साध्वी प्रज्ञा को भाजपा द्वारा टिकट दिए जाने के बाद लोकसभा चुनावों की दिशा बदलती हुई नजर आ रही है। भोपाल सीट से साध्वी प्रज्ञा का नाम हर किसी के लिए चौंकाने वाला साबित हुआ है। साध्वी प्रज्ञा मालेगाँव धमाकों में शामिल होने के आरोपों में अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मात्र शक के आधार पर जेल, साजिश और सियासत की यातनाओं में गँवा चुकी हैं। इस बीच अगर कोई चीज लिबरल्स बुद्धिजीवीयों के बीच नदारद मिली है तो वो है साध्वी प्रज्ञा के मानवाधिकार! क्या हिन्दुओं के मानवाधिकार इस सेक्युलर देश में चर्चा का विषय नहीं हैं?
मोदी सरकार के दौरान वॉशरूम के नल में पानी ना होने पर भी नेहरुवियन सभ्यता के दौरान मिले हुए अवार्ड वापस कर देने वाले लोग तब क्यों सोते रहे जब मात्र शक (संभवतया साजिश) के आधार पर एक महिला की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी गई, उसे लगातार 14 दिन तक पीटा जाता रहा, उसकी ऑक्सीजन सप्लाई बंद कर दी गई और उसे अपने मृतक पिता तक से नहीं मिलने दिया गया?
सोशल मीडिया पर इसके बाद से लगातार साध्वी प्रज्ञा से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य सामने आ रहे हैं, जिन पर बात करना और ‘प्राइम टाइम’ करना मेनस्ट्रीम मीडिया ने कभी शायद अपनी जिम्मेदारी नहीं समझा। प्रश्न उठता है कि पत्रकारिता के स्वघोषित ऐसे बड़े नाम भी इस इकतरफी यातना के मुद्दे पर चुप किन कारणों से रहे? क्या यही उन पत्रकारों की निष्पक्षता की परिभाषा है, जो उन्हें अपने प्रोपेगेंडा के नाम पर सुबह शाम प्राइम टाइम करवाती है, लेकिन जिन विषयों पर उन्हें ‘बड़ा नाम’ बनाने वाले राज परिवारों पर प्रश्नचिन्ह लगता हो, उन पर वो एकदम खामोश रहने का फैसला लेते हैं?
2014-2015 के दौरान सुदर्शन टीवी द्वारा एक ऑडियो-वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। इस वीडियो में बताया गया है कि पुलिस ने किस प्रकार बिना किसी सबूत प्रज्ञा को हिरासत में लेकर उन पर अमानवीय जुर्म किए। उनके सामने ‘भागवत गीता’ के पन्ने फाड़कर उड़ाए जाते, हिन्दुओं के इस पवित्र ग्रन्थ को पैरों तले कुचला जाता था और साध्वी प्रज्ञा से पूछा जाता था, “क्या तुम्हारे राम तुम्हे बचाने आएँगे?”
साध्वी प्रज्ञा के पिता एक RSS कार्यकर्ता थे, उनकी मृत्यु पर साध्वी प्रज्ञा को उनसे मिलने और आखिरी बार देखने तक की इजाजत नहीं दी गई। पुलिस दल, जिसमें कि हेमंत करकरे भी थे, प्रज्ञा को टॉर्चर करते थे। उन्हें फुटबॉल की गेंद की तरह पीटा जाता था, जिससे उनके फेफड़ों में घाव हो गए।
वीडियो में बताया गया है कि साध्वी प्रज्ञा को इसी हालात में अस्पताल में 3-4 फ्लोर तक चढ़ाया जाता था। उन्हें तरह-तरह के इंजेक्शन दिए जाते रहे, ऑक्सीजन सप्लाई बंद कर दी जाती थी और उन्हें तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता था। लगातार 14 दिन की प्रताड़नाओं के बीच साध्वी प्रज्ञा की रीढ़ की हड्डी भी टूट गई थी, इसी बीच उन पर एक और केस फाइल कर दिया गया। ये सब इतनी आसानी से होता रहा, मीडिया की गैरमौजूदगी और सियासत की साजिशों के बीच कोई इस मामले में बात करने वाला नहीं था।
“पहले मेरा इलाज करो, मैं उसके बाद जेल जाऊँगी”, सुदर्शन टीवी द्वारा जारी वीडियो में टूटी हुई रीढ़ की हड्डी के कारण भोपाल एयरपोर्ट पर साध्वी प्रज्ञा यह कहते हुए सुनी जा सकती हैं। इस वीडियो क्लिप में साध्वी प्रज्ञा की बहन प्रतिभा और उनके पति भगवान झा को इस प्रकरण पर बात करते देखा जा सकता है।
