साल 2020-21 के बाद किसानों का आंदोलन एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार पहले से ज्यादा किसान संगठन (100 से अधिक) इस प्रदर्शन में शामिल हैं। ज्यादा से ज्यादा ट्रैक्टरों को दिल्ली में लाने का प्रयास हो रहा है। प्रशासन समझा रहा है तो उनकी बात अनसुनी हो रही। पुलिस रोक रही है तो उपद्रव चल रहा है।
अजीब बात ये है कि सब कुछ लोकसभा चुनावों से ठीक पहले होना शुरू हुआ है और जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं उनका क्रम देख ऐसा मालूम पड़ रहा है कि इस प्रदर्शन का मकसद किसानों का हित नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ राजनीति है।
Farmer "Protest" is Just a MASK. Real Target is to remove Modi Govt. Jitna Dum lagana hai lagaa lo… Its NOT GOING TO HAPPEN #FarmersProtest #FarmersProtest2024 pic.twitter.com/XE6EpR4upW
— Rosy (@rose_k01) February 13, 2024
शुरुआत से देखें तो कहा गया कि किसानों का यह आंदोलन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर कानून बनाने की माँग को लेकर है। किसान चाहते हैं कि सरकार उनकी सभी फसलों के लिए न्यूनतम मूल्य तय करे ताकि उनको कोई नुकसान न हो। अब सरकार इस मुद्दे पर बातचीत करके समाधान निकालने को तैयार है। वो बस सामान्य जीवन को बाधित न करें। लेकिन बॉर्डर पर इकट्ठा कथित किसान पीछे होने का नाम नहीं ले रहे।
VIDEO | "Regarding MSP, we have to see what kind of law they (farmers) are seeking, and what will be the pros and cons. We at the government see things in a positive way, but we can come to a conclusion after considering everyone's interest," says Union Minister Arjun Munda… pic.twitter.com/EWt5Kqc4q9
— Press Trust of India (@PTI_News) February 13, 2024
उलटा इस प्रदर्शन के जरिए बयानबाजी करके अराजकता फैलाने का भरपूर प्रयास हो रहा है। उदाहरण के लिए ऐसे ट्रैक्टरों को दिल्ली सीमा पर लाने की कोशिश है जिनमें भिंडरावाले के झंडे लगे हैं। इसके अलावा वो लोग भी इस प्रदर्शन का हिस्सा बन चुके हैं जो खुलेआम कैमरा ऑन करवाकर ये बोल रहे हैं कि उन्हें खालिस्तान दे दिया जाए वरना वो पाकिस्तान के साथ सीमा खोलेंगे। इन बातों के अलावा भड़काऊ नारेबाजी भी सुनने में आ रही। साथ ही प्रधानमंत्री को खुलेआम धमकी देने का काम भी हो रहा है।
अब एक ऐसे प्रदर्शन में, जिसे ‘अन्नदाता’ के नाम पर प्रमोट किया जा रहा हो। उसमें ऐसी बातों का क्या हो सकता है। 2020-21 के प्रदर्शन में भी यही सब देखने को मिला था जिसके बाद इस पन्नू जैसे खालिस्तानियों ने इस प्रदर्शन के दौरान नए-नए ऐलान कर दिए थे। उसने दिल्ली में बैठे प्रदर्शनकारियों से 26 जनवरी को हंगामा करने को कहा था, जो कि बाद में हुआ भी।
अब इस बार की भूमिका भी ऐसी तैयार की जा रही है कि किसान आंदोलन में खालिस्तानियों की घुसपैठ हो सके और भीड़े हिंसा कर सके। खुफिया रिपोर्ट में पहले ही बताया जा चुका है कि दिल्ली सीमा पर आने पर अड़े कथित किसान पीएम आवास और भाजपा नेताओं के घर के बाहर धरने की योजना लंबे समय से बना रहे थे। इसके लिए उन्होंने रिहर्सल भी की थी और 100 से ज्यादा मीटिंग भी। संभव है कि ये प्रदर्शनकारी बाइक, रेल, बस मेट्रो आदि से दिल्ली में घुसें।
राजनीतिक पार्टी उठा रहीं फायदा
एक तरफ जहाँ कथित किसानों ने प्रदर्शन को लेकर पूरी तैयार की हुई है तो वहीं दूसरी ओर पॉलिटिकल पार्टियाँ इस मौके का लाभ उठाने से पीछे नहीं हट रही। आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली सीएम केजरीवाल दिल्ली वालों की परवाह किए बिना ऐसे प्रदर्शनों को समर्थन दे रहे हैं। वहीं कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने माहौल का फायदा उठाकर गारंटी दी है कि अगर उनकी कॉन्ग्रेस सरकार सत्ता में आई तो किसानों को हर फसल के लिए MSP सुनिश्चित की जाएगी।
स्वामीनाथन रिपोर्ट पर कॉन्ग्रेस के दो चेहरे
दिलचस्प बात ये है कि राहुल गाँधी ने इस वादे के साथ ये भी कहा है कि वो उस स्वामीनाथन रिपोर्ट में रखी गई सब बातों को किसानों के हित में लागू करेंगे, जिसे यूपीए सरकार ने 2010 में खारिज कर दिया था। अगर कॉन्ग्रेस पार्टी को किसानों के हित के लिए इस कदम को उठाना ही था तो उन्होंने इसे तब क्यों नहीं लागू किया जब उनके पास सारी सत्ता थी।
Congress party today promises to bring in MSP law in big show of support to Farmers protesting at Delhi's borders.
