सन 1919 में एक साधारण परिवार में जन्मे महंत अवैद्यनाथ को पहले ‘कृपाल सिंह बिष्ट’ के नाम से जाना जाता था। समय के साथ वह गोरखनाथ मठ के महंत बने और अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ से विरासत में मिले बड़े कर्तव्यों को सफलतापूर्वक निभाया। महंत दिग्विजयनाथ न केवल एक धार्मिक नेता थे, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और हिंदू पुनर्जागरण के एक प्रमुख नेता भी थे।
महंत अवैद्यनाथ ने इस महान धरोहर को न केवल सँभालना था, बल्कि उसे और आगे ले जाकर समाज और धर्म के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों तक पहुँचाना था। महंत अवैद्यनाथ का जीवन केवल आध्यात्मिकता और समाज सेवा तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा, जहाँ उन्होंने अपने धार्मिक आदर्शों को बेहद मजबूती के साथ लागू किया, जिसे आज एक आदर्श के रूप में माना जाता है।
वे उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे और बाद में गोरखपुर से सांसद भी सदस्य बने। सन 1962 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के मनीराम विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से हिन्दू महासभा की ओर से चुनाव में भाग लिया था। सन 1969 में जब वे मठ का महंत बनकर उसका कार्यभार सँभाला तो उन्होंने इसे केवल एक धार्मिक स्थल तक सीमित नहीं रखा।
महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में मठ ने शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज सेवा के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। इससे मठ केवल एक आध्यात्मिक स्थान ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार का एक प्रमुख केंद्र बन गया। सन 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में करीब 1,500 दलितों ने इस्लाम धर्म अपना लिया था। इस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया।
इस घटना के बाद महंत अवैद्यनाथ ने सामाजिक समरसता और दलित उत्थान के लिए सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। उनके नेतृत्व में 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में श्रीराम जन्मभूमि यज्ञ समिति का गठन हुआ, लेकिन उसी साल 31 अक्टूबर को इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद यह मामला कुछ दिनों के लिए रोक दिया गया।
ठीक एक साल बाद 1 नवंबर 1985 को द्वितीय धर्म संसद में समिति ने सरकार को अल्टीमेटम दिया गया कि 8 मार्च 1986 तक राम मंदिर के ताले खुलवा दे नहीं तो सरकार लाखों संतों के क्रोध का सामना करने को तैयार रहे। महंत अवैद्यनाथ, विश्व हिंदू परिषद् और फैजाबाद के एक युवा वकील के मिले-जुले प्रयास से यह आंदोलन कोर्ट का आदेश लाने में सफल रहा।
इस आदेश में कहा गया कि 1 फरवरी 1986 को श्रीराम जन्मभूमि के ताले खोले जाएँ। उस वक़्त उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह थे और उनकी महंत अवैद्यनाथ में गहरी आस्था थी। परिणामस्वरूप ये लोग प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर इतना दबाव बनाने में सफल रहे कि वह इस फैसले में सहयोग करें। आगे चलकर राजीव गाँधी उनके आगे झुके भी।
एक बार फिर से 22 सितंबर 1989 को दिल्ली के वोट क्लब में विशाल हिंदू सम्मेलन में महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखने की तिथि निश्चित कर दी गई। 9 और 10 नवंबर 1989 को वैदिक विधि विधान से आधारशिला का समारोह शुरू हुआ और महंत अवैद्यनाथ के कहने पर अनुसूचित जाति से आने वाले कामेश्वर चौपाल से आधारशिला रखवाई गई।
दरअसल, गोरक्षपीठ जाति-पाँति और ऊँच-नीच जैसे भेदभाव को नहीं मानता है। इसलिए राम मंदिर की आधारशिला रखने के लिए SC समाज के व्यक्ति को चुना गया। इस बीच दिसंबर 1989 में राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के नए प्रधानमंत्री बने। उन्होंने महंत अवैद्यनाथ से मामले को सुलझाने के लिए कुछ महीनों का समय माँगा।
सरकार की लापरवाही को देखते हुए महंथ अवैद्यनाथ ने राम मंदिर को लेकर देशभर में जनजागरण अभियान शुरू कर दिया। वहीं, दूसरी ओर अजय सिंह बिष्ट कोटद्वार में बीएससी की पढ़ाई कर रहे थे और एबीवीपी के साथ जुड़कर सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते रहते थे। पुनर्जागरण के दौर को लेकर नियति ने भी बहुत कुछ तय कर रखा था।
इसी जनजागरण में दौरान महंत अवैद्यनाथ को अपना शिष्य, गोरखपीठ के भविष्य का पीठाधीश्वर और देश के सबसे बड़े सूबे को उसका सबसे लंबे समय तक रहने वाला मुख्यमंत्री मिलने वाला था। नियति ने इन्हीं के मुख्यमंत्रित्व काल में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण होना तय कर दिया था। इसके अलावा भी बहुत कुछ अभी होना बाकी था।
