Sunday, December 22, 2024
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47 शैक्षिक/स्वास्थ्य संस्थाएँ चलाने वाला गोरखनाथ मंदिर, जिसके महंत को नेहरू काल में हुई थी जेल: राम मंदिर आंदोलन में बड़ा रोल

महंत दिग्विजयनाथ 1921 में कॉन्ग्रेस में शामिल हुए थे और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। लेकिन, महात्मा गाँधी की 'अहिंसा' उन्हें खास समझ में नहीं आई और 1937 में 'हिन्दू महासभा' से जुड़ने के बाद उन्होंने खुल कर महात्मा गाँधी का विरोध शुरू कर दिया।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने सोमवार (22 नवंबर, 2021) को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की। ये तो सभी को पता ही है कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ ‘गोरक्षधाम पीठाधीश्वर’, अर्थात गोरखनाथ मंदिर के मुख्य महंत भी हैं। ये एक ऐसा मंदिर है, जहाँ गैर-ब्राह्मण महंत बनते आए हैं, अर्थात जाति की कोई सीमा नहीं है। गोरखपुर की सभी जातियों और यहाँ तक कि मुस्लिमों में भी इस मंदिर के प्रति श्रद्धा रही है।

यहाँ हम आपको बताते हैं कि कैसे गोरखनाथ मंदिर राजनीति और फिर सत्ता की धुरी बना। चुनावी इतिहास की बात करें तो आज से लगभग 55 वर्ष पूर्व ही महंत दिग्विजयनाथ यहाँ से सांसद चुने गए थे। हालाँकि, 2 वर्षों के बाद ही 1969 में उनका निधन हो गया, जिसके बाद हुए उपचुनाव में उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ सांसद बने। दोनों ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी। महंत अवैद्यनाथ 1989 में ‘हिन्दू महासभा’ से चुनाव लड़ कर जीते और फिर से लोकसभा पहुँचे।

उन्होंने 1991 और 1996 में गोरखपुर से फिर जीत दर्ज कर के जीत की हैट्रिक लगाई। इसके बाद नंबर आया योगी आदित्यनाथ का। महंत योगी आदित्यनाथ ने 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 – लगातार 5 बार यहाँ से जीत दर्ज की। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। इस तरह उन्होंने लगातार 19 वर्षों तक सीट अपने पास रखी। गोरखनाथ मंदिर के पास गोरखपुर लोकसभा की सीट 29 वर्षों (1989-2017) तक रही।

अभी भी वहाँ से भाजपा के रवि किशन ही सांसद हैं, जो भोजपुरी फिल्मों के बड़े स्टार भी हैं। उन्होंने खुद को भाजपा से ज्यादा मंदिर का कैंडिडेट बता कर ही वोट माँगे थे। योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे के बाद बीच में एक बार ये सीट भाजपा के हाथ से खिसकी, जब समाजवादी पार्टी से प्रवीण निषाद ने जीत दर्ज की। 2018 लोकसभा उपचुनाव गोरखपुर से जीतने वाले प्रवीण निषाद अब भाजपा में हैं और संत कबीर नगर से सांसद हैं। गोरखपुर पूरे उत्तर प्रदेश की सत्ता की धुरी बना हुआ है।

गोरखपुर मंदिर को सहिष्णुता का प्रतीक भी कहा जा सकता है, जहाँ हर जाति-मजहब के लोगों को न्याय मिलता है और उनकी समस्याओं पर काम किया जाता है, उनकी सेवा की जाती है। एक समय था जब यहाँ पूर्वांचल का दरबार लगता था और योगी आदित्यनाथ से मिलने के लिए लोगों का ताँता लगा रहता था। जनता की शिकायत पर वो अधिकारी तक से भिड़ जाते थे। सपा-बसपा के शासनकाल में भी ये करना जिगर का काम था। गोरखनाथ मंदिर के शिखर भले आसमान छूते हों, ये मंदिर इस शहर के दिल में बसता है।

मंदिर के अंदर पूर्व महंतों और भगवान श्रीराम की युद्धमुद्रा में तस्वीर लगी हुई है। खुद योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि हिन्दू अध्यात्म में प्रवृत्ति (कार्य करते रहना) और निवृत्ति (सब कुछ त्याग देना), दोनों का महत्व है और लक्ष्य एक ही है। उनका कहना था कि वो एक मिशन पर हैं और राजनीति लोकप्रियता नया पद नहीं, बल्कि अपने लक्ष्य के लिए कर रहे हैं। महंत दिग्विजयनाथ भी पहले कॉन्ग्रेस में हुआ करते थे, लेकिन बाद में उन्होंने ‘हिन्दू महासभा’ में शामिल होना उचित समझा और उत्तर प्रदेश में इसके मुखिया भी बने।

27 जनवरी, 1948 में हुई एक जनसभा में महात्मा गाँधी की हत्या के हिन्दुओं को उकसाने का आरोप लगा कर उन्हें 9 महीने तक जेल में रखा गया था। लगभग 5 दशक से गोरखनाथ मंदिर के प्रबंधक द्वारका तिवारी कहते हैं कि कॉन्ग्रेस में जब हिन्दुओं की नहीं सुनी जाने लगी, तब उन्होंने पार्टी से अलग होना ही उचित समझा। उनका कहना है कि हम वो करने लगे, जो राजनीतिक दल हिन्दू समाज के लिए नहीं कर पा रहे थे। ये जानना भी दिलचस्प है कि गोरखनाथ मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर ही सुन्नी इमामबाड़ा स्थित है।

