कॉन्ग्रेस इस समय जनता के वोट के सूखे से किस कदर जूझ रही है, यह वैसे तो दिखाए जाने की जरूरत नहीं है लेकिन, कॉन्ग्रेस नेता गाहे-बगाहे खुद अपनी हताशा का प्रदर्शन कर रहे हैं। इसमें वह किसी हद तक गिरने से नहीं चूकते हैं। इसी क्रम में कॉन्ग्रेस का आज वह ‘आइकन’ भी गिर गया, जिससे ओछेपन की उम्मीद नहीं थी। इस आइकन का ‘फैन’ मैं खुद भी हूँ।
मामले का सच्चा ‘एंगल’
इकॉनोमिक टाइम्स ने एक खबर छापते हुए लिखा है कि हिंदुस्तान ने श्री लंका को गुप्त सूचना (इंटेलिजेंस ‘टिप’) दी थी – लंका के समुदाय विशेष में से कुछ जिहादी लोग श्री लंका में आतंकवादी घटना को अंजाम देने की साजिश कर रहे हैं। श्री लंका के अफसरों ने चेतावनी गंभीरता से नहीं ली और अंजाम भुगता, ईस्टर के दिन ही सिलसिलेवार धमाके उनकी नाक के नीचे हो गए।
इस पर शशि थरूर प्रतिक्रिया देते हुए लिखते हैं, “यह दुखद है। घरेलू मुस्लिमों को तंग करने और उनसे नफरत के चलते, मुस्लिमों से जुड़े किसी भी मुद्दे पर पड़ोसी देशों में भाजपा सरकार की विश्वसनीयता को आघात पहुँचा है। (इसमें) भारत की अगली सरकार को बड़े सुधार करने होंगे।”
This is sad. Shows that the BJP government’s record of Muslim-baiting & bigotry at home has totally undermined its credibility with our neighbours on any issue involving Muslims. Major repairs must be done by India’s next Govt! https://t.co/bEmnUc5gBC
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) May 2, 2019
यह शर्मनाक है। शशि थरूर का यह बयान इसलिए शर्मनाक है क्योंकि जिस रिपोर्ट का शशि थरूर हवाला दे रहे हैं, वह स्पष्ट कह रही है कि वास्तव में लिट्टे के गृहयुद्ध से बेजार और कंगाल श्री लंका पाकिस्तान की गोद में बैठा हुआ है और वह अपने मुस्लिम समुदाय में पल रहे जिहाद पर लगाम लगा कर पाकिस्तान की दुर्दांत इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई को नाराज नहीं करना चाहता था। इसका हिंदुस्तान के हिन्दू-मुस्लिम मसले से कुछ लेना-देना नहीं था।
श्री लंका इसलिए हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा क्योंकि उसे लगा कि यह हिंदुस्तान की ‘चाल’ है, ताकि श्री लंका अपने घर के जिहादियों पर कार्रवाई करे और राष्ट्रों के परे इस्लामिक उम्माह (समुदाय) को सर्वोपरि मानने वाला पाकिस्तान बिलबिला जाए। श्री लंका पाकिस्तान को नाराज नहीं करना चाहता था, क्योंकि पाकिस्तान लिट्टे से निपटने में उसकी सहायता कर रहा था।
इसके अलावा इसमें चीन वाला दृष्टिकोण भी है। चीन, पाकिस्तान का इकलौता ‘अन्नदाता’ बचा है। हाफिज सईद के मामले में सुरक्षा परिषद को झेलाया, 10 साल मसूद अजहर को बचाता रहा (अभी भी पुलवामा का जिक्र चीन ने संयुक्त राष्ट्र के द्वारा जारी अजहर के पापों की फ़ेहरिस्त से हटवा दिया, केवल पुराने पाप ही चस्पा हैं) और पाकिस्तान से गिलगित-बाल्टिस्तान खरीद चुका है, यानी कश्मीरी का वो हिस्सा जो हमारा है। इस तरह से चीन श्री लंका के लिए भी अगर ‘बाप’ नहीं, तो कम से कम ‘चचा’ तो है ही। श्री लंका का हम्बनटोटा बंदरगाह चीन ने 99 साल के लिए लीज पर ले रखा है और उन्हीं रुपयों से श्री लंका की दाल-रोटी चल रही है।
सवाल यह है कि मेरे जैसा ‘कीबोर्ड वारियर’, ‘आर्मचेयर एक्सपर्ट’ अगर इतना सब कुछ जान और सोच सकता है, तो क्या संयुक्त राष्ट्र के सिरमौर बनने की दहलीज तक पहुँच चुके शशि थरूर को यह सब एंगल नहीं दिखे? या फिर सिर्फ इस वजह से देखकर नजरंदाज कर दिया कि इस रिपोर्ट के हौव्वे से कॉन्ग्रेस के लिए पड़े वोटों के अकाल में उन्हें कुछ ‘जिहादी बूँदों’ का योगदान मिल जाएगा?
यह राजनीतिक हमला नहीं, एक ‘प्रशंसक’ का दुःख है
शशि थरूर की जगह पर यह काम वोटों के लिए अगर राहुल गाँधी, कामरेड कन्हैया कुमार, तेजस्वी यादव या जिग्नेश मेवाणी जैसा कोई छुटभैय्या नेता करता, तो कोई आश्चर्य न होता और दुःख तो लेशमात्र नहीं। लेकिन, व्यक्तिगत तौर पर शशि थरूर मोदी के बाद मेरे दूसरे सबसे पसंदीदा नेता हैं, ट्विटर पर नरेंद्र मोदी से भी पहले उन्हें ही फॉलो किया था। साथ ही, मेरे लिए JKR (जेके रॉलिंग) के बाद दूसरे सबसे पसंदीदा लेखक और नॉन-फिक्शन में तो सबसे पहले स्थान पर शशि थरूर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर लिखी आपकी किताब 300 पन्ने से ज्यादा पढ़ चुका हूँ। वर्ष 2017 के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आपको 1 मीटर की दूरी से देख पाना मेरे जीवन के सबसे यादगार पलों में था।
आप विदेश नीति को आंतरिक राजनीति से दूर रखने की बड़ी अच्छी बातें करते हैं। आप हिन्दू धर्म पर वास्तव में विश्वास या परिपालन ना करते हुए, केवल एक विचार के तौर पर जितना जाना जा सकते हैं, आप जान चुके हैं। आप निश्चित ही उदारवादी हैं, संभ्रांत हैं, आपकी ही पार्टी का एक बड़ा धड़ा राहुल गाँधी के बजाए आपको ‘पीएम मैटीरियल’ मानता है। मेरे जैसे कुछ ‘सेंटर-राईट’ लोग भी आपको तहेदिल से पसंद करते हैं। शशि थरूर जी, आपसे निवेदन है कि हमारा दिल मत तोड़िए।