एक मशहूर कहावत है- ‘राजनीति में एक सप्ताह का समय बहुत लंबा होता है।’ इसका इस्तेमाल राजनीतिक जानकार अक्सर करते हैं। इसका मतलब है कि कम समय में राजनीतिक क्षेत्र में तेजी से कुछ ऐसे बदलाव हो जाते हैं, जिसके बारे में किसी ने कोई कल्पना भी न की हो। तेलंगाना की राजनीति कुछ इसी तरह से करवट ले रही है। यहाँ राजनीतिक पार्टियों की स्थितियों में पिछली बार के मुकाबले इस बार तेजी से बदलाव आया है।
भाजपा ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव में करारी हार (119 सीटों पर चुनाव लड़कर महज एक सीट पर जीत) के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अच्छी सफलता दर्ज की थी। 2019 में भाजपा ने 17 में से 4 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके बाद भाजपा ने नवनिर्वाचित सांसद बंदी संजय कुमार को राज्य इकाई का अध्यक्ष बनाया, जो कि संघ में लंबे समय से सक्रिय रहे हैं। भाजपा ने 2020 और 2021 में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की। 2022 में पार्टी को हार झेलना पड़ा। इस बीच, भाजपा को साल 2020 के JHMC चुनाव में 4 के मुकाबले 49 सीटों पर जीत मिली, तो 2023 में एमएलसी चुनाव (शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र) में भी जीत हासिल की।
तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष बंदी संजय कुमार ने पूरे राज्य में पदयात्रा शुरू की, जिसका उल्लेख खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और बाकी राज्य इकाइयों से भी इसी इस तरह की पहल के लिए कहा। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति के कारण एमआईएम-बीआरएस सरकार को ‘तेलंगाना मुक्ति दिवस‘ मनाने के लिए भी मजबूर होना पड़ा।
तेलंगाना में भाजपा का उदय कॉन्ग्रेस पार्टी के पतन के साथ हुआ। साल 2018 में कॉन्ग्रेस पार्टी के 18 विधायकों ने जीत दर्ज की थी, जिसमें से 12 अगले साल 2019 में BRS में शामिल हो गए। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने लोकसभा चुनाव 2019 में तीन सीटें जीती थी, लेकिन उसके बाद से कॉन्ग्रेस को लगातार हार ही मिली है। मुनुगोडे सीट पर उपचुनाव में कॉन्ग्रेस की जमानत जब्त हो गई, जबकि वो सीट पहले कॉन्ग्रेस की ही थी।
इस बीच, भाजपा तेलंगाना में जब लगातार आगे बढ़ रही थी, तभी अफवाहें उड़ने लगीं कि भाजपा के राज्य अध्यक्ष बंदी संजय कुमार की जगह किसी अन्य को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इस अफवाह के बाद भाजपा में अंदरुनी कलह बढ़ गई। इस दौरान, दूसरी पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए नेताओं ने दिल्ली में अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की और संजय की शिकायत की। वहीं, संजय कुमार ने भी अपनी पदयात्रा रोक दी है।
अंदरुनी लड़ाई रुकने का नाम नहीं ले रही है, जिसकी वजह से अब तक तेलंगाना में भाजपा को जो बढ़त मिली भी थी, वो धीरे-धीरे खत्म होने लगी। और फिर वही हुआ, बंदी संजय कुमार को हटाकर केंद्रीय नेतृत्व ने किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। वो केंद्रीय मंत्री भी थे। इस बीच ये बात फैलाई गई कि बंदी संजय कुमार को केंद्रीय मंत्रिमंडल में राज्यमंत्री के तौर पर शामिल किया जाएगा, लेकिन उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया गया। हालाँकि, ये शक्तिशाली पद है।
