लगती है। महाराष्ट्र में तो 47 साल बाद इतिहास खुद को दोहराने जा रहा है। यानी इन नतीजों को बीजेपी के खिलाफ जनादेश तो नहीं माना जा सकता।
हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को 40 सीटें मिली है। यानी बहुमत से 6 कम। 10 सीटों के साथ दुष्यंत चौटाला की जेजेपी किंगमेकर बताई जा रही। 31 सीटों के साथ कॉन्ग्रेस का दावा है कि यह जनादेश भाजपा के खिलाफ है। 10 साल तक राज्य के सीएम रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि इनेलो, जेजेपी, बसपा सबको कॉन्ग्रेस के साथ आना चाहिए, क्योंकि सब भाजपा के खिलाफ लड़े थे। उनका यह भी आरोप है कि जो लोग निर्दलीय जीते हैं उन्हें बीजेपी सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से साधने की कोशिश कर रही है।
Gobind Kanda, brother of Independent MLA Gopal Kanda:
— ANI (@ANI) October 24, 2019
2009 has repeated itself in 2019. Instead of Congress it is BJP today, with victory on 40 seats. Gopal Kanda has left for Delhi with 6 MLAs. They will form BJP’s govt. #HaryanaAssemblyPolls pic.twitter.com/RGqlEkpzuV
यह सब बोलते हुए हुड्डा शायद 2009 भूल गए। उस समय हुए विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को 40 सीटें ही मिली थी। उस वक्त इनेलो ने 31 सीटें जीती थी। इनेलो से ही टूटकर 10 महीने पहले जेजेपी बनी है जो आज किंगमेकर कही जा रही। लेकिन, 2009 में हुड्डा को जनादेश कॉन्ग्रेस के खिलाफ नहीं लगा। उन्होंने न केवल जोड़तोड़ से सरकार बनाई बल्कि पॉंच साल चलाई भी।
आज हुड्डा जो कह रहे हैं तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि 2009 में कॉन्ग्रेस ने जनादेश का अपमान किया था। उस चुनाव में भी जो अन्य 50 लोग जीते थे वे भी तो कॉन्ग्रेस के खिलाफ ही लड़े थे। उस समय भी तो पॉंच साल से हरियाणा में और केंद्र में कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार चल रही थी। तो क्या उस वक्त निर्दलीय सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से ही साधे गए थे? भले ही सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप आज लग रहा हो, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को ‘पिंजरे में बंद तोता’ उसी जमाने में बताया था।
दिलचस्प यह है कि 2005 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस को 67 सीटें मिली थी। 2009 में 40 पर लुढ़क कर भी हुड्डा किंग थे। नतीजे कॉन्ग्रेस की हार की शुरुआत नहीं थे। 6 सीटें जीत हरियाणा जन कॉन्ग्रेस ने उस समय कॉन्ग्रेस की वाट नहीं लगाई थी। नतीजों से कॉन्ग्रेस को झटका नहीं लगा था।
लेकिन, पॉंच साल में बीजेपी की 7 सीटें क्या गिरी, खट्टर की खाट खड़ी हो गई! यहॉं तक कि आज कॉन्ग्रेस जिस इनेलो और जेजेपी को साथ आने का न्योता दे रही है वह भी अतीत में बीजेपी के ही सहयोगी रहे हैं। इनेलो हरियाणा में बीजेपी के साथ सरकार चला चुकी है तो 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद दुष्यंत चौटाला ने बिना मॉंगे मोदी सरकार को समर्थन दिया था। सो, इनके लिए भी भाजपा के साथ आना घर वापसी जैसा ही है। नैतिक तौर पर सही भी।
आज जिनको दुष्यंत चौटाला में किंगमेकर नजर आ रहा है, उन्हें फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा के नतीजों को याद कर लेना चाहिए। उस समय ऐसे ही रामविलास पासवान किंगमेकर बनकर घूम रहे थे। सत्ता की चाबी कब गुम हुई पता ही नहीं चला।