झंडा लगाकर, सीरियस चेहरा बनाकर इमरान खान ने एक वीडियो के माध्यम से जो बातें कही हैं उससे एक बात जो ज़ाहिर है कि इस व्यक्ति को पाकिस्तान के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी नहीं है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने लगातार दबाव बनाया है, कुछ निर्णय लिए हैं जो कि पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था से लेकर उसके प्रायोजित आतंकवाद के लिए सही नहीं दिख रहे।
पूरे विडियो में, जो कि अपने हिसाब से तथाकथित जमहूरियत के असली मालिकों को खुश रखने के लिए एडिट किया गया है, एक भी बार इमरान खान ने पुलवामा जैसे हमले की निंदा नहीं की, बल्कि यही गुनगुनाते रहे कि दहशतगर्दों से पाकिस्तान को बड़ा नुकसान हुआ है, और सौ बिलियन डॉलर के साथ 70,000 पाकिस्तानियों की जान गई है।
मतलब, क्या कहना चाह रहा है ये आदमी? तुम दहशतगर्दी से परेशान हो तो बाक़ियों की परेशानी तुम्हारे कारण नहीं हो सकती? इनिंग के उत्तरार्ध में रिवर्स स्विंग डालकर बल्लेबाज़ों को कन्फ्यूज किया जा सकता है, लेकिन ग्रेनेड से गेंदबाज़ी नहीं चल सकती। क्योंकि तथ्य सामने हैं कि पाकिस्तान में मसूद अज़हर से लेकर हाफ़िज़ सईद तक परोपकारी संस्थाओं के नाम पर आम जीवन जी रहे हैं। यही किसी दिन बिलबिला कर पेशावर जैसा कांड करेंगे तो पता चलेगा कि पालतू कुत्ते ठीक होते हैं, आतंकी नहीं।
Open to probe in #PulwamaAttack, but will retaliate if #India attacks: #Pakistan PM @ImranKhanPTI https://t.co/JPpNqISLae pic.twitter.com/w0y24axtvN
— EconomicTimes (@EconomicTimes) February 19, 2019
सबूत माँगे हैं इमरान ने यह कहकर कि ये नया पाकिस्तान है और सबूत देने पर वो कार्रवाई करेंगे। ‘नया पाकिस्तान’ सिर्फ कहने से नहीं बन जाता, या फिर अपनी भैंस बेचकर, गधे एक्सपोर्ट करके पैसे जुटाना किसी राष्ट्र को नई दिशा नहीं देता। नयापन आमूलचूल परिवर्तन से, या उसकी इच्छा से आता है। इस मामले में पाकिस्तान वहीं है, जहाँ वो अलग इस्लामी देश बनने के समय में था। नया पाकिस्तान का मतलब यह तो नहीं कि इन आतंकियों को अब व्यवस्थित तरीके से अपनी सेना में रखने का विचार चल रहा है?
क्या सबूत चाहिए? एलओसी के पास के आतंकियों की ट्रेनिंग कैम्प के बारे में इमरान को पता नहीं है, या फिर लॉन्च पैड के बारे में जहाँ से भारत में होनेवाले आतंकी हमलों की प्लानिंग की जाती है? अगर ये नहीं पता तो आईएसआई वालों को बहुत निराशा होगी, क्योंकि प्रधानमंत्री को इतना तो जानना ही चाहिए कि वो आतंकी देश के प्रधानमंत्री हैं और वहाँ की सत्ता सेना और आतंकी चलाते हैं, जबकि चेहरा जमहूरियत का रहता है।
भारत से पाकिस्तान में आतंकियों के होने के सबूत माँगना उतना ही हास्यास्पद है जितना यह कहना कि आतंकवादी ने अगर गोली चलाई तो हमें यह बताइए कि उसके हाथ थे! लेकिन पाकिस्तान के पीएम जैश-ए-मोहम्मद और जमात-उद-दवा के पाकिस्तान में सक्रिय होने के बावजूद, उनके द्वारा हमलों की ज़िम्मेदारी लेते रहने के बाद भी, यही रिकॉर्ड बजाते हैं कि उन्हें सबूत चाहिए! वैसे, इमरान जी, ओसामा जहाँ था उसका नाम ‘चाँद’ तो नहीं रख दिया था आप लोगों ने क्योंकि उसके होने को तो उसके मरने तक आप लोग नकारते रहे थे।
मुझे याद है जब पेशावर के आर्मी स्कूल के हमले में 105 बच्चों की जान गई थी। पूरा भारत उठ खड़ा हुआ था आतंकियों के ख़िलाफ़। जब सच में इस तरह की घटनाएँ होती हैं तो देश की भावना से ऊपर उठकर व्यक्ति मानव मात्र के तौर पर सोचता है, द्रवित हो उठता है। ऐसी घटना दोबारा होगी, तो दोबारा भारत के लोग खड़े होंगे क्योंकि वही मानवता है।
इतना बड़ा विडियो बनाया तो दो शब्द उन जवानों के नाम भी कह देते जो किसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त नहीं हुए, बल्कि अकारण ही वो चले गए। किसने किया, ये तो अलग बात है लेकिन मानव मात्र के नाम पर, एक पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री के नाम पर आपके पास संवेदना के दो शब्द नहीं हैं, लेकिन आप सबूत माँगे जा रहे हैं!