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) February 14, 2024
But in 2010 it had rejected Swaminathan Commission recommendations for remunerative prices. Here's the response of the UPA in Rajya Sabha.
In fact any sensible… pic.twitter.com/VsgVSZ2v3w
आज विपक्ष में बैठकर इस मुद्दे पर उस समय वादे करना जब एक वर्ग सड़कों पर उतरा हुआ है, क्या राजनीति से अलग कुछ है? और राहुल गाँधी की इस राजनीति को समर्थन देने वाले लोग क्या राजनीति नहीं कर रहे?
हिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ केस को रद्द कराने की क्यों है माँग
इसके अलावा ये भी जानने वाली बात है कि इस प्रदर्शन की एक माँगों में से एक माँग यह भी है कि जिन लोगों पर किसान आंदोलन में केस हुआ था उन सभी केसों को रद्द किया जाए। अब ये केस किस बात पर हुए थे ये भी ध्यान देने वाली चीज है। पिछले किसान आंदोलन के समय जो प्रदर्शन हुए थे उसमें हिंसा की घटनाएँ भी सामने आई थी जिसमें लाल किले तक पर हमला हुआ था। इसी के बाद पुलिस ने इस मामले में केस किया था।
ये प्रदर्शनकारी चाहते हैं कि प्रशासन उन प्राथमिकियों को रद्द कर दे और किसी उपद्रवी के खिलाफ कोई कार्रवाई न करे। सोचिए एक किसान आंदोलन में ऐसी माँग का क्या अर्थ हो सकता है। क्या ये प्रदर्शनकारी उपद्रव को जायज मानते हैं?
संसद सत्र खत्म होने के बाद क्यों उठाया मुद्दा
सबसे बड़ा बिंदु जो इस ओर इशारा करता है कि ये पूरा प्रदर्शन राजनीतिक है वो ये कि इसे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आयोजित किया जा रहा है। इस प्रदर्शन में कई संगठन शामिल हैं जो किसानों का नेतृत्व करने का दावा करते हैं और अच्छे से जानते हैं कि अगर कोई कानून लाना है तो वो उसका मुद्दा संसद सत्र के समय उठना चाहिए। लेकिन इन किसानों ने न तो संसद सत्र शुरू होने से पहले और न उसके चालू रहने के दौरान अपने प्रदर्शन की तारीख चुनी। बल्कि जब सत्र समाप्त हो गया उसके बाद इन्हीं ‘चलो दिल्ली’ के तहत सीमाओं पर ट्रैक्टर इकट्ठा करने शुरू किए।
Good point raised by @SudhanshuTrivedi ji. Since the Lok Sabha is adjourned indefinitely, and general elections can be announced anytime soon, Modi gvt can't enact any new laws at this time. Even if they want, it’s not possible.#FarmerProtest
— Mr Sinha (@MrSinha_) February 14, 2024
pic.twitter.com/1rmGg69EHW
इसके अलावा एक सवाल यह भी बनता है कि जो किसान दिल्ली कूच की तैयारी में लगे हैं क्या सिर्फ वही किसान हैं और वहीं सरकार द्वारा एमएसपी पर कानून न होने से परेशान हैं? नहीं, देश के कई अन्य राज्य भी हैं जो कृषि में खासा योगदान दे रहे। लेकिन वो इस प्रदर्शन में शामिल होने नहीं आ रहे हैं।
सवाल तो उठता है न केवल पंजाब के किसानों को ही सरकार से इतनी समस्या क्यों है? और क्यों ये लोग अपनी बात मनवाने के लिए सामान्य जनजीवन को प्रभावित करने पर तुले हैं, वो भी तब जब सरकार कह रही है कि वो इस मामले पर बातचीत करेंगे और समस्या का समधान किया जाएगा। अगर वाकई इस प्रदर्शन का उद्देश्य राजनीति नहीं है तो फिर क्यों इससे पॉलिकिल पार्टियाँ जुड़ती जा रही हैं? क्यों इसके जरिए देश के प्रधानमंत्री को धमकियाँ दी जा रही हैं। क्यों उपद्रवियों को बचाने का प्रयास हो रहा है और क्यों भिंडरावाले की विचारधारा क्रांति का प्रतीक दिखाई जा रही है?
खबर में जिक्र हुई स्वामीनाथन रिपोर्ट की संक्षिप्त जानकारी: किसानों की समस्याओं को समझते हुए प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन हुआ था। इस आयोग ने 2004 से 2006 के बीच पाँच रिपोर्टें पेश कीं। इसमें कई सुझाव दिए गए थे। जैसे देश में खाद्य और न्यूट्रिशन सिक्योरिटी के लिए रणनीति बनाई जाए, कृषि प्रणाली की प्रोडक्टिविटी और स्थिरता में सुधार किया जाए, किसानों को मिलने वाले कर्ज का फ्लो बढ़ाने के लिए सुधार हो, पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों के साथ शुष्क भूमि पर किसानों के लिए फार्मिंग प्रोग्राम हो, कृषि के लिए स्थानीय निकाय सशक्त बनें। इसके साथ ही इस आयोग की रिपोर्ट में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) सुनश्चित करने का सुझाव भी दिया गया था और फसल की औसत लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक एमएसपी देना का सुझाव दिया था।