पंजाब की देखा-देखी पश्चिम बंगाल विधानसभा ने भी प्रस्ताव पारित करके ‘केंद्र सरकार की सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार बढ़ाने संबंधी अधिसूचना’ को खारिज कर दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उपरोक्त अधिसूचना को वापस लेने की माँग करते हुए ऐसा न करने की स्थिति में स्वयं उसे खारिज करने की धमकी दी थी। पिछले दिनों पंजाब विधानसभा ने भी एक प्रस्ताव पारित करके 11 अक्टूबर, 2021 को केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया था।
इस अधिसूचना द्वारा सीमावर्ती राज्यों- पंजाब, राजस्थान, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल आदि में सीमा सुरक्षा बल के ‘क्षेत्राधिकार’ को एकसमान किया गया है। पंजाब और पश्चिम बंगाल सरकारों का यह विरोध अपना उल्लू सीधा करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौते और केंद्र-राज्य संबंधों को तनावपूर्ण बनाने की स्वार्थप्रेरित राजनीति का नायाब उदाहरण हैं। यह विडम्बनापूर्ण ही है कि इन दोनों सरकारों ने कानून-व्यवस्था को राज्य सूची का विषय बताकर केंद्र सरकार के इस निर्णय को संघीय ढाँचे पर चोट बताया है।
हालाँकि, स्मरणीय तथ्य यह है कि सन् 2011 में यूपीए की सरकार में गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने इस आशय का विधेयक संसद में प्रस्तावित किया था। क्या तब कॉन्ग्रेस पार्टी को यह सुध-बुध न थी कि यह विषय राज्य-सूची में है और केंद्र द्वारा ऐसा कोई कदम उठाना संघीय ढांचे को क्षतिग्रस्त करेगा! विचारणीय है कि सीमा सुरक्षा बल अधिनियम-1969 इंदिरा गाँधी सरकार ने लागू किया था। क्या तब संघीय ढाँचे को ठेस नहीं पहुँची थी? दरअसल, तात्कालिक लाभ के लिए किए जा रहे इस विरोध से मुख्य विपक्षी दल कॉन्ग्रेस का छद्म चरित्र उजागर होता है।
विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था को गड्डमड्ड करके यह गफ़लत पैदा की जा रही है। यह अकारण नहीं है कि केंद्र सरकार के इस निर्णय का मुखर विरोध कॉन्ग्रेस और तृणमूल कॉन्ग्रेस जैसे विपक्षी दल और उनकी सरकारें ही कर रही हैं। विधानसभा में इस प्रकार का प्रस्ताव पारित करना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं, व्यवस्थाओं और संस्थाओं का दुरुपयोग है। यह अत्यंत दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य विधायिका और कार्यपालिका केंद्रीय विधायिका और कार्यपालिका से टकराव पर उतारू हैं।
यह अधिसूचना जारी करने से पहले गृहमंत्री अमित शाह ने संबंधित राज्य सरकारों से इस विषय पर चर्चा की थी। इसलिए पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी शुरू में खामोश थे। जब आम आदमी पार्टी और अकाली दल जैसे विपक्षी दलों ने उन पर ‘आधे से अधिक पंजाब को मोदी सरकार को देने’ और ‘पंजाब के हितों को गिरवी रखने’ जैसे आरोप लगाए, तब उन्होंने इस मुद्दे के ‘राजनीतिकरण’ से घबराकर सर्वदलीय बैठक और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस अधिसूचना को ख़ारिज करने की चाल चली।
पंजाब में इस मुद्दे के ‘राजनीतिकरण’ का एक कारण उसका आंतरिक सत्ता-संघर्ष भी है। ममता भला मोदी के विरोध का अवसर हाथ से कैसे जाने दे सकती हैं! कॉन्ग्रेसियों की देखादेखी वे भी सक्रिय हो गईं। इससे पहले भी वे एकाधिक अवसरों पर केंद्र सरकार से टकरा चुकी हैं। विधानसभा चुनाव में जीत के बाद TMC के कारिंदों ने विपक्षी दलों खासतौर पर भाजपा के कार्यकर्ताओं पर जबर्दस्त कहर बरपाया। सरकार के इशारे पर पुलिस भी तमाशबीन बनी रही।
जब केंद्र ने बंगाल में राजनीतिक हिंसा की सीबीआई जाँच की पहल की तो राज्य सरकार ने सीबीआई जाँच की ‘सामान्य सहमति’ को खारिज कर दिया। उसकी देखादेखी राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, झारखंड, पंजाब आदि विपक्ष शासित राज्यों ने भी ऐसा ही किया। इसी तरह ममता सरकार ने पेगासस जासूसी प्रकरण की इकतरफा न्यायिक जाँच शुरू करा दी। गौरतलब है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और तेजतर्रार और ईमानदार पुलिस अधिकारी रहे सीमा सुरक्षा बल के पूर्व निदेशक प्रकाश सिंह ने इस अधिसूचना को ‘आवश्यक और अपरिहार्य कदम’ बताते हुए विपक्षी दलों द्वारा इसके विरोध को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति’ कहा है।
विपक्ष द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और क़ानून-व्यवस्था को गड्डमड्ड करके यह गफ़लत पैदा की जा रही है। यह अकारण नहीं है कि केंद्र सरकार के इस निर्णय का मुखर विरोध कॉन्ग्रेस और TMC जैसे विपक्षी दल और उनकी सरकारें ही कर रही हैं। पिछले लगभग दो दशक से भारत में नशाखोरी बढ़ती जा रही है। पंजाब के युवा सबसे बड़ी संख्या में इसकी गिरफ़्त में हैं। ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों में इस समस्या की भयावहता दर्शायी गई है। पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से मादक पदार्थों की तस्करी इसकी बड़ी वजह है।