अगर ये नया पाकिस्तान है, तो भारत भी पुराना नहीं रहा। यही कारण है कि आपको सामने आकर ये सब कहना पड़ रहा है। आपके यहाँ चीन का पैसा लगा हुआ है, और अगर भारत ने थोड़ा सा भी रुख़ कड़ा किया, बलूचिस्तान आदि जगहों पर थोड़ी-सी एक्टिविटी बढ़ी तो पैसों के वापस जाने में देर नहीं लगेगी। आपको भी पता है कि नया भारत कहाँ मारता है, कैसे मारता है।
खासकर, मोदी सरकार ने जो आतंकी हमले के बाद सीधा फ़ैसला सेनाओं के हाथ छोड़ दिया है, तब से खलबली मचनी उचित है। पाकिस्तान में जो पानी जाता है, वो भी भारत से होकर जाता है, जिस पर मोदी ने पहले ही कह रखा है कि पानी और ख़ून एक साथ नहीं बह सकते। अमेरिका अब ट्रम्प के आने के बाद से तुम्हारे साथ रहा नहीं। ले-दे कर चीन है, और अगर हालात खराब हुए तो वो भी अपना पैसा लेकर चला जाएगा। अब आपको डर है कि अगर भारतीय सेना ने बिना युद्ध छेड़े पाकिस्तान को सीमित तरीके से तबाह करना शुरु किया, तो आप कहीं के नहीं रहेंगे। ये जो क्राउन प्रिंस आए थे डॉलर लेकर, वो भी शायद ऐसे पाकिस्तान में पैसे न लगाना चाहें जहाँ लगातार युद्ध जैसी स्थिति बनी रहे।
ज़लालत और जहालत का पर्याय बन रहे इमरान खान ने ये भी कहने की कोशिश की कि भारत में चुनाव होने वाले हैं तो ये सब किया जा रहा है! पाकिस्तान में तो आप ही कह रहे हैं कि बहुत दहशतगर्दी है, फिर क्या वहाँ भी चुनाव होने वाले हैं? आतंकवाद से अगर आप परेशान हैं तो फिर नामी आतंकी वहाँ कैसे रह रहे हैं? क्या आप उनका इस्तेमाल चुनावों के दौरान करने वाले होते हैं? जिस देश में चुनाव जीतने का एक ही फ़ंडा हो कि कौन सी पार्टी भारत के नाम पर कितना ज़हर उगल सकती है, वो ‘चुनावों के साल’ की बात न ही करे तो बेहतर है।
इमरान ख़ान ने एक और ग़ज़ब की बात कही कि भारत को सोचना चाहिए कि कश्मीर का युवा अपने आपको मारने पर क्यों उतारू है! अब अगर यह बात भी इमरान को समझ में नहीं आ रही तो लानत है पाकिस्तान के मदरसों पर जो उन्हें बहत्तर हूर के कॉन्सेप्ट ठीक से नहीं समझा पाया!
इमरान अगर आतंक को लेकर गम्भीर हैं तो पुरानी स्क्रिप्ट देखकर बोलना बंद करें और सही मायनों में नई सोच दिखाएँ। नई सोच यही कहती है कि अपनी गिरती इकॉनमी की चिंता करें और आतंक के इन्फ़्रास्ट्रक्चर में कम बजट लगाएँ। भैंस, गधे और कार बेचकर पैसे जुटाने वाले प्रधानमंत्री को यह सोचना चाहिए कि बंदूक़ों और आरडीएक्स के साथ-साथ आतंकियों को सैलरी पर रखना पाकिस्तानी हुकूमत की अजीबोग़रीब नीतियों की तरफ इशारा करता है।