यातनाओं के दौरान पुलिस घेरा बनाकर साध्वी प्रज्ञा को मारती थी, एक के थक जाने पर दूसरा उन्हें मारता था। इतना ही नहीं, हिन्दू होने के कारण उनकी आस्थाओं को आहत करने के लिए पवित्र ग्रंथ गीता को उनके सामने लाकर फाड़ा और पैरों से कुचला जाता था। जब इतने से भी टॉर्चर करने वालों को तसल्ली नहीं हुई तब उन्होंने गाय का माँस साध्वी प्रज्ञा को खिलाया और उन्हें अश्लील फिल्में दिखाईं।
ये सोचने की बात है कि गाय का माँस खिलाकर आस्थाओं को आहत करने की बात 2014-2015 से पहले की हैं, मीडिया द्वारा तब कभी इस तरह का प्रकरण ‘मेनस्ट्रीम’ नहीं किया गया था। आप सोचिए कि 2019 में एक पाकिस्तानी जिहादी 40 भारतीय सैनिकों को मारने से पहले सन्देश देता है कि उसे गाय का पेशाब पीने वाले हिन्दुओं से नफरत है। इसी विचारधारा की झलक हमें साध्वी प्रज्ञा की यातनाओं में भी देखने को मिलती है, क्या ये मात्र एक संयोग ही हो सकता है?
खास बात ये भी है कि इस दौरान समाचार पत्र और मीडिया चैनल्स में कोई अन्य डाटा उपलब्ध नहीं है। ये भी हो सकता है कि आज के समय पर अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले पत्रकारों को इस पर लिखने और बोलने की उनके ‘अन्नदाताओं’ द्वारा इजाजत नहीं दी गई थी, या फिर किसी ने भी इस मामले पर बात करना आवश्यक नहीं समझा होगा। जाहिर सी बात है कि यह प्रकरण ‘हिन्दू/भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द रचने वाले दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की विचारधारा के अनुरूप चल रहा था और भविष्य में उनके राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप उनके काम आ सकता था।
साध्वी प्रज्ञा पर की गई हर यातना एक प्रपंच का हिस्सा नजर आता है। इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जो लोग पुलवामा आतंकी हमले को इस्लामिक जिहाद से जोड़ने में हिचकिचाते रहे वही लोग आज साध्वी प्रज्ञा को एक घोषित आतंकवादी बना देने की हर कोशिश कर रहे हैं। ये संस्थाओं का उपहास उड़ाते हैं। अदालत और न्यायिक प्रक्रियाओं में अपने एजेंडा के अनुसार विश्वास करते हैं और नहीं करते हैं और ऐसा करते वक्त वो ये भी भूल जाना पसंद करते हैं कि इन संस्थाओं में उनके नेहरू जी भी विश्वास करते थे, खुलेआम संविधान से छेड़छाड़ करने वाली इंदिरा गाँधी भी।
न्याय समय के गर्भ में है। साध्वी प्रज्ञा के प्रकरण को इकतरफा होकर नहीं देखा जा सकता है, लेकिन अफजल गुरु, बुरहान वानी, यहाँ तक की मसूद अजहर जैसे आतंकवादियों और कश्मीरी पत्थरबाजों से संवेदना दिखाने वाले नेता, पत्रकार और सामाजिक विचारकों को साध्वी प्रज्ञा से भी सहानुभूति होनी चाहिए। मानवाधिकारों और व्यक्तिगत मामलों का सम्मान होता नहीं दिख रहा है। सेक्युलर राष्ट्र होने की वजह से हम सब नकारना चाहते हैं, लेकिन इन सबके पीछे का कारण साध्वी प्रज्ञा का हिन्दू होना ही है।
I found this clip by sudarshan TV. Just see this. This is her younger sister pratibha n her husband bhagwan jha. Kudos to @SudarshanNewsTV for bringing this out then. That’s how I searched for english articles on her story n found none, n decided to write. Must see! pic.twitter.com/PzvZrrHSkG
— Bhartiya (@gary_agg) April 19, 2019