भाजपा को पश्चिम बंगाल में झटका लगा है। राज्य में 4 जिलों की 4 अलग-अलग विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। पार्टी के लिए चिंता का विषय ये नहीं है कि उसने इन चारों सीटों को गँवा दिया, बल्कि हार का जो अंतर है – उस पर कोलकाता से लेकर दिल्ली तक ज़रूर मंथन होगा। 2019 लोकसभा चुनाव में 18 सीटें मिलने के बाद और 2021 विधानसभा चुनाव से पहले जो सरगर्मी थी, वो अब ठंडी पड़ रही है। तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) पहले से और मजबूत ही नजर आ रही है।
भाजपा के लिए खुश होने वाली सबसे बड़ी बात केवल यही है कि अब उसने कॉन्ग्रेस और वामदलों को पश्चिम बंगाल में कमजोर कर दिया है और इन दोनों की जगह ले ली है। पश्चिम बंगाल की मुख्य विपक्षी पार्टी ने शुभेंदु अधिकारी को नेता प्रतिपक्ष बना कर और युवा सुकांता मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष का पद देकर ये ज़रूर दिखाया है कि वो लंबे समय का निवेश लेकर चल रही है, लेकिन TMC के गुंडों की हिंसा और भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ किए जाने वाले सलूक ने एक भय का वातावरण पैदा कर दिया है।
पश्चिम बंगाल में पार्टी के कई नेता पिछले कुछ दिनों में भाजपा छोड़ कर TMC में शामिल हो चुके हैं, जिनमें दो बड़े नाम पूर्व केंद्रीय मंत्रीगण मुकुल रॉय और बाबुल सुप्रियो शामिल हैं। बाबुल सुप्रियो अपनी कार पर हमले के डर से भाजपा कार्यकर्ताओं के बचाव में नहीं गए थे, जो दिखाता है कि विपक्ष का एक जनप्रतिनिधि भी TMC के शासनकाल में कितना लाचार है। प्रदेश में सरे संवैधानिक और संस्थागत पद उन्हीं नेताओं को मिलेगा, जो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चापलूसी करेंगे।
दिक्कत ये है कि हर नेता का रसूख अधिकारी परिवार जैसा नहीं है कि वो अपने बलबूते टिक सकें। ममता बनर्जी का कृपापात्र बनने के लिए जिस तरह पश्चिम बंगाल के नेताओं में होड़ लगी है, उसने भाजपा के पेशानी पर बल ज़रूर ला दिया है। या तो भाजपा के कार्यकर्ता भय दे वोट देने निकले ही नहीं, या उन्होंने सत्ता पक्ष से बैर लेना उचित नहीं समझा। क्योंकि, चारों सीटों पर भाजपा की जीत के बावजूद सरकार पर कोई असर नहीं पड़ता। कई भाजपा कार्यकर्ता तो विस्थापित भी हैं।
पश्चिम बंगाल उपचुनाव: चारों सीटों का चुनावी अंकगणित
सबसे पहले बात करते हैं कूच बिहार स्थित दिनहाता विधानसभा सीट की, जहाँ 1,89,575 मत पाकर TMC के उदयन गुहा विजयी रहे। भाजपा उम्मीदवार अशोक मंडल को मात्र 25,486 वोटों से संतोष करना पड़ा। यानी, तृणमूल को भाजपा से लगभग साढ़े 7 गुना ज्यादा वोट मिले। TMC ने जहाँ कुल मतों में से 84.15% पर कब्ज़ा किया, भाजपा के उम्मीदवार 11.31% पर सिमट गए। जीत का अंदर 1,64,089 रहा। ये बहुत बड़ा आँकड़ा है। 72.84% वोटों से हार भी एकतरफा है।
इसी सीट पर जब 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा के नीतीश प्रामाणिक लड़े थे, तब उन्हें 1,16,035 वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा तब 47.60% वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। तब TMC की यहाँ हार हुई थी। हालाँकि, जीत का अंतर मात्र 57 ही रहा था और TMC भी 47.58% वोट लाने में कामयाब रही थी। बस 0.02% वोटों से हार-जीत का फैसला हुआ था। नीतीश प्रामाणिक फ़िलहाल केंद्रीय गृह और खेल मंत्रालयों में राज्यमत्री हैं। जिन उदयन गुहा को उन्होंने हराया था, वही इस बार जीत गए।