जहाँ बीजेपी अंदरूनी कलह में उलझी थी, वहीं कॉन्ग्रेस में अचानक से जान आने लगी। मई 2023 में कर्नाटक चुनावों में कॉन्ग्रेस की जीत, कई मामले में अप्रत्याशित थी। वहीं इस जीत ने तेलंगाना में पार्टी की किस्मत में एक बड़ा उछाल ले आई। लगभग इसी समय, KCR ने एक पूर्व सांसद और एक पूर्व मंत्री को BRS पार्टी से निष्कासित कर दिया था। वे खम्मम जिले के थे। इस जिले में बीजेपी परंपरागत रूप से कमजोर रही है। ऐसे में सभी को उम्मीद थी कि ये दोनों नेता भाजपा में प्रवेश करेंगे और इससे बीजेपी को फायदा मिलेगा।
हालाँकि, भाजपा इन दोनों नेताओं को लुभाने में विफल रही और कॉन्ग्रेस पार्टी ने उस अवसर को भुना लिया। और इस जॉइनिंग के साथ ही अब कॉन्ग्रेस पार्टी में लोगों का आना शुरू हो गया है जबकि करीब 6 महीने पहले ही बीजेपी में शामिल होने वालों की लाइन लग गई थी। ऐसे में कॉन्ग्रेस पार्टी ने तेलंगाना के लिए भी 6 गारंटियों की घोषणा करने का फैसला किया ठीक उसी तरह जो उन्होंने कर्नाटक के लिए किया था और जिसका एक तरह से मतलब है कि उन्होंने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है।
इस बीच सीएम और बीआरएस पार्टी के सुप्रीमो KCR ने 119 सीटों में से 115 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। बता दें कि 2018 के चुनाव में भी उन्होंने ऐसी ही शुरुआती घोषणा की थी। हालाँकि, 2023 में वह दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं, जो बेहद पास-पास हैं। ये अपने आप में एक संकेत है कि वह अपने मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र में बहुत मजबूत स्थिति में नहीं हैं। क्योंकि, दो अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ना आमतौर पर दो कारणों से किया जाता है – या तो यह दिखाने के लिए कि वे राज्य/देश के विभिन्न क्षेत्रों को कवर कर रहे हैं, या वे मौजूदा सीट बरकरार रखने के बारे में आश्वस्त नहीं हैं।
वहीं केसीआर के मामले में, उनके द्वारा चुने गए दोनों निर्वाचन क्षेत्र एक-दूसरे के बहुत करीब हैं जिससे कहीं न कहीं यह स्पष्ट है कि उन्हें मौजूदा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतने का भरोसा नहीं है। जैसा कि अपेक्षित था, उम्मीदवारों की घोषणा के बाद पार्टी में असंतोष फैल गया। कुछ असंतोष इतना गंभीर था कि KCR को चुनाव से ठीक 3 महीने पहले जल्दबाजी में बुलाए गए शपथ ग्रहण समारोह में एक एमएलसी को अपने मंत्रिमंडल में भी शामिल करना पड़ा।
अक्टूबर 2023 बिलकुल करीब है और वहाँ दिसंबर 2023 में ही चुनाव होने हैं। ऐसे में बीआरएस पार्टी ने 119 सीटों के लिए 115 उम्मीदवारों की घोषणा की है। कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में 6 गारंटी की घोषणा की है। वहीं भाजपा ने अभी तक इसमें से कुछ भी नहीं किया है। भाजपा, जो पिछले साल इसी समय बढ़त पर थी, अब पिछले 6 महीनों के घटनाक्रम के कारण स्थिर हो गई है। लगभग एक साल पहले 2023 का चुनाव बीआरएस और बीजेपी के बीच एक लड़ाई जैसा लग रहा था।
वहीं अब यह बीआरएस, कॉन्ग्रेस और बीजेपी (MIM अपनी 7 सीटें जीतेगी) के बीच लड़ाई है। ऐसे में इस तीन-तरफ़ा प्रतियोगिता में, एकमात्र लाभार्थी केसीआर होंगे। फिर भी अब हमें इंतजार करने और देखने की जरूरत है कि अगले दो महीनों में क्या सामने आने वाला है।