अदनान फारुख शाह उर्फ़ ‘मियाँ साहेब’ इसके मुखिया हैं, जो इलाके की वक्फ संपत्तियों की छठी पीढ़ी के ‘मुतवली’ हैं और हर साल मुहर्रम के जुलुस का नेतृत्व करते हैं। हालाँकि, इमामबाड़ा सार्वजनिक राजनीति से दूर ही रहा है। 2007 में मुहर्रम के दौरान ही यहाँ हिंसा भी भड़की थी, जिसके बाद 10 में से अंतिम 3 दिनों का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था। ‘द हिन्दू बिजनेस लाइन’ में स्मिता गुप्ता के लेख के अनुसार, शाह कहते हैं कि उनके दादा और महंत दिग्विजयनाथ अच्छे दोस्त थे और दोनों साथ में शाम को टेनिस खेला करते थे। इसके बाद वो चाय और नाश्ता करते थे।

इसी लेख में अदनान फारुख शाह ने बताया कि किस तरह वो बचपन से ही महंत अवैद्यनाथ को जानते हैं और उनके पिता भी उनके अच्छे मित्र थे। वो कहते हैं कि उनके पिता के निधन के बाद महंत अवैद्यनाथ ने उन्हें कर बार फोन कॉल कर के ढाँढस बँधाया था और कहा था, “बाप का साया नहीं गया। मैं हूँ।” हालाँकि, मुस्लिमों में कट्टरता बढ़ने के साथ ही मंदिर और इमामबाड़ा दूर होते चले गए। योगी आदित्यनाथ और उनकी ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ ने हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध सड़क से लेकर संसद तक आवाज़ उठाई।

गुरु गोरखनाथ से जुड़ी कहानी बताते समय पुरखे ‘जाग मच्छिन्द्र, गोरख आया’ वाली कहावत ज़रूर कहते हैं। उनका कालखंड भले ही 11वीं शताब्दी का माना जाता हो, लेकिन वो कई अलग-अलग समयावधियों में कई संतों को दर्शन दे चुके हैं, ऐसी मान्यता है। उनके चमत्कार के किस्से भारत के साथ-साथ नेपाल में भी मशहूर हैं। सामाजिक कार्यों के लिए लोकप्रिय इस मंदिर का इतिहास शैवायत संप्रदाय वाला रहा है और इसे सिद्धपीठ के रूप में ख्याति मिली।

महंत दिग्विजयनाथ 1921 में कॉन्ग्रेस में शामिल हुए थे और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े थे। लेकिन, महात्मा गाँधी की ‘अहिंसा’ उन्हें खास समझ में नहीं आई और 1937 में ‘हिन्दू महासभा’ से जुड़ने के बाद उन्होंने खुल कर महात्मा गाँधी का विरोध शुरू कर दिया। 1949 में राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल होने के साथ ही वैष्णव और शैव का एक ऐसा मेल बना, जिसने हिंदुत्व को और तगड़ा किया। उनके 9 दिन तक रामचरितमानस का पाठ करने के बाद विवादित ढाँचे में रामलला की मूर्ति रखी गई।

महंत दिग्विजयनाथ चौरी-चौरा प्रकरण में सक्रियता से हिस्सा लेने के कारण 1921 में अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए थे। उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ सांसद बनने से पहले 1962, 67, 69 और 74 और 77 में विधायक भी रहे हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी भूमिका की आज भी सराहना की जाती है। गोरखनाथ मंदिर अब ‘गोरक्षनाथ उत्तर प्रदेश आयुष यूनिवर्सिटी’ भी बनवा रहा है। कुल मिला कर पूर्वांचल में ये मंदिर 47 शैक्षिक और स्वास्थ्य संस्थाएँ चलाता है।

आज योगी आदित्यनाथ इसी विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो मात्र 26 वर्ष की उम्र में ही पहली बार सांसद चुने गए थे। गोरखनाथ मंदिर कई विद्यालय और अस्पताल चलाता है। इसकी संस्था ‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद’ 28 अन्तर स्कूल, 5 पीजी कॉलेज, एक पॉलिटेक्निक कॉलेज और एक ‘संस्कृत विद्यापीठ’ का संचालन करता है। गोरखपुर और इसके आसपास के क्षेत्रों में योग सेंटर भी चलाए जाते हैं। गौशाला भी है। ‘गुरु गोरक्षनाथ विश्वविद्यालय’ का उद्घाटन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया था।

‘महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद’ की स्थापना 1932 में महंत दिग्विजयनाथ ने ही की थी। फिर 1957 में गोरखपुर विश्विद्यालय की स्थापना भी उनके ही प्रयासों से हुई। सरकार में 50 लाख रुपए की जमीन दी थी और वो कम थी, जिसके बाद उन्होंने अपने दो कॉलेज दान में दे दिए। उनका कहना था कि सही शिक्षा से राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास होता है। आज सामाजिक सौहार्द का वातावरण बना कर इन शैक्षिक संस्थानों में गरीबों को प्राथमिकता मिलती है और इन्हें एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा रहा है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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