इसके बाद बात करते हैं साउथ 24 परगना स्थित गोसाबा विधानसभा सीट की, जहाँ 1,61,474 मत पाकर TMC के सुब्रता मंडल विजयी रहे। भाजपा उम्मीदवार पलश राणा को मात्र 18,423 वोटों से संतोष करना पड़ा। यानी, तृणमूल को भाजपा से लगभग साढ़े 8 गुना से भी ज्यादा वोट मिले। TMC ने जहाँ कुल मतों में से 87.19% पर कब्ज़ा किया, भाजपा के उम्मीदवार 9.95% पर सिमट गए। जीत का अंदर 1,43,351 रहा। ये बहुत बड़ा आँकड़ा है। 77.24% वोटों से हार भी एकतरफा है।
इसी सीट पर जब 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा के वरुण प्रामाणिक लड़े थे, तब उन्हें 82,014 वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा तब 42.88% वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। तब TMC की यहाँ जीत हुई थी। हालाँकि, जीत का अंतर तब 23,619 रहा था और TMC 53.99% वोट लाकर विजयी हुई थी। बस 12.06% वोटों से हार-जीत का फैसला हुआ था। अब भाजपा पिछली बार के जीत के अंतर इतने वोट लाने को भी तरस गई है।
अब आते हैं नॉर्थ 24 परगना स्थित खारदाहा विधानसभा सीट की, जहाँ 1,14,086 मत पाकर TMC के शोभनदेव चट्टोपाध्याय विजयी रहे। भाजपा उम्मीदवार जय साहा को मात्र 20,254 वोटों से संतोष करना पड़ा। यानी, तृणमूल को भाजपा से लगभग साढ़े 5 गुना से भी ज्यादा वोट मिले। TMC ने जहाँ कुल मतों में से 73.59% पर कब्ज़ा किया, भाजपा के उम्मीदवार 13.07% पर सिमट गए। हालाँकि, जीत का अंतर यहाँ 1 लाख से कम, अर्थात 93,832 रहा। फिर भी ये बड़ा आँकड़ा है। 60.52% वोटों से हार भी एकतरफा ही समझिए।
इसी सीट पर जब 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा के शीलभद्र दत्ता लड़े थे, तब उन्हें 61,667 वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा तब 33.67% वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। हालाँकि, वो दूसरे स्थान पर ही रही थी। लेकिन, जीत का अंतर तब 28,140 रहा था और TMC 49.04% वोट लाकर विजयी हुई थी। बस 15.36% वोटों से हार-जीत का फैसला हुआ था। अब भाजपा ने उम्मीदवार बदला, लेकिन सफलता नहीं मिली। जीत का अंतर जितना था, उससे तीन गुना से भी अधिक इस बार रहा।
अंत में बात करते हैं नाडिया स्थित शांतिपुर विधानसभा सीट की, जहाँ 1,12,087 मत पाकर TMC के ब्रज किशोर गोस्वामी विजयी रहे। भाजपा उम्मीदवार निरंजन बिस्वास को मात्र 47,412 वोटों से संतोष करना पड़ा। यानी, तृणमूल को भाजपा से लगभग सवा दो गुने से भी ज्यादा वोट मिले। TMC ने जहाँ कुल मतों में से 54.89% पर कब्ज़ा किया, भाजपा के उम्मीदवार 23.22% वोट ही ला पाए। हालाँकि, यहाँ जीत का अंतर थोड़ा सम्मानजनक रहा। भाजपा इस सीट पर 64,675 मतों से हारी। फिर भी हार का अंतर 35.32% रहा।
इसी सीट पर जब 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा के जगन्नाथ सरकार लड़े थे, तब उन्हें 1,09,722 वोट प्राप्त हुए थे। भाजपा तब 49.94% वोट अपने पाले में करने में सफल रही थी। पार्टी ने TMC को मात भी दी थी। तृणमूल कॉन्ग्रेस को तब 42.72% वोट मिले थे। बस 7.28% वोटों से हार-जीत का फैसला हुआ था। भाजपा 15,878 वोटों से जीत का स्वाद चखने में सफल हुई थी। इस सीट पर भाजपा ने अब भी TMC को ठीक-ठाक टक्कर दे दी है, लेकिन ये पर्याप्त नहीं।
क्या रहे भाजपा की हार के कारण, पश्चिम बंगाल में अब आगे क्या?
