1 दिसंबर, 2022 से 30 नवंबर 2023 तक, वैश्विक तौर पर भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण काल है, इस काल में भारत के पास ‘ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (G20)’ की अध्यक्षता है। इस ‘ग्रुप ऑफ ट्वेंटी’ (G20) में विश्व के सबसे ताकतवर विकसित और विकासशील देश शामिल हैं, जो विश्व का 85% घरेलू उत्पाद, 75% व्यापार, और जनसंख्या के दो-तिहाई से अधिक आबादी को सम्मिलित करता है। इस G20 ग्रुप में 19 देश (अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका) और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
इस वर्ष (G20) बैठक 9–10 सितम्बर को दिल्ली , भारत में आयोजित होगी जिसमें G20 ग्रुप के अतिरिक्त 9 अतिथि देश और अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठन भी आमंत्रित हैं। भले ही मुख्य बैठक दिल्ली में हो रही हो, लेकिन 1 दिसंबर 2022 से 30 नवंबर 2023 तक होने वाले अनेक महत्वपूर्ण बैठकें एवं कार्यक्रम भारत के लगभग हर प्रान्त में आयोजित किया जा रहा है। पहली बार एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन में हर प्रान्त की भागीदारी के साथ-साथ जन भागेदारी भी सुनिश्चित की जा रही है।
8 नवंबर, 2022 को भारत की अध्यक्षता में आयोजित होने वाले G20 सम्मेलनों के लोगो , थीम और वेबसाइट के अनावरण के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया व्याख्यान पथ प्रदर्शक के तौर पर काम आएगा। पिछले कुछ वर्ष विभिन्न कारणों से मानवता के लिए अत्यंत कठिन रहे हैं, चाहे वह कोविड-19 महामारी हो या फिर आर्थिक तंगी, या कुछ देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनना। इस दौर में भारत अपने प्राचीन संदेश ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ या ‘एक पृथ्वी – एक कुटुंब, एक भविष्य’ के नारे के साथ विश्व को शांति के साथ प्रगति का संदेश देने के लिए तैयार है।
भारत का संदेश स्पष्ट है वह कह रहा है कि, इस पृथ्वी पर रहने वाले हर जीव जंतु परस्पर एक परिवार कि तरह जुड़े हुए हैं जिनका भविष्य भी अलग नहीं बल्कि एक है। कटुता एवं अंधकार से भरे वैश्विक वातावरण में भारत ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का दीप जलाने को तैयार है। भारत के लिए यह कार्य नया नहीं है। इस विश्व बंधुत्व एवं वेदांत के प्राचीन संदेश को लेकर ही आज से लगभग 128 वर्ष पहले (1893) स्वामी विवेकानंद पश्चिम के प्रवास पर गए थे।
स्वामी विवेकानंद का G20 सदस्य देशों में प्रवास
स्वामीजी ने अपने 39 वर्ष के जीवन काल में 2 बार पश्चिम का प्रवास किया पहला, मई 1893 से जनवरी 1897 तक और दूसरी बार जून 1899 से नवंबर/दिसंबर 1900 तक। इस बीच उन्होंने G20 ग्रुप में सम्मिलित 19 देशों में 10 का प्रवास किया है इसमें भारत, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। इसके अतिरिक्त स्वामीजी यूरोपीय संघ में शामिल देशों का भी प्रवास किया था।
स्वामीजी जहाँ-जहाँ गए, उन्होंने उस देश की संस्कृति को समझने की कोशिश की और साथ ही साथ बहुत ही प्रखरता से भारतीय संस्कृति , दर्शन एवं जीवन मूल्यों से पश्चिम को परिचित करवाया। वह पश्चिम को भारत की सनातन संस्कृति से परिचय करवाने वाले पहले व्यक्ति थे। जब स्वामीजी ने भारत के विश्व बंधुत्व, वेदांत दर्शन, वसुधैव कुटुम्बकम् के मूल्यों को पश्चिम के सामने रखा तो पश्चिमी के लोगों की कल्पना में भारत के प्रति एक सकारात्मक बदलाव आया। भारत कोई साँप-सपेरों का देश नहीं बल्कि उसके पास विश्व को देने के लिए ज्ञान और आध्यात्मिकता का संदेश – यह पश्चिम को पहली बार ज्ञात हुआ।
कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, तुर्किये में स्वामीजी अधिक समय तक नहीं रुक पाए लेकिन, संक्षिप्त प्रवास में भी वह अपनी छाप सदा के लिए छोड़ आए। यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वामीजी ने अधिक समय बिताया और इसके परिणाम स्वरूप स्वामीजी से प्रभावित होकर उनके अनेक अनुयायी सेवा कार्य के लिए भारत आए, जिनमें भगिनी निवेदिता, सिस्टर क्रिस्टीन मुख्य हैं। भगिनी निवेदिता ने तो स्त्री शिक्षा के कार्य के साथ-साथ भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वामीजी के अनुयायी भारत में आकर भारतीय हो गए। न कोई सेवा के नाम पर धर्मांतरण का छलावा न कोई मान-सम्मान की चाहत। उन्होंने निस्वार्थ भाव से माँ भारती की सेवा की। यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वामीजी ने अनेकों व्याख्यान भी दिए एवं कक्षाएँ भी ली, जिनमें हज़ारों लोग सहभागी हुए। स्वामीजी अपनी कक्षाओं में प्राचीन भारतीय शास्त्र श्रीमद्भगवद्गीता , उपनिषद, व्यास के वेदांत सूत्र और कभी-कभी नारद के भक्ति सूत्र पर चर्चा करते थे। सिस्टर क्रिस्टीन के अनुसार “करोड़पति लोग स्वामीजी के चरणों के सम्मुख फर्श पर बैठकर खुश थे।
जिन देशों में स्वामीजी ने यात्रा की है, उनके अतिरिक्त G20 के कुछ ऐसे सदस्य भी हैं, जहां स्वामीजी प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जा पाए लेकिन रामकृष्ण मिशन की शाखाओं के माध्यम से उनका संदेश इन स्थानों तक पहुँचा। इन देशों मे अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। स्वामीजी ने जिस ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और विश्व बंधुत्व के संदेश से पश्चिम को अवगत कराया था, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी संदेश को अग्रसर करने का कार्य कर रहे हैं। आज के वैश्विक वातावरण में यह संदेश अनेक सकारात्मक संभावनाओं को जन्म देगा और नकारात्मक गतिविधयों का खात्मा करेगा।
(लेखक निखिल यादव ‘विवेकानंद केंद्र’ के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में शोधकर्ता है।)