पहली बार 1990 में अजय सिंह बिष्ट का साक्षात्कार महंत अवैद्यनाथ से हुआ। उनसे वो अत्यंत प्रभावित हुए। महंत अवैद्यनाथ की अध्यक्षता वाली श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन समिति ने घोषणा की कि 30 अक्टूबर को अयोध्या में कारसेवा के तहत मंदिर निर्माण का कार्य शुरू किया जाएगा। उस समय उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। उन्होंने राम मंदिर आंदोलन को सांप्रदायिक करार दिया था।
इस तरह श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व गोरक्षपीठ के तत्कालीन महंत अवैद्यनाथ कर रहे थे। उनके साथ साधु-संतों के 970 से अधिक संगठन और तमाम सांस्कृतिक संगठन एवं राजनीतिक दल भी काम कर रहे थे। इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा निकालने की घोषणा कर दी।
इसके विपरीत मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कानून व्यवस्था की आड़ में यह घोषणा की, “मेरे मुख्यमंत्री रहते अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता है।” 23 अक्टूबर को लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा बिहार के समस्तीपुर में रोक कर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। 26 अक्टूबर को दिल्ली से अयोध्या जाते समय महंत अवैद्यनाथ को बीच रास्ते में ही गिरफ्तार कर लिया गया।
इन सबके बावजूद 30 अक्टूबर को अयोध्या में लाखों कारसेवक प्रवेश कर गए, जिससे बौखलाई उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की पुलिस ने कारसेवकों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलानी शुरू कर दी। महंत अवैद्यनाथ से प्रभावित अजय सिंह बिष्ट भी इस कारसेवा में शामिल हुए थे। कारसेवकों पर हमले के ठीक एक साल बाद महंत अवैद्यनाथ ने एक घोषणा की।
महंत अवैद्यनाथ ने 30 अक्टूबर 1991 को कारसेवकों को श्रद्धांजलि देते हुए घोषणा की कि श्रीराम मंदिर का निर्माण किसी के दया से नहीं, बल्कि हिंदुओं के शौर्य से होगा। 23 जुलाई 1992 को जब सुप्रीम कोर्ट ने विवादित स्थल पर किसी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी तो उसी दिन महंत अवैद्यनाथ के नेतृत्व एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव से जाकर मिला।
प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने महंत अवैद्यनाथ से 3 महीने तक रुकने का आग्रह किया। हालाँकि, समय बीत जाने पर सरकारी लापरवाही को देखते हुए 30 अक्टूबर की पाँचवीं धर्म संसद में 6 दिसंबर को कारसेवा का दिन तय हुआ। 6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवकों व साधु संतों के मौजूदगी में विवादित ढाँचा गिरा दिया गया। मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में चलने लगा था।
इधर 1994 में अजय सिंह बिष्ट गोरखपीठ के उत्तराधिकारी घोषित किए जा चुके थे और वे अब योगी आदित्यनाथ बन चुके थे। सन 1998 में बड़े महंत जी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया और योगी आदित्यनाथ जी, जिन्हें लोग वहाँ प्यार से ‘छोटका बाबा’ कहते थे उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बना दिया। महंत अवैद्यनाथ की एक और महान उपलब्धि उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ को तैयार करना थी।
उन्होंने योगी आदित्यनाथ को न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी तैयार किया। आज योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और अपने गुरु के आदर्शों पर चलकर प्रदेश और देश की सेवा कर रहे हैं। बड़े महंत जी (अवैद्यनाथ जी) पूर्ण रूप से धार्मिक-सामाजिक और मंदिर के कार्यों में अपने आपको लगा दिया। उनके जीवन के आख़िरी इच्छा राम मंदिर को देखना था।
इसी आस में महंत अवैद्यनाथ ने 12 सितंबर 2014 को अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। महंत अवैद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखपीठ के पीठाधीश्वर बने। फिर 19 मार्च 2017 को वे देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनों के बाद योगी आदित्यनाथ अयोध्या भगवान राम का दर्शन करने गए।
आखिरकार योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हुआ। महंत अवैद्यनाथ का जीवन धर्म, सेवा और नेतृत्व का प्रतीक था। उन्होंने गोरखनाथ मठ की परंपराओं को न केवल सँजोया, बल्कि उन्हें समाज की भलाई के लिए उपयोग किया। उनका जीवन राम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उनकी सेवाओं तक फैला हुआ था।