पंजाब तस्करी का सबसे सुगम रास्ता रहा है। हालाँकि, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, राजस्थान आदि प्रदेश भी ‘’रिस्क जोन’ में हैं। संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 ए को निष्प्रभावी किये जाने से जम्मू-कश्मीर का पूर्ण विलय सम्पन्न हो गया है। भारत सरकार की इस निर्णायक पहल से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। अफगानिस्तान में मध्यकालीन मानसिकता वाले तालिबान के शासन शुरू होने से उसके हौसले बुलन्द हैं। पाकिस्तान और तालिबान का याराना जगजाहिर है।
पाकिस्तान ने मरणासन्न आतंकवाद को संजीवनी देने के लिए अपनी रणनीति में बदलाव किया है। अब वह सुरक्षा बलों की जगह सामान्य (प्रवासी) नागरिकों की ‘लक्षित हत्या’ द्वारा दहशतगर्दी और अस्थिरता फैलाना चाहता है। इस लक्ष्य को अंजाम देने के लिए उसने मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की तस्करी बढ़ा दी है। तस्करी के लिए वह 50 किमी तक की क्षमता वाले ड्रोनों का प्रयोग कर रहा है। ये ड्रोन अत्यंत विकसित और अधुनातन चीनी तकनीक से लैस हैं।
मादक पदार्थों, हथियारों और नकली नोटों की पाकिस्तान संचालित तस्करी को रोका जाना अत्यंत आवश्यक है। यह तस्करी देश की युवा पीढ़ी के भविष्य और राष्ट्रीय एकता-अखंडता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। पश्चिम बंगाल और असम जैसे प्रदेशों में म्यांमार और बांग्लादेश से भारी तादात में घुसपैठ की घटनाएँ होती हैं। तस्करी और घुसपैठ को अनेक राजनेताओं और कई राज्य सरकारों का संरक्षण मिलता रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू पूर्ववर्ती बादल सरकार पर तस्करी को प्रश्रय देने के आरोप लगाते रहे हैं।
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने विधान सभा में उपरोक्त प्रस्तावों पर बोलते हुए पूर्व वित्त मंत्री बिक्रमजीत सिंह मजीठिया को तस्करों का सरगना अकारण नहीं बताया। पंजाब की आम जनता की यही धारणा है। मजीठिया पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर के भाई और अकाली दल (बादल) अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साले हैं। पुलिस राज्य सरकार के अधीन होती है।इसलिए सीमा पर होने वाली अवैध गतिविधियों को रोकने में उसे स्थानीय दबाव और राजनीतिक हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है।
जाने-अनजाने उसके हाथ बँधे रहते हैं और आँखें मिंची रहती हैं। राजनीतिक संरक्षण में देशी-विदेशी लोग खुला खेल खेलते हैं। ऐसी स्थिति में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को बढ़ाया जाना अपरिहार्य था। केंद्र सरकार द्वारा जारी इस अधिसूचना ने सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार में एकरूपता भी स्थापित की है। पहले पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल में अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किमी तक, राजस्थान में 50 किमी तक, गुजरात में 80 किमी तक और जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में पूरे भू-भाग में सीमा सुरक्षा बल का अधिकार-क्षेत्र था। अब पंजाब, असम, पश्चिम बंगाल, गुजरात और राजस्थान में सीमा सुरक्षा बल के क्षेत्राधिकार को 50 किमी करते हुए एक समान किया गया है।
Unfortunately people playing up the issue are unable to make out the difference between law & order and national security. BSF like Punjab Police is our own force and not an external or foreign army coming to occupy our land.
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) November 11, 2021
जबकि, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में उसे यथावत रखा गया है। सीमा सुरक्षा बल अधिनियम-1969 इंदिरा गाँधी सरकार ने लागू किया था। क्या तब संघीय ढाँचे को ठेस नहीं पहुँची थी? इस अधिनियम के अनुभाग 139 के तहत सीमा सुरक्षा बल अपने क्षेत्राधिकार में केवल तलाशी, जब्ती और गिरफ़्तारी कर सकते हैं। मुकदमा दर्ज करने और चलाने का अधिकार राज्य पुलिस को ही है। सीमा सुरक्षा बल के उपरोक्त क्षेत्राधिकार में भी कानून-व्यवस्था राज्य पुलिस के नियंत्रण में ही रहती है।
इसलिए पुलिस के अधिकार कम होने या उसके अधिकार-क्षेत्र के अतिक्रमण की आशंका और आरोप निराधार हैं। सुरक्षा बल राज्य पुलिस का सहयोग ही करेंगे। इससे सीमा पार से होने वाली अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगेगा। केंद्र सरकार की इस पहल से राज्य पुलिस पर काम का बोझ थोड़ा कम होगा और उसकी कार्य-क्षमता बढ़ेगी। कानून-व्यवस्था पर पूरा ध्यान केन्द्रित करते हुए उसे राज्य में अमन-चैन कायम करने में सहूलियत होगी। शांति कायम रहेगी।
विपक्षी दलों को राजनीतिक रोटी सेंकने और चुनावी मौसम में वोट बैंक साधने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा पर समझौता करने और संविधान और संसद की अवमानना से बाज आना चाहिए। उन्हें लोगों का विश्वास जीतने और उनका वोट पाने के लिए सकारात्मक मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। केंद्र को भी एहतियात बरतते हुए संबंधित राज्य सरकारों और हितधारकों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ना चाहिए ताकि अनावश्यक केंद्र-राज्य टकराव और भ्रम-दुष्प्रचार की राजनीति से बचा जा सके।
(प्रोफेसर रसाल सिंह लेखक जम्मू केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अधिष्ठाता, छात्र कल्याण हैंI)