ममता बनर्जी अब गोवा और त्रिपुरा में पाँव पसार रही हैं। उन्हें लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में उनके टक्कर का कोई है ही नहीं, तो बाहर राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का विस्तार करने का यही समय है। वो खुद को विपक्ष के एक बड़े नेता के रूप में देख रही हैं। अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहीं ममता बनर्जी के राज में हिंसा, हत्याओं, विस्थापन, मुस्लिम तुष्टिकरण और लूटपाट जैसी घटनाओं के बावजूद मीडिया की वो दुलारी बनी रहती हैं। भाजपा के लिए चुनौतियाँ और कड़ी हैं।
भाजपा की हार का कारण है कार्यकर्ताओं का हतोत्साहित होना। उन्होंने देखा कि पार्टी के बड़े नेता भी राज्य में आने पर हमलों से खुद को नहीं बचा पा रहे हैं। उन्होंने देखा कि केंद्रीय संवैधानिक संस्थाओं के जो पदाधिकारी जाँच करने आ रहे हैं, उन्हें भी TMC के गुंडे बख्श नहीं रहे। उन्होंने देखा कि अदालतों से लेकर जमीन तक, TMC के गुंडों का कहीं कुछ नहीं बिगड़ रहा। शक्तिशाली ममता बनर्जी और उनकी पार्टी के विरुद्ध जाने में भय का माहौल है। भय ने हतोत्साह को जन्म दिया।
पश्चिम बंगाल उपचुनाव में भाजपा ने उतना जोर लगाया भी नहीं था, जितनी हाइप और जितना मीडिया कवरेज 2021 विधानसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था। कारण ये भी हो सकता है कि 4 सीटों के अंतर से ममता बनर्जी की सरकार पर कोई संकट आने-जाने वाला नहीं था, इसीलिए जनता और नेता दोनों ने सोचा कि क्यों न सत्ताधारी पार्टी को ही वोट दे दिया जाए या फिर उतनी सक्रियता न झोंकी जाए। राजनीति का जवाब दिया जा सकता है, यहाँ भाजपा को हिंसा का जवाब देना है। इसके तरीके खोजने हैं।
पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा भी है कि जिस तरह इस्लाम तलवार के बल पर फैला, उसी तरह TMC तलवार की नोंक पर लोगों को बुला रही। उन्होंने उदाहरण दिया कि भाजपा सांसद अर्जुन सिंह के विरुद्ध 120 केस ठोक दिए गए हैं और इसी तरह कई नेताओं के खिलाफ दर्जनों मुक़दमे दर्ज कर दिए गए हैं। खुद विजयवर्गीय के ऊपर 20 केस हैं। उन्होंने कहा कि विपक्ष की हत्या की जा रही है, कोई क्या जिएगा। जनता यही तो देखती है कि जब जनप्रतिनिधि तक कि ये दुर्दशा है तो उनका क्या होगा।
#WATCH | Desh me Islam talvaar ke bal pe aaya aur (West) Bengal me jo log TMC me ja rahe hain, wo talvaar ke bal pe ja rahe hain: BJP General Secretary Kailash Vijayvargiya in Indore, Madhya Pradesh pic.twitter.com/YaYYKo7Mpz
— ANI (@ANI) November 2, 2021
कुल मिला कर देखें तो तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) ने न सिर्फ अपनी दोनों सीटें अपने पास रखीं, बल्कि भाजपा की जीती हुई दो सीटें भी छीन लीं। पश्चिम बंगाल में भाजपा के एक अन्य बड़े नेता पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने कैलाश विजयवर्गीय पर हाल ही में उँगली उठाई जी, जिससे लगता है बंगाल में सब ठीक नहीं है। शुभेंदु अधिकारी ने कहा था कि बांग्लादेश हिंसा का इस उपचुनाव पर असर पड़ेगा, जो आकलन गलत सिद्ध हुआ। दिसंबर में पश्चिम बंगाल के नगर चुनाव हो सकते हैं। अब देखना ये है कि भाजपा अपने कैडर में कितना जोश भर पाती है और कितनी सक्रियता दिखाती है।
भाजपा के शीर्ष आलाकमान को ये सिखाना होगा कि वो कार्यकर्ताओं के साथ खड़े हैं। अदालतों और संवैधानिक संस्थाओं की कार्रवाइयाँ वर्षों चलेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2019 शपथग्रहण समारोह में मृत कार्यकर्ताओं के परिजनों को बतौर अतिथि बुला कर सम्मानित किया गया था। इस तरह की चीजें होती रहनी चाहिए। कार्यकर्ताओं और समर्थकों को लग्न चाहिए कि पार्टी उनके साथ है। लेकिन, अभी आलम ये है कि हिंसा और गुंडागिरी के आगे भाजपा का सांसद और केंद्रीय मंत्री तक पश्चिम बंगाल में सुरक्षित नहीं।